अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका की नई मध्य पूर्व शांति योजना और भारत

विवेक ओझा

नई दिल्ली: विश्व व्यवस्था वर्तमान समय में उथल पुथल के दौर से गुजर रही है। एक तरफ महासागरीय विवाद हैं तो दूसरी तरफ विभिन्न देशों और संगठनों के मध्य व्यापारिक युद्ध की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ जहां शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों की समस्या है, वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया और अमेजन में पर्यावरणीय आपातकाल जैसी घटनाएं देखने को मिली हैं। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में इज़रायल और फिलिस्तीन के विवाद के समाधान के लिए अपनी मध्य पूर्व योजना देखकर मध्य पूर्व में एक नई बहस को बढ़ावा दे दिया है।

ट्रंप ने इजराइल- फिलिस्तीन समस्या के समाधान के प्रस्ताव को शताब्दी का समझौता कहा है। इसके तहत ट्रंप ने प्रस्ताव किया है कि वेस्ट बैंक और जॉर्डन घाटी में यहूदी अधिवासों का नियंत्रण रहे यानी इस इन क्षेत्रों पर इजरायल का की संप्रभुता और नियंत्रण स्थापित रहे। ट्रंप के इस प्रस्ताव को 1993 के ओस्लो शांति समझौते का उल्लंघन माना जा रहा है जिसमें फिलिस्तीनी राज्य के विचार को मान्यता दी गई थी।

शांति प्रस्ताव में जॉर्डन घाटी पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता देते हुए नियंत्रण को धीरे-धीरे भविष्य में कम करने का सुझाव दिया गया है। इसमें वेस्ट बैंक को उत्तरी व दक्षिणी भागों में विभाजित करने की बात की गई है और फिलिस्तीन का तुष्टीकरण करते हुए यह प्रस्ताव किया गया है कि गाजा को वेस्ट बैंक से जोड़ने वाले सड़क मार्ग को एक बार फिर से बनाया जाए। मध्य पूर्व योजना में फिलिस्तीन को इजरायली क्षेत्र में स्थित असडोड में बंदरगाह पहुंच देने और फिलिस्तीन को ब्रिज और सुरंगों की सुविधा यानी डामिया ब्रिज , एलेनबी ब्रिज और वेस्ट बैंक गाजा टनल की सुविधा देने की बात की गई है। गाजा क्षेत्र में वर्तमान में फिलिस्तीनियों पर हमास का शासन है और अब नए प्रस्ताव के तहत फिलिस्तीनियों को मिस्र की सीमा के निकट स्थित इजरायल क्षेत्र में भूमि आदान-प्रदान यानी लैंड स्वैपिंग की सुविधा देने का प्रस्ताव किया गया है ।

फिलिस्तीन की भविष्य में राजधानी पूर्वी जेरूसलम में करने का प्रस्ताव किया गया है और इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी स्पष्ट किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जेरूसलम के पड़ोस में अबू दिस को फिलिस्तीन की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया है। मिडिल ईस्ट प्लान के तहत इजरायल को गाजा के क्षेत्रीय जल पर संप्रभुता देने की बात की गई है और इसमें जेरूसलम इजरायल के अविभाजित राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है । मध्य पूर्व योजना के तहत प्रस्तावित किया गया है कि अब इसका नाम बदलकर अल कुद्स किया जा सकता है जो कि यरुशलम का अरबी नाम है या फिर फिलिस्तीन अपनी राजधानी का नाम अपनी पसंद के आधार पर रख सकता है। राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने प्रत्युत्तर में कहा है कि जेरूसलम विक्रय के लिए नहीं है।

ट्रंप ने फिलिस्तीनियों के लिए यह भी कहा है कि अमेरिका उनके लिए बहुत कुछ करेगा लेकिन दूसरी तरफ फिलिस्तीनियों को ट्रंप में अविश्वास करने के कई कारण भी नजर आते हैं। अमेरिका ने हाल के समय में अपना दूतावास तेल अवीव से हटाकर यरुशलम कर दिया है और उसने एक पक्षीय स्तर पर गोलन पहाड़ियों पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता दी है। ऐसे में फिलिस्तीन ट्रंप की मंशाओं को लेकर सशंकित हैं ।

ट्रंप के प्रस्ताव में कहा गया है कि भविष्य के नए फिलिस्तीनी राज्य के लिए 50 बिलियन डॉलर के सहयोग को सुनिश्चित किया जाएगा। इस प्रस्ताव में फिलिस्तीनी मूल के इजरायली नागरिकों को नए फिलिस्तीनी राज्य में बसाने की बात भी की गई है । कुल मिलाकर ट्रंप ने इजरायल और फिलिस्तीन की समस्या को लेकर दो राज्य समाधान की बात की है। इसी क्रम ट्रंप ने भविष्य के फिलिस्तीन राज्य में वेस्ट बैंक और गाजा के होने की बात की है जो सड़क और नहर के जरिए जुड़े रहेंगे। ट्रंप ने इसके साथ ही इजरायलियों को 4 वर्षों के लिए यहूदी अधिवास निर्माण को बंद करने की वकालत की है और यूरोपीय संघ ने भी यही बात इसराइल से कही है । साथ ही यह भी कहा गया है कि प्रत्यक्ष फिलिस्तीन के तहत आने वाली भूमि को बढ़ाया जाए।

उल्लेखनीय है कि 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन ने अमेरिका के मध्य पूर्व प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। सऊदी अरब के जेद्दा में इस विषय पर हुई बैठक में सदस्य राष्ट्रों से अनुरोध किया गया कि वह अमेरिका के मध्य पूर्व योजना को और अमेरिका के इस तरीके की किसी मध्यस्थता को स्वीकार ना करें और फिलिस्तीनी लोगों के जायज राजनीतिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकारों के पक्ष में संगठित स्तर पर काम करें। इसके साथ ही 22 सदस्य अरब लीग ने भी अमेरिका के मध्य पूर्व प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह फिलिस्तीनीओं के बुनियादी अधिकारों को न्यूनतम स्तर पर भी पूरा नहीं करता। फिलिस्तीनीयों को समावेशी अधिकार और पूर्ण रूप से स्वायत्तता के अधिकार दिए जाने आवश्यक हैं और आत्म निर्धारण के इस अधिकार से कम कुछ और स्वीकार नहीं किया जा सकता।

भारत और फिलिस्तीन संबंध –

भारत अपनी विदेश नीति में आत्म निर्धारण के अधिकार पर विशेष बल देता है और यही कारण है कि उसने फिलिस्तीन के जायज अधिकारों का समर्थन करने की नीति अपनाई। वर्ष 1974 में भारत पहला गैर अरब देश बना जिसने फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन को फिलिस्तीनी लोगों के एकछत्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी। इसी क्रम में वर्ष 1988 में भारत उन पहले देशों में से एक था जिसने फिलिस्तीन राज्य को मान्यता प्रदान किया। फिलिस्तीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को एक कदम आगे बढ़ाते हुए भारत ने 1996 में गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला जिसे 2003 में रमल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में फिलिस्तीनी लोगों के निर्धारण के अधिकारों के प्रारूप प्रस्ताव का सह प्रायोजक बनने की भूमिका निभाई और अक्टूबर 2003 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और समर्थन किया जिसके तहत इजरायल द्वारा पृथकता की दीवार के निर्माण का विरोध किया गया था।

वर्ष 2011 में भारत ने फिलिस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनने के पक्ष में मतदान किया और वर्ष 2012 में भारत ने उस संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और उसका सह प्रायोजक भी बना जिसमें फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र संघ में मत अधिकारों के बिना उसका गैर सदस्य पर्यवेक्षक देश बनाने का प्रस्ताव किया गया था। भारत ने फिलिस्तीन के हितों के सच्चे समर्थक के रूप में उसे अनवरत अपना समर्थन दिया है।

वर्ष 2015 में भारत ने एशियाई अफ्रीकी कमेमोरेटिव कॉन्फ्रेंस में फिलिस्तीन पर जारी बंगडुंग उद्घोषणा का समर्थन किया और इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के परिसर में फिलिस्तीनी झंडे को लगाए जाने का समर्थन किया ।भारत और फिलिस्तीन के मध्य द्विपक्षीय राजनीतिक यात्राओं के जरिए संबंधों को मजबूती दी जाती रही है। फरवरी 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन की पहली यात्रा की और संबंधों को मजबूत बनाया गया। इब्सा के सदस्य के रूप में भारत ने सदस्य देशों के साथ मिलकर फिलिस्तीन में 5 परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहा है जिसमें इंडोर मल्टीपरपज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाना , चिकित्सालय और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए पुनर्वास केंद्र खोलने का निर्णय भी शामिल है।

वर्ष 2015 में भारत ने सॉफ्ट पावर और सॉफ्ट डिप्लोमेसी के आधार पर रमल्ला में पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और 2017 में बेथलहम में दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मनाने के लिए स्वस्थ वातावरण का निर्माण किया । पुनः वर्ष 2017 में भी रमल्ला में इस दिवस को मनाया गया और 2018 में फिर से बेथलहम में योग दिवस मनाया गया। इसी के साथ भारत ने फिलिस्तीन के साथ यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम 2017 में शुरू किया और विभिन्न छात्रवृत्ति शैक्षणिक अंतर संपर्कों के जरिए मानव पूंजी के निर्माण पर बल दिया है। हाल ही में भारत ने 166 देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति में फिलिस्तीनी लोगों के आत्म निर्धारण के अधिकार के पक्ष में मतदान किया जबकि अमेरिका इजरायल, नौरू, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप ने विपक्ष में मतदान किया। गौरतलब है कि इस प्रस्ताव का प्रायोजक उत्तर कोरिया, मिस्र , निकारागुआ , जिम्बाम्बे और फिलिस्तीन हैं और इस प्रस्ताव पर 19 नवंबर 2019 को मतदान हुआ था जिसमें भारत ने फिलीस्तीन के आत्म निर्धारण के अधिकार के पक्ष में अपना मतदान किया था। 18 नवंबर 2019 को अमेरिका ने फिलिस्तीनी अधिकृत क्षेत्र में इजराइली अधिवासों पर अपने नीति में बदलाव की घोषणा की और इसमें कहा गया कि यहूदी नागरिक अधिवासों को अंतरराष्ट्रीय कानून से असंगत कहने का कोई लाभ नहीं मिला है और न ही इसने शांति प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है। जबकि संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता का कहना है कि यूएन का स्थाई मत है कि फिलिस्तीनी अधिकृत क्षेत्रों में इजराइली अधिवासों का होना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इजरायली अधिग्रहण जो कि 1967 में शुरू हुआ था उसका खात्मा होना चाहिए और इजराइल फिलिस्तीन समस्या का समाधान यूएन के प्रस्तावों पर आधारित होना चाहिए। इस क्रम में मेड्रिड टर्म ऑफ रेफरेंस, लैंड फॉर पीस सिद्धांत , अरब पीस इनिसियेटिव आदि के मूल भावों के अनुरूप अरब इज़रायल समस्या का समाधान होना चाहिए । इसमें एक स्थाई द्वि राज्य समाधान के लिए प्रयास करने पर बल दिया गया है साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सभी विशेषज्ञों और संगठनों तथा सभी राज्यों को फिलिस्तीन के लोगों के आत्म निर्धारण के अधिकार को अनवरत समर्थन देने का निवेदन किया गया है ।भारत में फिलिस्तीन में विकासात्मक परियोजनाओं को चलाने, क्षमता निर्माण के लिए हाल के समय में 72.1 मिलियन डॉलर की बजटीय सहायता और समर्थन प्रदान किया है और इन परियोजनाओं में मुख्य रूप से शामिल हैं, इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिप्लोमेसी का निर्माण, भारत फिलिस्तीन टेक्नोलॉजी पार्क, प्रिंटिंग प्रेस , स्कूल और हॉस्पिटल का गठन शामिल है।

भारत प्रतिवर्ष फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूनाइटेड नेशंस रिलीफ एंड वर्क एजेंसी में सहयोग दे रहा है । वर्तमान में इसके तहत भारत 5 मिलियन डॉलर का योगदान देता है । भारत ने फिलिस्तीन को शर्त रहित समर्थन और सहयोग समय समय पर देना जारी रखा । वर्ष 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन में विकास परियोजनाओं के लिए 42.1 मिलियन डॉलर उपलब्ध कराने की घोषणा की। इसके पूर्व 2017 में भारत ने फिलीस्तीन की इंटरपोल में सदस्यता का समर्थन किया था । 2017 में ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के येरूसलम पर प्रस्ताव का समर्थन किया।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीनी लोगों के आबादी के संरक्षण के लिए लाए गए प्रस्तावों के पक्ष में भारत ने मतदान किए हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत की विदेश नीति में फिलिस्तीन के अधिकारों के समर्थन पर विशेष ध्यान दिया गया है। अरब विश्व और इस्लामिक विश्व के साथ अपने मधुर संबंधों को बनाए रखने , खाड़ी देशों से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बचाए रखने आदि कारकों से भी प्रेरित होते हुए भारत ने एक संप्रभु फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए इजरायल फिलिस्तीन विवाद के शांतिपूर्ण और राजनीतिक समाधान की वकालत की है।

(लेखक अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों के जानकार है )

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