अयोध्या केस पर 30 हजार दस्तावेजों के अनुवाद को लेकर अटका मामला
राम मंदिर को लेकर इंतजार फिलहाल और लंबा होने वाला है क्योंकि इस मामले की सुनवाई कोर्ट ने 29 जनवरी के लिए टाल दी है। दरअसल मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन के जस्टिस यूयू ललित को लेकर आपत्ति दर्ज कराने के बाद अब 29 जनवरी को नई बेंच का गठन होगा। मुस्लिम पक्षकार ने जस्टिस ललित और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कनेक्शन को लेकर सवाल उठाए जिसके बाद जस्टिस ललित ने खुद को इस केस की सुनवाई से अलग कर लिया है। इसके अलावा हिंदू महासभा के वकील ने दस्तावेजों के अनुवाद की जांच करने की मांग की है।
नई बेंच की गठन के बाद दस्तावेजों के अनुवाद की पुष्टि की जाएगी। कोर्ट में कुल 13886 पन्नों के दस्तावेज पेश किए गए और 257 संबंधित दस्तावेज और वीडियो टेप की नए सिरे से जांच होनी बाकी है। इसके अलावा हाईकोर्ट के फैसले के 4304 प्रिंटेड और 8533 टाईप किए पन्नों का भी अनुवाद 29 जनवरी तक पूरा करने के निर्देश दिया गया हैं। गौरतलब है कि मामले से जुड़े मूल दस्तावेज अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू और गुरमुखी में लिखे गए हैं।
इससे पहले जब यह मामला कोर्ट में आया था तब जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दस्तावेजों के अनुवाद कराने की बात कही थी।
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। जिसमें राम लला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।
इस मामले के जानकार बताते हैं कि इतनी जल्दी सभी दस्तावेजों का अनुवाद करना संभव नहीं है। पहले भी 2017 में जब हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया था तब वकीलों ने दस्तावेज की कॉपी अंग्रेजी में मांगी थी। जिसके बाद कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अनुवाद के लिए चार महीने का समय दिया था।