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आम बजट 2018: अरुण जेटली से टैक्सपेयर्स को हैं ये 10 बड़ी उम्मीदें

आम बजट 2018 में केंद्र सरकार की ओर से टैक्स स्लैब और दरों में कुछ राहत मिलने की उम्मीद की जा रही है। टैक्स ऐंड अडवायजरी फर्म अर्न्स्ट ऐंड यंग के सर्वे के मुताबिक 69 फीसदी लोगों का मानना है कि सरकार को लोगों के हाथों में खर्च के लिए ज्यादा रकम पहुंचाने के लिए टैक्स स्लैब में छूट की सीमा को बढ़ाना चाहिए।जानें, बजट से टैक्सपेयर्स की हैं कौन सी 10 उम्मीदें… आम बजट 2018: अरुण जेटली से टैक्सपेयर्स को हैं ये 10 बड़ी उम्मीदें

स्टैंडर्ड डिडक्शन की हो सकती है वापसी: सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों का मानना था कि सरकार को तमाम पुराने डिडक्शन के प्रावधानों को खत्म कर देना चाहिए। इसके स्थान पर स्टैंडर्ड डिडक्शन की व्यवस्था को एक बार फिर से लागू करना चाहिए। फाइनैंशल इयर 2006-07 में तत्कालीन फाइनैंस मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने इस व्यवस्था को वापस ले लिया था। चेंबर्स ऑफ कॉमर्स का सुझाव है कि 1 लाख रुपये तक का स्टैंडर्ड डिडक्शन लाना चाहिए। 

टैक्स स्लैब में रियायत: टैक्सपेयर्स को उम्मीद है कि इस बजट में मोदी सरकार छूट की सीमा को 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख कर सकती है। इससे आम लोगों के हाथों में खरीददारी के लिए अधिक पैसा मिलेगा। 

मेडिकल रीइंबर्समेंट: 1999 में 15,000 रुपये के मेडिकल रीइंबर्समेंट की व्यवस्था शुरू हुई थी। टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि महंगे इलाज को ध्यान में रखते हुए इस छूट को सरकार को कम से कम 50,000 रुपये करना चाहिए। 

इनकम टैक्स ऐक्ट की धारा 80C: फाइनैंशल इयर 2014-15 में 80सी के तहत सरकार ने डिडक्शन लिमिट को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दिया था। टैक्सपेयर्स को उम्मीद है कि पीपीएफ, टैक्स सेविंग्स एफडी और अन्य प्रावधानों के तहत छूट हासिल करने के लिए इस सीमा को 2 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। 

डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स: फाइनैंस मिनिस्ट्री आगामी बजट में लाभांश वितरण कर (डीडीटी) को अलग करने की संभावना तलाश रही है। इस घटनाक्रम से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि विभिन्न हितधारकों के बीच इस विषय पर गहन बातचीत हुई है। मौजूदा समय में, यदि कोई कंपनी अपने शेयरधारकों को लाभांश देती है तो उसे 20.36 फीसदी (15 प्रतिशत से अधिक का अधिभार और उपकर) का डीडीटी चुकाना पड़ता है। 

हाउस रेंट अलाउंस: मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नै के लिए एचआरए के तहत अधिक राशि पर टैक्स छूट मिलती है। हालांकि इन 4 शहरों के अलावा बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद और चंडीगढ़ जैसे शहरों में भी रेंट काफी ज्यादा है। ऐसे में टैक्सपेयर्स को उम्मीद है कि इस कैटिगिरी में अन्य शहरों को भी शामिल करना चाहिए। 

नोटिस पीरियड पर राहत: बिना नोटिस पीरियड पूरा किए जॉब बदलने पर एंप्लॉयीज को इस दौरान की राशि कंपनी को चुकानी होती है। टैक्सपेयर्स का मानना है कि यह एंप्लॉयीज पर दोहरे झटके की तरह है क्योंकि एक तरफ उन्हें उस सैलरी पर भी टैक्स चुकाना होता है, जो उन्हें मिली ही नहीं। दूसरा, कंपनी को अधिक राशि चुकानी पड़ती है। टैक्सपेयर्स को उम्मीद है कि उस सैलरी पर ही टैक्स लगना चाहिए, जो वास्तव में उन्हें कंपनी से रिसीव हुई हो। 

लीव ट्रैवल अलाउंसेज: मौजूदा टैक्स नियमों के मुताबिक चार सालों के दौरान दो यात्राओं पर यह छूट मिलती है। यह छूट भारत में यात्रा पर मिलती है। टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस नियम में संशोधन करना चाहिए और इसे प्रति वर्ष एक यात्रा तक बढ़ा देना चाहिए। 

अलाउंसेज फॉर चिल्ड्रन एजुकेशन: टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार को बच्चों की शिक्षा और हॉस्टल पर खर्च के लिए मिलने वाले अलाउंसेज पर छूट बढ़ानी चाहिए। मौजूदा नियमों के मुताबिक दो बच्चों की एजुकेशन पर प्रति महीने 100 रुपये और हॉस्टल पर 300 रुपये के अलाउंस पर टैक्स नहीं लगता है। 

टैक्स ऑन कैपिटल गेन्स: इस साल यह चर्चा जोरों पर है कि सरकार इक्विटी मार्केट पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स लागू कर सकती है। फिलहाल एक साल तक किसी स्टॉक को बनाए रखने पर मिलने वाली इनकम पर टैक्स नहीं लगता है। निवेशकों को मानना है कि सरकार को इस छूट को बनाए रखना चाहिए। 

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