इंडिया टुडे ओपिनियन पोल: नोटबंदी का बवंडर पार कर यूपी फतह करने जा रही है BJP
नोटबंदी पर प्रधानमंत्री की अप्रत्याशित घोषणा से लोगों को हुई असुविधा के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (BJP) उत्तर प्रदेश की निर्णायक रणभूमि फतह करती नजर आ रही है. इंडिया टुडे ग्रुप के लिए एक्सिस-माई इंडिया की ओर से किए ताजा ओपिनियन पोल में पार्टियों की स्थिति के हिसाब से BJP का यूपी में सत्ता से 14 वर्ष का वनवास खत्म होता दिखाई दे रहा है.
चुनाव आयोग की ओर से 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के दिन ही इस ओपिनियन पोल को जारी किया गया. यूपी के सिंहासन के संघर्ष को लेकर किए इस ओपिनियन पोल के बड़े और अहम निष्कर्ष इस प्रकार हैं-
1. BJP को यूपी में 206 से 216 सीटें मिलने के साथ बहुमत मिलने का अनुमान है. एक्सिस-माई इंडिया ने यूपी पर जो पहला ओपिनियन पोल किया था, उससे BJP को ताज ओपिनियन पोल में 30 सीटें ज्यादा मिली हैं.
2. समाजवादी पार्टी अपने मौजूदा अवतार में 92 से 97 सीटों के अनुमान के साथ दूसरे नंबर पर दिख रही है. ये स्थिति पार्टी के अंदरूनी घमासान के बावजूद है. बीते तीन महीनों में समाजवादी पार्टी का ग्राफ ऊंचा हुआ है जबकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) दूसरे से तीसरे स्थान पर खिसक गई है.
3. BSP को 79 से 85 सीटें मिलने का अनुमान है. पिछले ओपिनियन पोल में BSP को 115 से 124 सीटें मिलती दिख रही थीं. BSP का उतार इस वजह से दिखता है कि वो अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक से हट कर दूसरे वर्गों के मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में असमर्थ रही है. 2007 में BSP ने पारंपरिक दलित वोट बैंक के साथ सवर्ण ब्राह्मणों का समर्थन आ जुटने से जीत हासिल की थी. लेकिन 2017 में BSP की गैर-दलितों में अपील सीमित दिखाई देती है.
4. राहुल गांधी के हाई वोल्टेज कैंपेन और प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति से कांग्रेस की चुनावी तकदीर पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा. ओपिनियन पोल के मुताबिक कांग्रेस को 5 से 9 सीटें मिलने का अनुमान है. 2012 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई थीं.
5. BJP को 33% वोट शेयर मिलने का अनुमान है. अक्टूबर में एक्सिस-माई इंडिया के ओपिनियन पोल में BJP को 31% ही वोट शेयर मिलता दिख रहा था.
7. SP और BSP, दोनों को यद्यपि 26% वोट शेयर मिलता दिख रहा है लेकिन SP को अधिक सीटें मिलेंगी. ये इस वजह से है कि SP का वोट शेयर प्रभाव वाले क्षेत्रों में केंद्रित है, वहीं BSP के वोट राज्य भर में फैले हुए हैं.
8. सर्वे में 76% यानि बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने नोटबंदी का समर्थन किया. लेकिन लोग इस बात पर बंटे दिखे कि क्या आम आदमी को नोटबंदी से असुविधा हुई है. 58% ने माना कि उन्हें नोटबंदी से समस्या का सामना करना पड़ा है. वहीं 42% ने कहा कि उन्हें असुविधा नहीं हुई. BJP के वोट शेयर में बढ़ोतरी होना इस बात का संकेत देता है कि नोटबंदी से असुविधा के बावजूद लोग मानते है कि पीएम मोदी के इस कदम से देश को आखिरकार लाभ होगा.
9. सर्वे के प्रतिभागियों में आधे से अधिक (51%) ने कहा कि वो मानते हैं कि नोटबंदी से काले धन और जाली नोटों के खतरे को मिटाने में मदद मिलेगी.
10. BJP की SP के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशें ज्यादा परवान नहीं चढ़ सकी हैं. 72% यादव प्रतिभागियों का कहना है कि वो अविभाजित SP को वोट करेंगे.
11. BSP का ग्राफ नीचे गिरने की एक वजह ये भी है कि पहले यूपी के मुस्लिम SP और BSP में बंटे दिखाई दे रहे थे. लेकिन अब मुस्लिम मतदाता SP की तरफ केंद्रित होते दिख रहे हैं. दिसंबर में ओपिनियन पोल में हिस्सा लेने वाले 71% मुस्लिमों ने कहा कि वो SP के पक्ष में वोट करेंगे. अक्टूबर में SP को वोट करने के इच्छुक मुस्लिम 58% ही थे. इसी अवधि में BSP का मुस्लिमों में समर्थन 21% से घटकर 14% रह गया.
12. सभी आयु-वर्गों में SP का समर्थन सबसे ज्यादा युवाओं में है. ये राज्य में युवाओं में उस छवि की वजह से जो अखिलेश अपने लिए बनाने में कामयाब रहे हैं.
13. BJP की लोकप्रियता यूपी में 60+ मतदाताओं में सबसे ज्यादा है. इस आयुवर्ग में 37% का समर्थन BJP को है जो पार्टी के ओवरऑल वोट शेयर से 4% ज्यादा है.
14. युवा अखिलेश यादव यूपी का अगला मुख्यमंत्री बनने के लिए पहली पसंद है. 33% प्रतिभागियों ने उन्हें ही पहली पसंद बताया. दूसरे नंबर पर मायावती रहीं जिन्हें 25% ने पहली पसंद बताया. हालांकि राजनाथ सिंह संकेत दे चुके हैं कि वो मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं हैं, लेकिन अब भी वो BJP के लिए सबसे अच्छे दांव हैं. 20% प्रतिभागियों ने उन्हें अगले मुख्यमंत्री के लिए पहली पसंद बताया.
15. जैसे कि पिछले ओपिनियन पोल्स में भी सामने आया था कि प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति को हैंडल करने में सबसे सक्षम नेता मायावती को माना गया था. ताजा ओपिनियन पोल में भी 48% प्रतिभागियों ने इस मामले में मायावती को पहली पसंद बताया. वहीं 28% ने अखिलेश यादव को कानून-व्यवस्था से निपटने के मामले में सबसे बेहतर बताया.
ये सर्वे 12 दिसंबर से 24 दिसंबर के बीच किया गया है. यह नोटबंदी के बीच का वक्त था, जब लोगों को कैश के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. इस सर्वे में उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में 35 सीटों को रैंडमली सेलेक्ट किया गया, जिसमें 8480 लोगों से बातचीत के सैंपल के आधार पर हमने ये ओपिनियन पोल तैयार किया है. इस ओपिनियन पोल में समाजवादी पार्टी में किसी संभावित टूट के प्रभाव पर गौर नहीं किया गया. ना ही SP, Congress और RLD के गठबंधन की संभावना के प्रभाव को आंका गया. बहु कोणीय मुकाबले में छोटे अंतर, ‘धर्मनिरपेक्ष ताकतों’ का एकजुट होना मौजूदा सारे समीकरणों को बदल सकता है.
मौजूदा स्थिति से क्या बदलाव हो सकता है, इस पर एक्सिस-माई इंडिया के मुख्य सर्वेक्षक प्रदीप गुप्ता ने इंडिया टुडे को बताया- ‘जैसे कि अभी मुस्लिम वोट SP के पीछे केंद्रित हैं. लेकिन अगर समाजवादी पार्टी टूटती है तो मुस्लिम अपने समर्थन पर दोबारा विचार कर सकते हैं. अल्पसंख्यक एक बार फिर BSP के पाले में जा सकते हैं या अखिलेश और कांग्रेस के गठबंधन की तरफ झुक सकते हैं. दलित और मुस्लिम वोट एक साथ जुटते हैं तो ये BJP के लिए गंभीर चुनौती साबित हो सकता है.’
नोटबंदी की वजह से विपरीत हवा के झोंकों से जूझने के बावजूद BJP का कहना है कि वो इंडिया टुडे के पोल से भी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर सकती है. पार्टी के यूपी प्रभारी महासचिव ओम माथुर ने इंडिया टुडे से कहा, ‘बीते ढाई साल से BJP कार्यकर्ता प्रदेश के हर बूथ पर काम कर रहे हैं. हमारी कोशिशें उस से भी बेहतर नतीजें दिखाएंगी जो आपने अपने पोल में दिखाया है. हमारी अपनी गणना कहती है कि हम 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करेंगे. आप ये मुझसे लिखित में ले सकते हैं.’
BSP के प्रतिनिधियों ने एक्सिस-माई इंडिया ओपिनियन पोल पर कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार किया. उनका कहना था कि पोल्स हमेशा BSP के वोट शेयर को कम करके आंकते हैं. वो जनता है जो उनकी पार्टी के लिए बोलती है.
पोल के निष्कर्षों पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने इंडिया टुडे से कहा- ‘समाजवादी पार्टी के मौजूदा मतभेद बातचीत से सुलझा लिए जाएंगे और SP एकजुट मोर्चे के तौर पर चुनाव लड़ेगी. हम बहुत आश्वस्त हैं कि विकास के मुद्दे को आगे कर अखिलेश यादव SP को फिर जीत दिलाएंगे. राज्य में ऐसा कोई नहीं जो अखिलेश की प्रगतिशील छवि के आगे टिक सकता है.’