उत्तराखंडराज्य

इस गावों में आज भी ग्रामीण मरीजों को ले जाते हैं डोली में

बागेश्वर: यहां आज भी ग्रामीण मरीजों को डोली में बैठाकर अस्पताल ले जाते हैं। ये बिडंबना है स्वतंत्रता सेनानियों के गावों की। यहां आजादी के बाद से आज तक एकाद सड़क नहीं बन पाई। यहां आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं। तहसील के कई गांव ऐसे हैं जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई और इसके लिए कई बहादुरों ने अपनी जान भी गवाईं।इस गावों में आज भी ग्रामीण मरीजों को ले जाते हैं डोली में

देश आजाद हुआ तो चुने गए जन प्रतिनिधियों ने इन गांवों को ओर अपना मुंह मोढ़ लिया। फलस्वरूप ये गांव आज तक यातायात की सुविधा से ही नहीं जुड़ पाए हैं। गरुड़ के सिल्ली, मटेना, जिनखोला और बंड के कई सपूतों ने स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन में अपनी जान देश पर न्यौछावर कर दी। सात दशक बाद भी इन गांवों को यातायात की सुविधा नहीं मिल सकी है। ग्रामीण इसके लिए लंबे समय से मांग उठा रहे हैं। लोकसभा के चुनाव हों या फिर विधानसभा के चुनाव प्रत्येक प्रत्याशी इन गांवों की दुर्दशा पर आंसू बहाना नहीं भूलता है। 

वायदा करता है कि अगर वह जीत गया तो इन गांवों को यातायात की सुविधा देगा, परंतु कुर्सी मिली तो वह सब कुछ भूल जाता है। यातायात सुविधा न होने के कारण इन गांवों के लोग 108 आपातकालीन सेवा का लाभ भी नहीं ले पाते हैं। कई किलोमीटर पैदल चलकर इन गांवों के लोग आज भी मरीज को डोली में लिटाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बैजनाथ ले जाते हैं।  मटेना की प्रधान शकुंतला कांडपाल, जिनखोला की प्रधान नरुली देवी, बंड के प्रधान नंदन सिंह, कोटुली के प्रधान कैलाश चंद्र, क्षेत्र पंचायत सदस्य प्रेमा नेगी, हेम चंद्र पांडे, कैलाश पांडे आदि ने ब्‍लॉक मुख्यालय से शीघ्र इन गांवों को सड़क बनाने की मांग की है।

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