सरकार को उम्मीद है कि इलेक्ट्रॉनिक (E-way) बिल्स की शुरुआत के बाद गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) कलेक्शन में 20-25 फीसदी की वृद्धि होगी। इससे माल के आवाजाही पर नजर रखी जा सकेगी और रेवेन्यू लीकेज को रोका जा सकेगा।
1 फरवरी से अनिवार्य
राष्ट्रीय ई-वे बिल्स 1 जनवरी तक तैयार हो जाएगा, कंपनियां 15 जनवरी से इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग टूल प्राप्त कर सकती हैं और 1 फरवरी से यह अनिवार्य होगा। अंतर्राज्यीय बिल्स को जून से अनिवार्य किया जाएगा। यह अलग-अलग राज्यों के ई-वे बिल्स के अंतर को दूर करेगा।
इस समय इसका कर्नाटक में ट्रायल चल रहा है और अधिकारियों का कहना है कि सिस्टम ठीक से काम करा है। राज्य में प्रतिदिन 1.1 लाख ई-वे बिल्स तैयार हो रहे हैं। पूरे देश में लागू होने के बाद सरकार को उम्मीद है कि प्रतिदिन 40 लाख ई-वे बिल्स जेनरेट होंगे। इसमें से 15-16 लाख यानी करीब 40 फीसदी अंतरराज्यीय होंगे।
अधिकारी ने बताया कि करीब 50 फीसदी माल, जिनसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार होता है, को छूट होगी और 50,000 और इससे अधिक मूल्य के सामानों के लिए ही ई-वे बिल की जरूरत है। गैर मोटर चालित वाहनों से सामानों की आवाजाही होने पर भी इसकी जरूरत नहीं होगी।
यह एक टोकन है, जो माल की आवाजाही के नियमन के लिए ऑनलाइन जेनरेट किया जा सकता है। यह देशभर में वैलिड होगा।
कैसे जेनरेट करते हैं इसे?
-कोई भी आपूर्तिकर्ता, प्राप्तकर्ता, ट्रांसपोर्टर इसे जेनरेट कर सकते हैं।
-ट्रैकिंग के लिए यूनीक ई-वे बिल नंबर और क्यूआर कोड जेनरेट होगा।
-SMS आधारित सुविधा भी उपलब्ध है।
कैसे काम करेगा?
-पूरी यात्रा के दौरान केवल एक बार वेरीफिकेशन होगा।
-जांच और वेरीफिकेशन की ऑनलाइन रिपोर्टिंग होगी।
-30 मिनट से अधिक समय तक मालवाहन के रोके जाने पर ट्रांसपोर्ट्र की इसकी जानकारी अपलोड कर सकते हैं।
-50 हजार रुपये से कम मूल्य के सामान।
-अंतरराष्ट्रीय पोर्ट से आंतरिक क्षेत्र में लाए जा रहे सामान।
-केंद्र-राज्य द्वार निर्धारित विशेष क्षेत्र में अंतर्राज्यीय आवाजाही।
फायदा
-चेक पोस्ट पर वेटिंग टाइम में कमी
-पूरी तरह ऑनलाइन प्रोसेस
-भ्रष्टाचार के लिए कोई मौका नहीं।