उत्तराखंड में गंगा को अविरल बनाने के लिए नमामि गंगे की डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) में जल विद्युत परियोजनाएं न लगाने की बात कही गई है। साथ ही गंगा के मोक्षदायिनी रूप को निखारने की कोशिश की जाएगी। गंगा किनारे औषधीय गुणों वाले पौधे, वनस्पतियां लगेंगी। साथ ही राज्यों ने गंगा की सहयोगी नदियों को भी परियोजना में शामिल करने की कवायद शुरू कर दी है।
नमामि गंगे परियोजना की डीपीआर 3 दिसंबर को दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की अध्यक्षता वाली कमेटी के समक्ष पेश होनी है। इसमें गंगा को अविरल, निर्मल और मोक्षदायिनी बनाने के तीन बिंदु मुख्य हैं।
वन विभाग के भागीरथी वृत्त के वन संरक्षक एसपी सुबुद्धि ने बताया कि गोमुख से ऋषिकेश तक गंगा को अविरल बनाया जाएगा। यहां गर्मियों के दिनों में कई स्थानों पर गंगा का पानी सूख जाता है। उत्तराखंड में गंगाजल शुद्ध है, यहां प्राथमिकता अविरलता की है। इसी से विद्युत जल परियोजनाओं को स्वीकृति नहीं मिल रही है।
डीपीआर के उत्तराखंड प्रोजेक्ट पर अविरलता पर जोर है। गंगा किनारे पौधे लगने से जलधारा अविरल रहेगी। यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में समस्या गंगा की निर्मलता की है। यहां सीवरेज, उद्योगों का गंदा पानी नदी में मिलता है। इन दोनों के बाद मोक्षदायिनी का मुद्दा आता है।
इधर, नमामि गंगे की डीपीआर के तैयार होने पर सहयोगी नदियों का मुद्दा फिर खड़ा हो गया है। मिशन की पहली बैठक में रियोजना में शामिल राज्यों ने सहयोगी नदियों को भी नमामि गंगे में शामिल करने के लिए कहा था, लेकिन उस वक्त इसे टाल दिया गया। इस मुद्दे को राज्य फिर 3 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली बैठक में उठाएंगे।