उत्तराखंड

उत्तराखंड में तबाही का सबब बन सकती है गंगा की धारा

दस्तक टाइम्स/एजेंसी- उत्तराखंड: flood-460-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-55bde4eda2017_exlst जून 2013 में केदारनाथ त्रासदी से सबक लेते हुए अब गंगा की धारा में हो रहे बदलाव का अध्ययन किया जा रहा है।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की ओर से आईआईटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इसके तहत देवप्रयाग से फरक्खा बैराज तक गंगा की धारा का आकलन कर खतरनाक क्षेत्रों को चिह्नित किया जाएगा ताकि केदारनाथ आपदा जैसी तबाही कहीं और न हो।

अध्ययन के लिए 2.28 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि 16 जून 2013 को केदारनाथ में आई आपदा की मुख्य वजह नदी में लैंड स्लाइड और अतिक्रमण को माना जाता है।

 

वैज्ञानिकों के अनुसार नदियां हर 50 से 100 वर्षों के भीतर अपना पूर्व आकार ग्रहण करती हैं जो तबाही का सबब बनता है। ऐसे में यदि नदियों में हो रहे अतिक्रमण को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में यह और भी खतरनाक साबित हो सकता है।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की ओर से भी नदियों में 200 मीटर के दायरे में किसी प्रकार के अतिक्रमण पर रोक लगाने के सख्त निर्देश दिए गए हैं।

अपने अध्ययन में आईआईटी देवप्रयाग से फरक्खा तक गंगा की धारा में हुए बदलाव का बारीकी से आंकड़े जुटाएगा। अध्ययन के दौरान 1970 से लेकर अब तक गंगा की धारा में हुए बदलावों की जानकारी जुटाई जाएगी।

‘दो हजार किमी से अधिक के क्षेत्र में गंगा की धारा का अध्ययन किया जाना है। 50-50 किमी लंबाई लेकर अध्ययन कार्य शुरू किया जाएगा। फिलहाल इसके लिए सर्वे ऑफ इंडिया से सीट मांगी गई है ताकि गंगा के पुराने स्वरूप की सही जानकारी प्राप्त हो सके।’

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