एजेन्सी/ नई दिल्ली/देहरादून : उत्तराखंड के राजनीतिक संकट ने शनिवार देर रात एक नया मोड़ ले लिया, क्योंकि केंद्र सरकार सोमवार को होने जा रहे कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत के विश्वास मत परीक्षण से पहले राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार कर रहा है और ऐसी खबरें भी हैं कि विधानसभाध्यक्ष ने नौ बागी कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया है जिससे विधानसभा का अंकगणित पूरी तरह बदल जाएगा।
कांग्रेस के उन नौ विधायकों को अयोग्य ठहराने के विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के कथित फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या 61 रह जाएगी। इन नौ विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत की और भाजपा से हाथ मिला लिया। ऐसे में रावत के पास छह समर्थकों के अलावा 27 कांग्रेस विधायक होंगे और इस तरह सदन में सत्तापक्ष के पास 33 विधायक होंगे। ऐसी स्थिति में रावत विश्वासमत परीक्षण जीत जायेंगे।
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हालांकि इस स्थिति में एक अज्ञात कारक यह है कि केंद्र की मोदी सरकार विश्वास मत परीक्षण से पहले क्या करती है। केंद्र सरकार को विधायकों के बगावत से उत्पन्न राज्य की नवीनतम स्थिति के बारे में राज्यपाल के.के. पॉल से रिपोर्ट मिल गयी है। असम की यात्रा संक्षिप्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधानी में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलायी जो उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने समेत केंद्र के सामने उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर विचार करने के लिए करीब एक घंटे चली।
वैसे इस बैठक में क्या चर्चा हुई, इसके बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन सूत्रों ने कहा कि मंत्रिमंडल अंतिम निर्णय लेने के लिए आज फिर बैठक करेगा। वैसे इधर जब केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक चल रही थी तब रावत ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष से उनके आवास पर भेंट की।
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जहां उत्तराखंड की स्थिति पर विचार करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बैठक की, वहीं कांग्रेस ने जोर देकर कहा कि उसकी सरकार को विधानसभा में बहुमत प्राप्त है और उसने विधिवत निर्वाचित सरकार को ‘हास्यास्पद स्टिंग ऑपरेशन’ के आधार पर गिराने की कोशिश की निंदा की। दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में आनन-फानन में बुलाये गये संवाददाता सम्मेलन में पार्टी महासचिव अंबिका सोनी ने मोदी सरकार एवं भाजपा की जमकर आलोचना की और उन पर राज्य की रावत सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया।
इस बीच भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिला और उसने यह कहते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की कि रावत सरकार को एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है जिसमें उन्हें सदन में विश्वास मत परीक्षण से पहले बागी विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए उनसे सौदेबाजी करते हुए देखा गया।
राष्ट्रपति को भाजपा की ओर से सौंपे गए ज्ञापन में राज्यपाल की भी यह कहते हुए आलोचना की गयी है कि उन्होंने राज्य सरकार को बर्खास्त करने के विधानमंडल के बहुमत के अनुरोध पर कदम नहीं उठाया और उलटे रावत को अपना बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन का समय दे दिया।
बागी कांग्रेस विधायकों ने आरोप लगाया कि सदन में विश्वास मत परीक्षण के दौरान समर्थन के लिए मुख्यमंत्री द्वारा रिश्वत की पेशकश की गयी और उन्होंने मुख्यमंत्री की संलिप्तता वाला स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो दिखाया। वैसे मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे फर्जी करार दिया। बागी विधायकों को कुंजल की ओर से दल-बदल कानून के तहत मिले नोटिस पर जवाब देने की समय सीमा शनिवार शाम को खत्म हो गयी।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह भाजपा प्रमुख अमित शाह के ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ के कारनामे हैं वहीं भाजपा ने रावत सरकार को ‘तत्काल बर्खास्त’ करने की मांग की। विधानसभाध्यक्ष ने विधानसभा में हंगामा के एक दिन बाद नौ विद्रोही विधायकों को 19 मार्च को नोटिस जारी किया था। इन बागी विधायकों ने राज्य के वार्षिक बजट पर विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की उनकी मांग विधानसभाध्यक्ष द्वारा नहीं माने जाने पर भाजपा विधायकों के साथ मिलकर सरकार विरोधी नारे लगाए और शोर शराबा किया था।
रावत ने विधानसभा अध्यक्ष के साथ भेंट के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘सदन के नेता के तौर पर मैंने संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा हृदयेश के पिछले पत्र के प्रति को अपना समर्थन दिया है जिसमें उन्होंने नौ बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए विधानसभा अध्यक्ष को लिखा था और उसके लिए आधार बताया था कि विधानसभा में उनके आचरण से सामने आया है कि वे अपनी मनमर्जी से पार्टी के विरूद्ध गए।’