उत्तराखंड

उत्तराखंड सीएम के नजदीकियों ने खोल रखी है ‘दुकान’

trivendra-singh_1461361985कोश्यारी, निशंक और खंडूड़ी के बाद प्रदेश भाजपा में अगली पीढ़ी के नेताओं की चर्चा होती है तो उनमें पूर्व कैबिनेट मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम काफी ऊपर माना जाता है। युवा होने के साथ-साथ उत्तराखंड के अलावा राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले रावत इस बार पूरे फॉर्म में नजर आ रहे हैं।
 
सामान्य चुनाव के बाद उपचुनाव में हार का स्वाद चखने के बाद अबकी बार उन्होंने अपनी तैयारियां बदली हैं। चर्चा तो यह भी है कि अगर भाजपा सरकार बनाने में कामयाब होती है तो मुख्यमंत्री के पद पर उनकी दावेदारी प्रबल है। साफ-सुथरी राजनीति करने के लिए पहचाने जाने वाले त्रिवेंद्र रावत ने अपनी इस विशेषता का प्रमाण सियासी संकट पैदा करने के लिए हुई जोड़तोड़ से दूरी बनाकर भी दिया था। अमर उजाला के स्टेट ब्यूरो चीफ संजय त्रिपाठी के साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत की खास बातचीत में ऐसे ही तमाम पहलुओं पर चर्चा हुई।

आप लगातार दो चुनाव हारे हैं, लोग कहते हैं, अपनों ने ही काम लगा दिया था? 
– यह सब बातें हम भूल चुके हैं। जिन लोगों से जो भी गिले-शिकवे थे, सब दूर हो गए हैं और अब हम सब एक हैं। इन बातों को कुरेदने से अब कोई लाभ नहीं अलबत्ता नुकसान ही होगा।

आपके बीच के लोगों की मानें तो उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी मित्र विपक्ष की भूमिका में नजर आती है?
– कांग्रेस के लोग इस तरह की बातें मीडिया के माध्यम से फैला रहे हैं। भ्रष्टाचार, शराब का अवैध व्यापार, खनन समेत अन्य सभी मुद्दों पर हम सरकार को घेरते रहे हैं। मुख्यमंत्री की बेहिसाब घोषणाओं के पूरे न होने पर भी निंदा और आलोचना की गई है।

गुटबाजी की बातें खुलकर सामने आ गई हैं। खंडूड़ी-कोश्यारी की क्या व्यथा है?
– जहां तक मुझे पता है, उनकी कोई निजी व्यथा नहीं है। सभी संगठन के बारे में सोचते हैं। कोश्यारी और खंडूड़ी दोनों ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं। निजी महत्वाकांक्षा या पीड़ा नजर नहीं आती है। कुछ हद तक मतभेद हर जगह होते हैं, जिन्हें भूलकर चुनाव लड़ा जाएगा।

आंतरिक झगड़े का दौर सा चल गया है, जिसमें भाजपा भी बुरी तरह उलझी है?
– मैं यह मानता हूं कि आपसी झगड़े से नुकसान बहुत होता है। मगर ऐसे मौके पर पार्टी नेतृत्व की भूमिका अहम होती है, जो विवाद समाप्त करने की कोशिश करता है। एक-दूसरे के प्रति सम्मान होना चाहिए। मतभेद हो सकते हैं, मगर मनभेद कहीं नहीं हैं।

कभी जिनके खिलाफ मोर्चा खोला करते थे और अब वे पार्टी में हैं। चुनाव में भाजपा के पास कांग्रेस के खिलाफ मुद्दों का अकाल सा नजर आता है?
– बाहर से जो लोग भाजपा में शामिल हुए हैं, उनकी स्वीकार्यता बन चुकी है। जहां तक मुद्दों के अकाल की बात है तो उसके लिए कांग्रेस के घोषणावीर मुख्यमंत्री हरीश रावत ही काफी हैं। सीएम के नजदीकियों ने दुकान खोल रखी है। कोई भी आदमी अपना फंसा हुआ काम सीधे इन लोगों के जरिए करवा सकता है।

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