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उत्तराखंड: हाईकोर्ट में सिंघवी ने दी ये 3 दलील, राज्यपाल की रिपोर्ट पर उठाए सवाल

एजेन्सी/  abhishek-manu-singhviउत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर कांग्रेस की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने जोरदार तरीके से अपनी दलील दी. सिंघवी ने राज्यपाल केके पॉल की रिपोर्ट और केंद्र सरकार के मंशे पर सवाल उठाए. अब इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी.

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी आज कोर्ट नहीं पहुंच पाए थे. ऐसे में हाईकोर्ट ने कहा बिना अटार्नी जनरल का पक्ष कोई फैसला सुने नहीं सुनाया जाएगा. इससे पहले अदालत ने सुनवाई करते हुए 2 दिन तक केस स्थगित करने की केंद्र की अपील खारिज कर दी.

दांव पर रावत का सियासी भविष्य

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने याचिका दायर की थी. प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस के नौ विधायक बागी हो गए थे और फिर रावत सरकार अल्पमत में आ गई थी. इसके बाद आए एक तथाकथित स्टिंग ऑपरेशन के बाद केंद्र ने वहां 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. इसे रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

अभिषेक मनु सिंघवी की तीन प्रमुख दलील:

1. राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग किया गया है

2. अप्रोप्रिएशन बिल सिर्फ एक बहाना है, जिसे केंद्र सरकार इस्तेमाल कर रही है.

3. एसआर बोम्मई और रामेश्वर केस का भी हवाला दिया. केंद्र सरकार का बार-बार सुनवाई को स्थगित करवाना गलत है.

नैनीताल हाईकोर्ट में अभी तक क्या-क्या हुआ?

-19 मार्च को असेंबली को स्पीकर ने भेजा बिल, असेंबली का रिकॉर्ड भी यही कहता है, सिंघवी ने कोर्ट के सवाल पर दिया जवाब. उन्होंने कहा, राज्यपाल को बिल भेजने में हुई सामान्य देरी.

-राज्यपाल या केंद्र सरकार स्पीकर के फैसले पर नहीं दे सकते दखल, सिंघवी ने कोर्ट में दिया संवैधानिक प्रावधान का हवाला.

-हाईकोर्ट में सिंघवी ने 1996 में संसद की एक बहस का दिया उदाहरण, कहा- स्पीकर के फैसले पर नहीं उठ सकते सवाल.

-17 मार्च को 5 विभागों का बजट पारित हुआ. संविधान के अनुच्छेद-212 में साफ उल्लेख, स्पीकर को सदन चलाने की आजादी है.

-केंद्र के जवाब के उत्तर में सिंघवी ने संवैधानिक पीठों के फैसले की नजीर का किया उल्लेख

-विनियोग विधेयक पारित होने के बाद की मत विभाजन की मांग: सिंघवी

-सिंघवी की दलील राज्यपाल सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं, कैसे सदन चले यह तय करना राज्यपाल का काम नहीं है.

-विधेयक मामले पर अनुच्छेद- 200 के तहत सिंघवी ने नम्बूदरी केस का दिया हवाला.

-हाईकोर्ट ने सिंघवी से पूछा, राष्ट्रपति शासन के नोटिफिकेशन से पहले राज्यपाल को क्यों नहीं भेजा गया बिल, क्यों है इस मामले पर विरोधाभास?

-सिंघवी बोले, राज्यपाल ने पहले फ्लोर टेस्ट को कहा फिर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भेजी, जो गलत है.

-सिंघवी की दलील, धारा 356 लगाकर विधानसभा निलंबित करना असंवैधानिक, ये कानूनी नहीं राजनीतिक फैसला, बोम्मई केस में 9 जजों की संवैधानिक पीठ का दिया हवाला.

-केंद्र ने आपत्ति दाखिल करने को मांगा समय

-हरीश रावत की ओर से कल फाइल हुआ प्रतिशपथ पत्र.

-18 मार्च के घटनाक्रम का जिक्र.

-विभागवार बजट पास होने की कही गई बात.

-हरीश रावत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि गवर्नर तय नहीं कर सकते विधेयक कैसे पारित हो.

-हरीश रावत द्वारा संसोधन प्रार्थना पत्र पर बहस जारी.

-केन्द्र ने मांगा कोर्ट से जबाब दाखिल करने के लिए समय.

-केन्द्र सरकार को नहीं मिला कोर्ट से समय.

-कोर्ट ने कहा बिना अटार्नी जनरल का पक्ष सुने नहीं सुनाया जाएगा कोई फैसला.

-अटार्नी जनरल अभी तक नहीं पहुंचे कोर्ट, दोपहर 3 बजे आने का बताया जा रहा है एजी के कोर्ट पहुंचने का समय.

-सिंघवी बोले, सरकारिया आयोग की सिफारिशें, आपात स्थिति और संवैधानिक संकट के बहाने सत्ता हासिल करने को 356 का उपयोग गलत.

-राज्यपाल की रिपोर्ट पर अभिषेक मुन सिंघवी ने उठाए सवाल.

-राज्यपाल की ओर से लिखे गए कई पत्र

-राज्य की परिस्थितियों पर की जा सकती थी संस्तुति.

हरीश रावत की याचिका पर एक एकल पीठ ने सरकार को 31 मार्च को शक्ति परीक्षण का निर्देश दिया था. इस पर दो जजों की एक बेंच ने 30 मार्च को रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी कांडपाल का कहना है कि केन्द्र का पक्ष प्रथमदृष्टया कमजोर लगता है. हाईकोर्ट तमाम दस्तावेज और साक्ष्यों के आधार पर फैसला करेगा लेकिन ये फैसला उत्तराखंड के लिए इतिहास बन सकता है.

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