दस्तक-विशेष

एटमिक खतरे की ओर बढ़ रहा दक्षिण एशिया

डा. रहीस सिंह

atom dangerपिछले दिनों लुसाने (स्विट्जरलैंड) में ‘पी-5+1’ देशों ने लम्बी कवायद के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर समझौते की रूपरेखा पर आंशिक सफलता अर्जित कर ली। माना जा रहा है कि अब ईरान अपनी यूरेनियम एनरिचमेंट क्षमता में कमी लाएगा और बदले में उस पर लगे प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से हटा लिया जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इसे ‘ऐतिहासिक सहमति’ मानते हैं, लेकिन यह सार्वभौमिक निष्कर्ष नहीं है। इस सहमति को उस स्थिति में ऐतिहासिक कहना गलत नहीं होगा जब हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गये ‘लिटिल व्याय’ और ‘फैट मैन’ की तुलना में आज के हाइड्रोजन बमों की क्षमता को देखने की कोशिश की जाएगी और हिरोशिमा के लगभग 90,000 से 1,66,000 के बीच तथा नागासाकी के 60,000 से 80,000 के आसपास लोगों के जीवन का समाप्त होने सम्बंधी भयावह चित्र मस्तिष्क में निर्मित किया जाएगा। हालांकि इसके बावजूद भी कुछ अहम सवाल बाकी हैं, जिनके उत्तर तलाशना जरूरी है? पहला यह कि क्या इस सहमति के बाद एशिया में परमाणु खतरा पूरी तरह से समाप्त हो गया? दूसरा यह कि ईरानी परमाणु बम को ‘पी-5+1’ ने एशियाई शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा क्यों माना, जबकि पाकिस्तान जैसे देश कहीं अधिक खतरनाक हैं जिसे न केवल चीन बल्कि अमेरिका भी सहयोग दे रहा है? आखिर पाकिस्तान या चीन-पाकिस्तान परमाणु कार्यक्रम को दुनिया खतरे के रूप में क्यों नहीं देखती ?

तमाम अध्ययन रिपोर्टें यह बताती हैं कि पाकिस्तान दुनिया का ऐसा देश है जो सबसे तीव्र गति से अपना नाभिकीय शस्त्रागार विकसित कर रहा है। उसने हाल ही में इस दिशा में नये डेवलपमेंट किए हैं, वे भारतीय हितों के समक्ष आने वाले समय में चुनौती उत्पन्न कर सकते हैं। यह वास्तव में चिंता का विषय है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है कि चीन पाकिस्तान को अपना सबसे विश्वस्त साथी मानते हुए, उसे लगातार परमाणु हथियारों सहित अन्य कई प्रकार से ऐसी सहायता करे जिसका भारत के विरुद्ध एक मोर्चा तैयार करना हो। ध्यान रहे कि अभी हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने घोषणा की है कि उन्होंने 8 डीजल-इलेक्ट्रिक सबमैरिन खरीदने के लिए चीन के साथ एक नये करार को स्वीकृति दी है। न्यूक्लियर मिसाइलों से सुसज्जित इन सबमैरिन्स को पाकिस्तान चीन से 5 बिलियन डॉलर में खरीदेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका इन गतिविधियों को देखते हुए चीन-पाकिस्तान की साझा नाभिकीय रणनीति पर अंकुश नहीं लगाता बल्कि उसे सामरिक हथियारों की आपूर्ति भी करता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने 95 करोड़ 20 लाख डॉलर मूल्य के करार को मंजूरी दी है जिसके तहत पाकिस्तान को 15 एएच-1जेड जेट फाइटर, 1000 हेलफायर मिसाइलें और अन्य हथियारों की आपूर्ति की जाएगी। खास बात यह है कि अमेरिका दुनिया को यह भरोसा नहीं दिला पा रहा है कि उसके द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं किया जाएगा। उसका तर्क यह है कि ऐसा करना अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के अनुकूल है, इसलिए ऐसा कर रहा है। क्या इसे दक्षिण एशियाई शांति के अनुकूल माना जा सकता है?
पाकिस्तान लगातार अपने परमाणु हथियारों के जखीरे में वृद्धि के साथ-साथ न्यूक्लियर वारहेड्स को ले जाने वाली मिसाइलों की संख्या में भी वृद्धि करता रहता है। अभी पिछले महीने ही उसने बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया था। यह मिसाइल भारत के किसी भी हिस्से तक नाभिकीय हथियारों को ले जाने में सक्षम है।
भले ही भारत इस बात को स्पष्ट रूप से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर व्यक्त न कर पाए लेकिन सच तो यह है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ लगातार अपनी तैयारियों को पूरा करने की रणनीति पर कार्य कर रहा है और परमाणु हथियार व लांचिंग वेहिकल (मिसाइल) कार्यक्रम उसी का हिस्सा है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ भी अपने अध्ययनों के जरिए इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि पाकिस्तान लगातार शार्ट रेंज टैक्टिकल वीपंस का निर्माण कर रहा है जिनका भारत के खिलाफ युद्ध में प्रयोग करना एकमात्र उद्देश्य है।
पाकिस्तान के ये प्रयास पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत को शत्रु मानने के जुनून को दर्शाते हैं। इस राष्ट्र का यही जुनून पाकिस्तानी जनरलों को सरकार पर मजबूत नियंत्रण बनाए रखने की ताकत देता है। यही नहीं, यही कारण राष्ट्र के संसाधनों की मांग के लिए सेना को ताकत देता है और पाकिस्तान के सामाजिक-आर्थिक डायनामिक्स को विपरीत दिशा में ले जाता है, जिसका इस्तेमाल जनरल और राजनीतिक नुमाइंदे भारत के खिलाफ करते हैं।
अगर सिपरी (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) सहित कुछ अन्य रिपोर्टों पर नजर डालें तो पाकिस्तान के पास इस समय 120 नाभिकीय हथियार हैं और उनके इसी दशक में तीन गुने तक पहुंच जाने की उम्मीद है।
हो सकता है कि पाकिस्तानी परमाणु हथियारों में हो रही तीव्र वृद्धि भारत को नाभिकीय हथियारों की होड़ के लिए उकसाए, जो अभी 100-110 के आसपास हथियार रखता है। लगभग 250 परमाणु हथियार रखने वाला और एशिया का सबसे आक्रामक देश, चीन पाकिस्तान के साथ तेजी से गठजोड़ बना रहा है।
चीन इस समय पाकिस्तान के लिए सबसे अधिक सैन्य सामग्री आपूर्ति करने वाला देश है। वह पाकिस्तान को जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और लड़ाकू विमान दे रहा है। उसने पाकिस्तान में कम से कम दो परमाणु संयंत्रों का निर्माण कर रहा है। कुछ वर्ष पहले संडे टाइम्स के पत्रकार साइमन हैंडरसन ने एक खबर लिखी थी जिसमें उसने उस पत्र के खुलासे के दौरान यह भी लिखा था कि इस पत्र में (जो उन्होंने अपनी पत्नी के नाम लिखा था) डॉ. कादिर खान ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के चीन के साथ सम्बंधों को रेखांकित किया है।
‘डिसेप्शन पाकिस्तान द यूनाइटेड स्टेट्स एंड द ग्लोबल वेपन कांसिपिरेसी’ नाम की एक पुस्तक में जिन तथ्यों का खुलासा किया गया है वे साफ-साफ बताते हैं कि जिमी कार्टर से लेकर राष्ट्रपति बुश तक के नेतृत्व वाली सभी सरकारों ने हमेशा पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर अपनी आंखें मूंदे रखीं। अमेरिका जान रहा था कि चीन पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को सहयोग दे रहा है, लेकिन फिर भी वह चुप रहा।
आज भी लगभग यही स्थिति है। इसलिए ऐसे में यह सवाल उठता है कि यदि चीन-पाकिस्तान हिंद महासागर में अपनी मिसाइलें तैनात करने सम्बंधी योजना बना लें (वैसे चीन ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स’ नीति का अंतिम लक्ष्य यही लगता है) और भारत भी अपनी सुरक्षा की चिंता करते हुए, ऐसा ही कदम उठाए। तो केवल हिन्द महासागर का ही मिजाज नहीं बिगड़ेगा बल्कि पूरे एशिया (विशेषकर दक्षिण एशिया) का मिजाज बिगड़ जाएगा, जिसे पुन: पुरानी स्थिति में ले जाना बेहद मुश्किल होगा। अब देखना है कि दुनिया चीन-पाकिस्तान गठजोड़ को गम्भीरता से लेगी या फिर मूक-बधिर के अभिनय के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश करती रहेगी।

Related Articles

Back to top button