एनसीडीआरसी ने डॉक्टर को दिया मरीज को 8 गुना मुआवजे का आदेश, इलाज में लापरवाही और गलत बिल
नई दिल्ली : हरियाणा के पंचकुला के एक डॉक्टर को मरीज का गलत इलाज करना और ज्यादा बिल बनाना भारी पड़ गया। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी)ने मरीज को मानसिक यातना और दर्द के लिए डॉक्टर पर तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। सर्वोच्च उपभोक्ता आयोग के बेंच में शामिल आर के अग्रवाल और सदस्य एम श्रीशा ने डॉक्टर गीता जिंदल को पीडि़त को मेडिकल खर्च का आठ गुना से ज्यादा मुआवजा देने का आदेश दिया। बेंच ने कहा कि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को मुआवजे की राशि का भगुतान करना होगा क्योंकि डॉक्टर के पास क्षतिपूर्ति पॉलिसी थी। ट्राइब्यूनल ने कहा कि डॉक्टर ने मरीज के इलाज में न केवल लापरवाही दिखाई बल्कि उसको गलत बिल भी दिया। पीडि़त का सही इलाज नहीं किया गया। इसलिए उन्होंने जो बिल दिया वह गलत था। ट्राइब्यूनल ने हरियाणा के रहने वाले दिनेश जोशी द्वारा राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 10 मई 2016 के आदेश के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर यह फैसला सुनाया। राज्य आयोग ने दिनेश जोशी की याचिका को खारिज कर दिया था। राज्य आयोग में दाखिल याचिका में जोशी ने डॉक्टर द्वारा गलत इलाज के लिए उनसे ली गई राशि वापस करवाने का आग्रह किया था। याचिका के अनुसार जोशी पंचकुला में 4 अक्टूबर 2011 को जिंदल के पास इलाज के लिए गए थे। मरीज के कूल्हे में जबरदस्त दर्द था। जिंदल ने उन्हें दवा देते हुए कहा कि उनका दर्द दो दिन में कम हो जाएगा। हालांकि दो दिन बाद भी जोशी का दर्द कम नहीं हुआ और डॉक्टर जिंदल के पास पहुंचे। उनको हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया गया। डॉक्टर जिंदल ने इस बीमारी के इलाज के लिए पहले जहां केवल 7,000 रुपये का खर्च बताई थीं वहीं, अस्पताल में उन्होंने जोशी को 36,450 रुपये का बिल दिया। याचिका में दावा किया गया था कि डॉक्टर ने जोशी को 12,500 रुपये आईसीयू का चार्ज लगाया। जबकि उन्हें वहां भर्ती ही नहीं कराया गया था। इसके अलावा मरीज को सर्जिकल उपकरणों का भी बिल दिया गया जबकि उसका उपयोग कभी उनपर किया ही नहीं गया। ट्राइब्यूनल ने माना कि एक सामान्य प्रक्रिया में प्राइवेट नर्सिंग होम या हॉस्पिटल मरीज को सभी प्रकार की दवाएं और सर्जिकल उपकरण देते हैं, जो मरीज पर उपयोग किया जा सकता है और उसके बाद उपयोग के अनुसार बिल बनाया जाता है। ट्राइब्यूनल ने कहा, इस मामले में साफ पता चलता है कि मरीज की सर्जरी नहीं की गई। दवाएं और सर्जिकल उपकरण जिनका बिल बनाया गया था, उसका उपयोग ही नहीं हुआ था। इस बात का भी रेकॉर्ड नहीं है कि मरीज को कभी आईसीयू में रखा गया था। ट्राइब्यूनल ने कहा, वास्तव में, इस मामले में मरीज की सर्जरी की जरूरत नहीं थी और मरीज को आईसीयू में ले जाने का सवाल ही नहीं था। इसलिए 12,500 रुपये का आईसीयू चार्ज गलत था। यह अनफेयर प्रैक्टिस है। ट्राइब्यूनल ने कहा कि सभी बिलों, आरटीआई के जरिए मिले कागजात और इलाज से पता चलता है कि मरीज का इलाज कर रहे डॉक्टर ने न केवल इलाज में लापरवाही बरती बल्कि गलत बिल भी थमाया। यह गलत अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का हिस्सा है। जिला और राज्य आयोग ने अपने फैसले में डॉक्टर द्वारा किसी प्रकार की मेडिकल लापरवाही से इनकार किया था। हालांकि दोनों आयोग ने स्कैनिंग सेंटर और इंश्योरेंस कंपनी को मरीज को मुआवजा देने को कहा था।