नई दिल्ली : गुजरात के अहमदाबाद में आज भगवान जगन्नाथ की 141वीं रथयात्रा शुरू हुई। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ भगवान नगरयात्रा पर निकले। सुबह चार बजे पहले मंगला आरती और खास खिचड़ी का भोग भगवान को चढ़ाया गया। इस दौरान हजारों की तादाद में भक्तों ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए। भगवान जगन्नाथ की यात्रा आज से शुरू हो गयी है। भगवान जगन्नाथ जी रास्ते में है, अपनी मौसी के घर जा रहे हैं। साल में एक बार वह अपने भाई-बहन के साथ मौसी के घर जाते हैं। इनके लिए नए रथ बनते हैं और यात्रा निकलती है। जगन्नाथ जी का रथ इस साल करीब 200 कारीगरों ने तैयार किया है । इस रथ को तैयार करने में करीब 90 दिन यानी 3 महीने का समय लगा। इस रथ को तैयार करने में मुख्य रूप से नीम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। यात्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। ये रथ जगन्नाथजी, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बालभद्र या बलदेवजी के होते हैं। तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर मौसी के घर जाते हैं। इन तीनों रथों को बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त से होती है।
हर साल आयोजित होने वाली इस यात्रा के लिए हर साल नए रथ बनाए जाने की परंपरा है। जगन्नाथजी के मंदिर की ऊंचाई लगभग 215 फीट है और यह लगभग 4 लाख वर्ग फीट एरिया में फैला हुआ है। खड़े रहकर इस मंदिर का गुंबद देख पाना असंभव लगता है। इस मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। कहते हैं, यहां 1 साल तक के लिए अन्न भंडार हमेशा स्टोर रहता है। इसलिए कितने भी श्रद्धालु यहां आ जाए, कभी भोजन कम नहीं पड़ता। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसकी कभी परछाई नहीं बनती है। जबकि अन्य किसी भी मंदिर की परछाई बनती है लेकिन इस मंदिर की परछाई दिन के किसी भी वक्त देखा जाना संभव नहीं हुआ है। इस मंदिर के ऊपर कभी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। यह भी कहा जाता है कि पुरी मंदिर के ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते हैं। मंदिर के सिंह द्वार से प्रवेश करने पर समुद्र की लहरों की आवाज या कोई भी ध्वनि नहीं सुनाई देती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज सदैव हवा की उल्टी दिशा में लहराता है।