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कबीर की कालजयी वाणी का अक्षुण्य महात्म्य

स्वर : डॉ. सुजीत कुमार सिंह

कबीर वाणी

साधो ये मुरदों का गाँव
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं ज़िन्दा जोगी,
राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!

चंदा मरि है, सूरज मरि है,
मरि हैं धरणी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं
इन्हूँ की का आसा।
साधो ये मुरदों का गांव!

नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,
मरि हैं सहज अठ्ठासी,
तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,
बड़ी काल की बाज़ी।
साधो ये मुरदों का गांव!

नाम अनाम अनंत रहत है,
दूजा तत्व न होइ,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो मत कोई।

कबीर की कालजयी वाणी का अक्षुण्य महात्म्य

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