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कर्ण या अर्जुन नही बल्कि ये 2 थे महाभारत काल के सबसे शक्तिशाली योद्धा

हमारे देश को वीरो की धरती कहा जाता हैं । समय समय पर ऐसे योद्धा हुए हैं जिनके पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया ने माना हैं । आज हम आपको महाभारत काल के ऐसे दो योद्धाओ के बारे में बताते हैं जो उस समय के सबसे महान बलशाली योद्धा थे । इनकी शक्ति का अनुमान आप इसी बात से लगा लीजिये की पूरी पृथ्वी पर इन दोनों से टकराने का साहस कोई नही करता था ।

महाभारत काल को इंसाफ का समय भी कहा जाता हैं क्योकि भगवान कृष्ण ने ना केवल इस काल में गीता ज्ञान दिया बल्कि अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की थी । हमारे पौराणिक ग्रंथो में महाभारत काल में हुए युद्ध के बारे में अनेको रहस्य लिखे हुए हैं लेकिन आज हम आपको इस काल के ऐसे दो योद्धाओ के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी शक्ति की प्रशंसा खुद भगवान कृष्ण ने की थी ।

गुरु द्रोणाचार्य
गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांड्वो के गुरु थे । शास्त्र और शस्त्र विद्या में पारंगत गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को अपना प्रिय शिष्य मानते थे और चाहते थे की अर्जुन से बढकर इस पूरी दुनिया में कोई धनुरधारी ना रहे । इसी के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा मांग लिया था ।

महाभारत युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य वचनों में बंधकर कौरवों की तरफ से युद्ध करने लगे थे । तब भगवान कृष्ण की युक्ति से पांड्वो ने गुरु द्रोणाचार्य का वध किया था । पौराणिक ग्रंथो में इस बात का भी जिक्र हैं की गुरु द्रोणाचार्य के समान योद्धा उस समय पृथ्वी पर नही था । आज भी भारत सरकार किसी खेले में सर्वश्रेष्ठ कोच के लिए गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार देती हैं जो इन्ही गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर हैं ।

भीष्म पितामह
वचन और कर्म की प्रतिमूर्ति भीष्म पितामह का बचपन का नाम देवव्रत था । अपने पिता की शादी के लिए आजीवन ब्रह्मचार्य और सिंघासन पर ना बैठने की भीष्म प्रतिज्ञा के चलते देवव्रत का नाम भीष्म पड़ गया था । गुरु परशुराम से शिक्षा दीक्षा लेने वाले भीष्म पितामह माँ गंगा के पुत्र थे । वह कौरवों और पांडव दोनों के पितामह थे । इच्छा मृत्यु का वरदान पा चुके भीष्म पितामह के बारे में ग्रंथो में लिखा हैं की उनके समान कोई दूसरा योद्धा पृथ्वी पर नही था ।

एक बार तो भीष्म पितामह ने अपने ही गुरु परशुराम को युद्ध में पराजित कर दिया था । लेकिन वचनबद्धता के चलते भीष्म पितामह को कौरवों की तरफ से युद्ध करना पड़ा था । जब पांड्वो के आगे भीष्म पितामह एक अभेध्य चट्टान की भाँती अड़ गये तब भगवान कृष्ण का कहना मानकर पांड्वो ने भीष्म पितामह के शिविर में जाकर उनकी मृत्यु का रहस्य जाना जिसको भीष्म पितामह ने हसंते हंसते बता दिया । इसके बाद अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर लिटा दिया था ।

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