कवच कैसे पहनोगी परवीन
सुमन सिंह
परवीन जिस मुहल्ले में रहती है वहां गरीबी, भुखमरी और बदहाली बसती है। शहर का अंग होते हुए भी, पुराने-बदरंग मकानों पर सरकारी तंत्र के विकास-ब्यौरे का चमकदार रंग होते हुए भी, यहाँ अच्छे दिनों की आहट नहीं सुनाई देती।बजबजाती नालियाँ,कूड़े के अम्बार पर भिनभनाती विषैली मक्खियाँ, जानवरों के गू-मूत में लसरते-पसरते, लोटते-पोटते नंग-धड़ंग कुपोषित लड़के-लड़कियाँ भारत सरकार की शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतियों की कलई खोलते हैं।चरस-गांजा,भांग और सर्वाधिक मात्रा में हीरोइन की खरीद-फ़रोख्त यहाँ भोर से ही शुरू हो जाती है। देशी शराब की अवैध भट्ठियाँ रात के घनघोर अँधेरे में सुलगने लगती हैं। ठेले रिक्शेवाले, दिहाड़ी मजदूर और किशोर उम्र के खरीदारों से गुलज़ार रहता है यह मुहल्ला। चुपचाप फूलने-फलने वाले नशे के व्यापार की ज्यादातर सौदागर महिलाएं हैं क्योंकि इन पर शक की गुंजाइश कम होती है। कुछ मनमर्ज़ी से तो कुछ विवशता से इस व्यापार में अपने घरवालों का हाथ बंटाती हैं। व्यापार में ये इस कदर रच-बस जाती हैं कि इनका स्त्रियोचित स्वाभाव भी साथ छोड़ जाता है। सौदेबाज़ी और धनउगाही में गाली-गलौज़ और मारपीट इनके लिए आमबात है। ये औरतें पल भर के लिए भी नहीं सोच पाती हैं कि अनजाने में ही सही वे मौत का सामान बेच रही हैं। अपना घर- परिवार सँवारने की कोशिश में वे जाने कितने घर रोज ही उजाड़ रही हैं।
परवीन का व्यथा-कथा इनसे अलग है। अपने शौहर की दूसरी बीबी, चार सयाने और एक दुधमुँहें बच्चे की माँ है वह। सयानों की भूल और दुधधमुँहें की परवरिश में हुई छोटी सी चूक की बहुत क्रूर और जानलेवा सजा भुगतती है परवीन। अगर बच्चा बिस्तर गीला कर दे तो उसका शौहर उसे निर्ममता से पीटता है। पिटाई का जो तरीक़ा वह अपनाता है वहाँ यह ‘निर्ममता’ जैसा शब्द भी खोखला प्रतीत होता है।एक चौड़े और खोखले बाँस में लोहे की रॉड घुसा कर वह तब तक परवीन को मारता है जब तक उसकी पीठ से खून न रिसने लगे। नाखून से खरोचे और बीड़ी से दागे गए उसके ज़िस्म में तिल भर भी बेदाग जगह नहीं बची है। खौफ़ इतना कि मार खाकर अधमरी परवीन का कोई हाल-चाल भी नहीं पूछ सकता। बच्चे भी मरहम-पट्टी करने पास नहीं फटक सकते। फटेहाली और तंगहाली इतनी कि दो बीवियों और आठ बच्चों का यह परिवार बामुश्किल तन ढँकता है और पेट भरता है। पर्दा इतना कि भूखों मरने की नौबत आने पर भी इस घर की औरतें और लड़कियाँ काम करने बाहर नहीं निकल सकतीं।
परवीन जिन्दालाश की तरह अपने श्मशान सरीखे घर में क़ैद है। दिन-रात, सुख-दु:ख उसके लिए महज़ थोथे शब्द हैं जिनका उसके जीवन में कोई अर्थ नहीं। इसी बीच उसे पता चलता है कि एक नन्ही जान उसके गर्भ में साँस ले रही है। परवीन सदमे में है। अभी तो उसका दुधमुहाँ ही महज़ चार महीने का है।दु:ख जैसे कुण्डली मारे उसके तन -मन से लिपट गया है। दूर -दूर तक इससे उबरने का उसके पास कोई उपाय नहीं है।
इसी मनहूस घड़ी में एक सरकारी योजना का इश्तहार उसके घर की दीवार पर कोई चस्पा कर गया है जिसके चटकीले रंग वाले सुडौल अक्षर घोषणा करते हैं कि -‘महिला सुरक्षा कवच’ नामक योजना 29 अगस्त से रक्षाबंधन वाले दिन सरकार द्वारा शुरू की जा रही है जिसमें 17 से 70 वर्ष की किशोरियों -स्त्रियों का बीमा होगा।’खबर इतनी ही है। परवीन जैसी अनपढ़ और असहाय स्त्रियाँ इस बीमा का लाभ कैसे उठायेंगी? कवच धारण कैसे करेंगी, किस शुभ-मुहूर्त में, किस चुनावी मन्त्र के संरक्षण में। क्या कवच सच में असर करेगा? यदि परवीन की तरफ से यह पूछ भी लिया जाय तो कौन इसका जवाब देगा…यह यक्ष -प्रश्न है।