किंग मेकर होंगे देवेगौड़ा!
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा गढ़कर बीते चार सालों में भारतीय जनता पार्टी ने कई राज्यों से उसे बेदखल किया भी है। कई राज्यों में तो उसने अपने दम पर यह कारनामा कर दिखाया लेकिन वहीं कई राज्यों में उसने चुनाव बाद अन्य दलों का सहयोग लेकर अपने संकल्प को पूरा किया। कमोबेश अभी जो धरातल पर दिख रहा है उसके लिहाज से कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी भाजपा अपने दम पर सरकार बनाती नहीं दिख रही है। लेकिन यदि उसे जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) यानि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा का साथ मिल गया तो वह कर्नाटक में बहुमत के 113 सीटों के जादुई आंकड़े को छू सकती है और अन्य राज्यों की भांति कर्नाटक को भी कांग्रेसमुक्त कर ‘लड्डू’ बांट सकती है। दरअसल अभी तक चुनावी परिदृश्य कमोबेश ऐसा ही है।
यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2013 में कांग्रेस ने 36.6 प्रतिशत वोट हासिल कर कर्नाटक प्रदेश में सरकार बनायी थी। उस समय केन्द्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। तब भाजपा को 19.9 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। दरअसल भाजपा को इतना कम मत प्रतिशत पार्टी में बगावत के कारण मिला था। भाजपा नेता एवं मुख्यमंत्री रहे बीएस यदुरप्पा और पार्टी के ही एक अन्य प्रमुख नेता श्रीरामुलू ने बगावत कर अलग दल बना लिए थे। लेकिन इन बागी नेताओं के दलों को 2013 के विधानसभा चुनाव में कुल मात्र 12.5 फीसद ही वोट मिले थे। वहीं जेडीएस को 20.2 फीसद वोट मिले थे। साल 2014 में जब लोकसभा चुनाव हो रहे थे और पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। उस समय भाजपा ने तो अपने मत प्रतिशत में इजाफा किया ही था, कांग्रेस के भी वोटों में भी बढ़ोतरी हुई थी। 2014 के चुनाव में भाजपा को 43 फीसदी वोट मिले थे। यानि 2013 विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसके मत प्रतिशत में करीब 23 फीसद की बढ़ोतरी हो गयी थी। यह स्थिति तब संभव हो सकी थी जब बागी यदुरप्पा और श्रीरामुलू वापस भाजपा में लौट आये थे। साफ है कि विधानसभा चुनाव में इन दोनों बागियों को प्राप्त मत प्रतिशत वर्ष 2014 में भाजपा के खाते में गिना माना जा सकता है। वहीं यदि अब कांग्रेस के प्रदर्शन की बात की जाये तो उसे जहां 2013 के विधानसभा चुनाव में 36.6 फीसद वोट मिले थे, वहीं यह मत प्रतिशत 2014 के लोकसभा चुनाव में और मोदी लहर के बावजूद बजाय गिरने के करीब 4.4 फीसद बढ़ा था। उसे 40.8 फीसद वोट मिले थे। वहीं जेडीएस का मत प्रतिशत 2013 के मुकाबले 2014 में गिरकर सिर्फ 11 फीसद पर रह गया था। सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों पर ही केन्द्रित रहा जाये तो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 132 विधानसभा सीटों पर सफलता मिली थी। जबकि कांग्रेस को मात्र 77 और जेडीएस को 15 सीटों पर जीत मिली थी। अब यदि यही प्रदर्शन जारी रहे तो भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार कर्नाटक में बनने जा रही है। लेकिन साल 2013 में विधानसभा और 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद भी कर्नाटक में जिला परिषद के चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने 2014 के मुकाबले और बेहतर प्रदर्शन कर भाजपा को शिकस्त दी। जिला परिषद चुनाव में भाजपा को मात्र 34.8 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस को 46.9 फीसद वोट मिले। इन चुनावों में जेडीएस के भी मत प्रतिशत में आंशिक इजाफा हुआ और उसे 15.7 फीसद वोट मिले।
कुल मिलाकर यह तो हैं आंकड़े। लेकिन अब विधानसभा चुनाव साल 2018 में हो रहा है। जब कांग्रेस और भाजपा सीधे तौर पर आमने-सामने हैं। उधर, तीसरे मोर्चे के रूप में साल 1996 में देश के प्रधानमंत्री बने और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके देवेगौड़ा ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में ताल ठोंकी है। दरअसल इन दोनों दलों की नजर कर्नाटक के दलित वोट बैंक पर है। याद रहे कि कर्नाटक में 36 सीटें अनुसूचित जाति तथा 15 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। जबकि विधानसभा का कुल संख्या बल 224 का है। साफ है कि आरक्षित 51 सीटों पर जिस दल ने बेहतर प्रदर्शन किया वही किंग मेकर बनेगा। राजनीति और ऐन चुनावों के मौके पर होने वाले उलटफेर की विशेषज्ञता हासिल करने वाले विश्लेषकों के मुताबिक कर्नाटक में इस बार किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और खण्डित जनादेश आने वाला है। ऐसे में जेडीएस और बसपा का गठजोड़ यदि बेहतर प्रदर्शन कर गया तो वह किंग मेकर की भूमिका निभा सकता है।
- देवव्रत