किसान कर्जमाफी के लिए RBI ने जताई नाखुशी, गड़बड़ाया राज्यों का बजट
नई दिल्ली। पिछले पांच-छह वर्षो से देश की राजनीति में कृषि कर्ज माफी योजना को जिस तरह से आजमाया जाने लगा है उसका असर राज्यों की अर्थव्यवस्था पर साफ दिखने लगा है। विगत पांच वर्षो में इन राज्यों ने 2,31,260 करोड़ रुपये के कृषि कर्ज को माफ किया है। लेकिन अभी तक राज्यों ने अपने बजट से सिर्फ 1,51,168 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक व यूपी जैसे राज्यों ने अपनी माली हालत अगले दो-तीन वर्षो में ठीक नहीं की तो किसान कर्ज माफी के तहत दी गई राशि के समायोजन में उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
खासतौर पर ऐसे वक्त में जब मौजूदा आर्थिक मंदी की वजह से अमूमन सभी राज्यों के राजस्व के तमाम स्त्रोत सूखने के कयास लगाए जा रहे हैं। कृषि कर्ज माफी को लेकर पहले भी कई बार एतराज जता चुके भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बार फिर अपनी नाखुशी जताई है। आरबीआइ की एक नई रिपोर्ट में राज्यों की माली हालत पर विपरीत असर पड़ने के साथ ही इस बात का भी जिक्र किया गया है कि किस तरह से इससे एक बड़े वर्ग में कृषि कर्ज की संस्कृति प्रभावित होती है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014-15 में दो राज्यों (आंध्र प्रदेश व तेलंगाना) ने किसान कर्ज माफी का एलान किया था, जबकि वर्ष 2018-19 में चार बड़े राज्यों (कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़) ने इसे लागू किया। इन दोनों के बीच में यूपी, पंजाब, महाराष्ट्र व तमिलनाडु में भी इसे लागू किया गया। चालू वित्त वर्ष (2019-20) में इन राज्यों की तरफ से 39,703 करोड़ रुपये का प्रावधान संयुक्त तौर पर अपने बजट में किया गया है। ये राज्य अपने कुल सालाना बजट का 3.5 फीसद तक हिस्सा सिर्फ कृषि कर्ज माफी योजना को लागू करने के लिए ही खर्च कर रहे हैं।
अभी दो-तीन वर्षो तक इस मद में खर्च होता रहेगा। केंद्रीय बैंक ने कृषि कर्ज माफी योजना सही है या गलत है, इस बारे में स्पष्ट तौर पर कोई निर्णय तो नहीं दिया है लेकिन कुछ तुलनात्मक अध्ययनों के जरिये इसकी प्रासंगिकता को सामने रखने की कोशिश जरूर की है। मसलन, उक्त 10 राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन करने पर जितनी राशि का प्रावधान किया है उससे चार गुणा ज्यादा राशि कृषि कर्ज माफी योजना के लिए किया है। साथ ही इसके परोक्ष तौर पर पड़ने वाले असर को भी आरबीआइ ने गंभीर बताया है।
सनद रहे कि हाल के वर्षो में राज्यों के चुनाव से पहले किसानों के कर्ज को माफ करने को लेकर एक तरह से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी। तमाम राजनीतिक दल इस तरह की घोषणाएं करते हैं। 1990 से 2000 के दौरान राज्यों के स्तर पर सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए गए थे और उसके बाद वर्ष 2007-08 में केंद्र ने 56 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए थे। लेकिन वर्ष 2014-15 के बाद से दस राज्यों ने मिल कर कई गुणा ज्यादा कृषि कर्ज को माफ कर दिया है।
आंध्र प्रदेश (14-15) 24,000
तेलंगाना (14-15) 17,000
तमिलनाडु (16-17) 5280
महाराष्ट्र (17-18) 34,020
यूपी (17-18) 35,360
पंजाब (17-18) 10,000
कर्नाटक (18-19) 44,000
राजस्थान (18-19) 18,000
एमपी (18-19) 36,500
छत्तीसगढ़ (18-19) 6100