‘की एंड का’ में न मनोरंजन, न कॉमेडी, न चुंबन!!! उबाऊ!!
-निर्देशकः आर.बाल्की
-सितारेः करीना कपूर, अर्जुन कपूर
-रेटिंग **
2014 में एक मोबाइल नेटवर्क कंपनी का विज्ञापन आया था। जिसमें एक महिला दफ्तर में पति की बॉस थी और घर में पत्नी। दफ्तर में पति को निर्देश देती पत्नी रात में घर लौट कर खाना पकाती है। इसे देख कर बदलते समाज में स्त्री-पुरुष संबंध और उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियों पर पर्याप्त बहस हुई थी।
वह विज्ञापन आपकी सोच को जैसे मथता था, आर.बाल्की की 129 मिनट लंबी फिल्म की एंड का वह नहीं कर पाती। टीवी पर औसतन 30 सेकेंड दिखने वाले उस विज्ञापन से यह फिल्म 258 गुना लंबी है! आप अनुमान लगा सकते हैं कि उस विज्ञापन के मुकाबले फिल्म कितनी हल्की है।
बाल्की ने फिल्म में नए विचारों के बजाय उन तर्कों को बासी कढ़ी जैसा उबाला है, जो दशकों से नारीवादी विमर्श में आते रहे हैं। जिन्हें अब खुद इस विमर्श ने पुराना मान कर छोड़ दिया है। फिल्म का कथानक कमजोर, दोहराव भरा और उबाऊ है।
यह ढंग की फंतासी भी नहीं है कि आप मनोरंजन तक सीमित रहें और बाकी बातें नजरअंदाज कर दें। विज्ञापन फिल्में बनाने वाले बाल्की अपनी पिछली फिल्म शमिताभ के निर्माताओं में भी रहे हैं। संभवतः उस फिल्म में हुए आर्थिक घाटे की भरपाई के लिए उन्होंने की एंड का में अनेक उत्पादों का विज्ञापन कर डाला।.
फिल्म एक महत्वाकांक्षी युवती की कहानी है जो मार्केटिंग करिअर में बढ़ती हुई कंपनी की सीईओ बनने का ख्बाव देखती है। उसकी मुलाकात ऐसे युवक से होती है जिसका बिल्डर पिता आधी दिल्ली का मालिक है! युवक महत्वाकांक्षाओं की पागल दौड़ में नहीं पड़ना चाहता।
वह मां जैसा बनना चाहता है यानी घर संभालना। प्यार में पड़ा यह जोड़ा विवाह कर लेता है। हर पल कुछ नया खोज रहे अति-यथार्थवादी संसार को जब इस युवक की खबर मिलती है, जो गृहस्थ जीवन में पत्नी की भूमिका निभा रहा है तो सब उसे सिर-आंखों पर बैठा लेते हैं।
देखते-देखते वह सेलेब्रिटी बन जाता है। यह बात महत्वाकांक्षी पत्नी के अहंकार को चोट पहुंचाती है। ऐसे में विवाह की रेलगाड़ी पटरी पर कैसे रह सकती है?
फिल्म की शुरुआत एक विवाह समारोह में करीना कपूर के लंबे भाषण से होती है, जो बचकाना है।