कुछ तो गड़बड़ है…
व्यंग्य : वीना सिंह
सरकार के बड़े नेता कह रहे हैं कि नोटबंदी से भ्रष्ट लोग ही परेशान हैं, पहली बार देश में गरीब खुश हैं और अमीर लोग बेहद दुखी हैं। सरकार द्वारा बताया जा रहा है कि गरीब लोग चैन की नींद सो रहे हैं, अमीरों की नींद उड़ गई है। सुनकर तो बड़ा अच्छा लगा कि चलो गरीबों का बहुत भला हो गया इस नोटबंदी से। लेकिन जब बाहर जाकर देखा कि एक बहुत बड़े अमीर साहबजादे की शादी बारात में राजशी ठांट-बांटए बड़ी आलीशान दाबतेंए लाखों करोड़ों का खर्चा हो रहा है। उनकी शान-शौकत तो खूब बढ़-चढ़ कर दिख रही है और इधर गरीब आदमी थका हाराए जाड़े में भी फटे पुराने कपड़े पहनेए सिर पकड़े हुए बैठा है और सोच रहा है कि हाय हमारा क्या होगाए पिछले हफ्ते की मजदूरी भी नोट बन्दी होने के कारण नहीं मिल सकी हैं कैसे होगा हमारा गुजारा? तो हमें लगा जरूर कुछ तो गड़बड़ है।
लेकिन सरकार की बातों का न मानना भी हमारे गले नहीं उतराए सोचा सरकार ने देश के लिए कुछ अच्छा ही सोचा होगा। अमीर-गरीब का भेद मिटाना होगा। सबको समसम्मान दिलाना होगा। फिर यह हमें इतना विरोधाभास क्यों दिख रहा है। गरीब हाय-हाय कर रहा है। घक्के-मुक्के खा रहा है। रोटी खाने को तरस रहा है। लाइन में लगा जूझा मरा जा रहा है। बहुत ज्यादा परेशान दिख रहा है। सारा काम गड़बड़ा गया है। वहीं दूसरी ओर अमीर आदमियों का कोई काम नहीं रुक रहा है। सारे काम धड़ल्ले से हो रहे हैं। घूम रहे है टहलबाजी कर रहे हैं। खूब मौज मस्ती कर रहे हैं। शाादियों बारातों में भौडे गानों पर कमर व कूल्हे मटका-मटका कर खूब खुश हो रहे हैं। ये परेशान क्यों नहीं दिख रहे हैं इनकी रातों की नींद क्यों नहीं उड़ती हुई दिख रही है? तो हमें लगा जरूर कुछ तो गड़बड़ है।
सुबह – सुबह नौ बजे ही बैंकों के आगे लम्बी-लम्बी लाइन लग गयीए बैंक जब खुला तब तक और लम्बी लाइन हो गई। पहुंच और पहचान वालेए दबंग किस्म के लोग लाइन वाइन की परवाह किये बिनाए भीड़ को चीरते हुए काउंटर के पास आके खड़े हो गये। दो तीन घण्टे लोगों ने शादी- बारात के लिए बड़ी-बड़ी रकम निकाली उधर भीड़ व लाइन में लगे लोंगों में अफरा तफरी मची तो पुलिस ने लाठियां बरसायीं। लोग चोटिल व घायल हुए। चार घण्टे बाद ही बैंक वालों की आवाज आयी कैश खत्म हो गया है अब पैसा नहीं मिल सकेगा। अमीर लोग शान से रुपयों की गड्डी हाथ में लिए नोट गिनते दिखाई दिए और लाइन में लगे लोग सर्दी में पसीना पोंछते नजर आये। बेचारे पांच छः घंटे से लाइन में लगे लोगों को रुपया नहीं मिल सका तो हमें लगा जरूर कुछ गड़बड़ है।
हम भी लाइन में लगे थे। रुपये न मिल पाने वाले लोगों में हम भी शामिल थे। अगले दिन भी यही आलम था। चार-पांच घण्टे की मशक्कत के बाद दो हजार का नोट जब मिला तो न चाहते हुए भी हमारे चेहरे पर विजयी मुस्कान आ गई। दो हजार का नोट लेकर बाजार में कम कीमत का सामान लेना नाकों चने चबाने से कम नहीं था। हम कभी अपनी परेशानियों को देखते तो कभी दो हजार के नोट को। रुपयों की किल्लत की वजह से दो हजार के नोट से कोई हल्की-फुल्की खरीददारी करना नामुमकिन हो गया तो हमें लगा सरकार के दावों में जरूर कुछ तो गड़बड़ है।