कृति सेनन ने खोले अपने दिल के राज, बोलीं-पहली बार मुंबई गई, कई ऑडिशन में हुई रिजेक्ट…
अकेली आई थी मुंबई। नोएडा में बीटेक कर रही थी, फिल्मों के लिए मुंबई पहुंच गई। एक अनजान शहर में लगभग अकेली। जब मैं दिल्ली से मुंबई आई, तो मैं थोड़ा खोई हुई थी, मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या करना है। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि मैं पहले कभी अपने माता-पिता से दूर नहीं रही थी। ऐसे भी दिन थे, जब मैं मां से बात करते-करते रो जाया करती थी, क्योंकि शुरुआत में सब इतना मुश्किल होता है कि आप कुछ सोच या समझ ही नहीं पाते।
फिर ऑडिशन्स का दौर शुरू हुआ। ऐसे कई लोग हैं, जो सपनों के साथ इस शहर में आते हैं। मैं भी उन्हीं में से थी। मुंबई शहर किसी से कोई सवाल नहीं करता। हर आने वाले का स्वागत करता है। मैं भी आई। हालांकि, कभी-कभी मैं एकदम चिढ़ जाती थी, फिर भी मैं सकारात्मक रही। मैंने कभी भागने की नहीं सोची। बस मेहनत करती रही। कई बार तो लोग मुझे इसलिए भी रिजेक्ट कर देते थे, क्योंकि उनकी नजर में मैं पर्फेक्ट थी।
एक बार का किस्सा मुझे याद है। कई ऑडिशन देने के बाद मुझे एक मौका मिला था। मैं जब उन व्यक्ति से मिलने पहुंची, तो उन्होंने कहा, “कृति तुम बहुत खूबसूरत हो। तुम्हारे में कुछ भी इंपर्फेक्ट नहीं है। कुछ ऐसा हो, जब स्क्रीन पर लोग तुम्हें देखें, तो रियल लगे।” मैं उनकी बात सुनकर बहुत निराश हो गई थी। हालांकि मैंने हार कभी नहीं मानी। दक्षिण भारत की फिल्में कीं। फिर जब फिल्म ‘हीरोपंती’ मिली, तब मुझे अहसास हुआ कि मैं भाग्यशाली हूं।
इस फिल्म के लिए मेरा चयन होना एकदम सपने की तरह था। फिल्म के लिए ऑडिशन बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था। कैमरा, लाइट्स, मेकअप और पूरे कॉस्ट्यूम के साथ मुझे डायलॉग बोलने के लिए दिया गया। तभी पहली बार मैंने टाइगर को देखा था। हमने फिल्म का एक सीन किया। ऑडिशन के तुरंत बाद मुझे बताया गया कि हम साजिद नाडियाडवाला सर से जल्द ही मिलेंगे। जब हम रास्ते में थे, तब मुझे बताया गया कि यह फिल्म मुझे मिल गई है।
एक पल के लिए विश्वास ही नहीं हुआ। कार से ही मैंने अपने माता-पिता को फोन करके बताया और जब मैं अपने प्रबंधक के कार्यालय में गई, तो उन्होंने चॉकलेट के एक डिब्बे के साथ मेरा स्वागत किया। मैंने फिल्म साइन की और बस सफर शुरू हो गया। मेरे जीवन की अच्छी चीजें ऐसे ही अप्रत्याशित रूप से एक ही पल में हुई हैं।