व्यापार
कैसे एक आम लड़के ने खड़ी कर दी Paytm कंपनी, कभी 12 रुपए में बिताए थे दिन
नईदिल्ली: Mobile Payment Company Paytm आज सबकी जरूरत बन गई है। खासतौर पर नोटबंदी के इस दौर में आज घर-घर में लोग Paytm से पेमेंट कर रहे हैं।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस कंपनी की पूरी कहानी। कि यूपी के एक आम आदमी ने इतनी बड़ी कंपनी कैसे खड़ी कर दी। जिसे कभी अंग्रेजी के नाम से भी डर लगता है। आज वो विदेशों तक में छाया हुआ है। जानिए…
पेटीएम के चेयरमैन विजय शेखर शर्मा के लिए एक वक्त ऐसा था जब उनके पास मारूति 800 होती थी। लेकिन आज वह अपने पास बीएमडब्ल्यू रखते हैं। खास बात ये है कि जब उनके पास मारूति 800 थी तब भी वह खुद ही ड्राइव करते थे और आज बीएमडब्ल्यू है तब भी वह खुद ही ड्राइव करते हैं। वह एक सामान्य जिंदगी जीते हैं।
उन्होंने सबसे पहले 2001 में मोबाइल वैल्यू एडेड कंपनी वन-97 की शुरुआत तीन लाख रुपए से की थी लेकिन 2010 में ऑनलाइन वॉलेट पेटीएम का आइडिया आया। बता दें कि वह किसी कारोबारी के बेटे नहीं हैं। वह अलीगढ़ के एक बायोलॉजी टीचर के बेटे हैं। छोटा शहर होने के कारण विजय अंग्रेजी नहीं सीख पाए थे। इस बीच वह इंजीनियरिंग का सपना लेकर दिल्ली आए तो अंग्रेजी में पेपर देखकर परेशान हो गए थे। लेकिन ऑब्जेक्टिव था तो इसलिए एग्जाम निकाल ले गए। जब विजय दिल्ली आए तो उनको पढ़ाई के बाद सिर्फ अच्छी नौकरी चाहिए थी। उनका इरादा कोई बिजनेसमैन बनने का नहीं था।
एक बार वह दरियागंज के संडे बाजार में किताबे खरीदने गए। तब कुछ किताबे खरीदीं। उन्हें बढ़ने के बाद समझ आया कि दुनिया क्या होती है। पहली बार पता चला कि स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी क्या है। इसके बाद चाह पैदा हुई कि वह भी ऐसा कर सकते हैं। किताबों से सबक लेते हुए उन्होंने कॉलेज में रहते हुए ही एक्सएस कॉर्प नाम की एक कंपनी बना ली थी। यह कंपनी इंटरनेट से जुड़ी सेवाएं देती थी। 1998 में उनकी पढ़ाई पूरी हुई तो उन्हें एक विदेशी कंपनी से एक्सएस कॉर्प को खरीदने का ऑफर मिला।
इसके बाद दो साल तक वे विदेश और भारत में काम करते रहे। लेकिन 2001 में वन-97 की स्थापना की। लेकिन उन्हें 2004 में कैश फ्लो की कमी के चलते परेशान होना पड़ा। इस दौरान वह अपने एक दोस्त के घर पर रहने लगे। ऐसे दिन भी आए जब उन्हें सिर्फ 12 रुपए में रात गुजारनी पड़ी। कभी कोक पीकर और बॉरबन बिस्कुट खाकर ही समय गुजारा। लेकिन वह लगे रहे और देखते ही देखते उनकी कंपनी 1000 करोड़ रुपए की हो गई।
उनकी जिंदगी का अहम मोड़ तब आया जब अक्टूबर 2014 में उनकी मुलाकात ढाई सौ करोड़ की कंपनी अलीबाबा के संस्थापक चेयरमैन जैक मा से हुई। तब वह पेटीएम बना चुके थे लेकिन फंड उगाह रहे थे। जब जैक से मिलने का मौका मिला तो आधे घंटे की मुलाकात ढाई घंटे तक चली। उस दौरान जैक ने उन्हें समझाया कि उन्हें पैसा उनकी कंपनी से ही लेना चाहिए। अच्छे इवेस्टर हैं। लेकिन मजेदार यह है कि विजय को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था तो उन्होंने वॉयस रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। उन्होंने सोचा कि पैसे मिले या न मिलें, लेकिन ये हमेशा याद रहेगा कि कभी जैक मा ने उनसे ये बात कही थी।
लेकिन जब अच्छा निवेश मिला तो उन्होंने कंपनी को भरोसेमंद और एस्पिरेशनल ब्रांड बनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने टीम इंडिया को स्पोंसर करने की योजना बनाई। पता चला की यह लगभग 200 करोड़ रुपए की होगी। लेकिन उन्होंने 200 करोड़ रुपए का दाव खेलने का मन बना लिया। खिलाड़ी पेटीएम की जर्सी में नजर आने लगे। ऑनलाइन वॉलेट शुरू करते वक्त उनके पास दो ऑप्शन थे। या तो ग्राहकों को 100 रुपए पर 30 रुपए की छूट दें या फिर 100 रुपए की खरीदारी पर 30 रुपए उनके वॉलेट में वापस लौटा दें।
इस दौरान उन्होंने दूसरे आइडिया पर काम किया। हालांकि सब इसके खिलाफ थे। इसके बाद उन्होंन शॉपिंग को खेल बना दिया। आरबीआई ने पिछले 15 साल में पेटीएम से पहले इस तरह के बिजनेस के लिए 30 लाइसेंस दिए थे। लेकिन कोई भी कंपनी बड़ा नाम न बन सकी। अब वे पेटीएम को बैंकों में तब्दील करने की तैयारी में हैं। उनका टारगेट है कि देश के 50 करोड़ ऐसे लोगों तक सुविधा पहुंचाने की है जो इससे महरूम है। उनके बैंक को आरबीआई से मंजूरी मिल गई है और वह जल्दी ही इसे शुरू कर देंगे। बैंक की शाखाए कम होंगी लेकिन यह मोबाइल बैंक ज्यादा होगा।
उनके मां बाप आज भी अलीगढ़ में ही रहते हैं। वे खुद ग्रेटर कैलाश में किराए के मकान में पत्नी और तीन साल के बेटे के साथ रहते हैं। विजय स्वीट जॉब्स को वो अपना रोल मॉडल मानते हैं। उनका सबसे यादगार पल जब वे पीएम मोदी से मिले और उन्होंने कहा कि हां हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं।
उनकी जिंदगी का अहम मोड़ तब आया जब अक्टूबर 2014 में उनकी मुलाकात ढाई सौ करोड़ की कंपनी अलीबाबा के संस्थापक चेयरमैन जैक मा से हुई। तब वह पेटीएम बना चुके थे लेकिन फंड उगाह रहे थे। जब जैक से मिलने का मौका मिला तो आधे घंटे की मुलाकात ढाई घंटे तक चली। उस दौरान जैक ने उन्हें समझाया कि उन्हें पैसा उनकी कंपनी से ही लेना चाहिए। अच्छे इवेस्टर हैं। लेकिन मजेदार यह है कि विजय को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था तो उन्होंने वॉयस रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। उन्होंने सोचा कि पैसे मिले या न मिलें, लेकिन ये हमेशा याद रहेगा कि कभी जैक मा ने उनसे ये बात कही थी।
लेकिन जब अच्छा निवेश मिला तो उन्होंने कंपनी को भरोसेमंद और एस्पिरेशनल ब्रांड बनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने टीम इंडिया को स्पोंसर करने की योजना बनाई। पता चला की यह लगभग 200 करोड़ रुपए की होगी। लेकिन उन्होंने 200 करोड़ रुपए का दाव खेलने का मन बना लिया। खिलाड़ी पेटीएम की जर्सी में नजर आने लगे। ऑनलाइन वॉलेट शुरू करते वक्त उनके पास दो ऑप्शन थे। या तो ग्राहकों को 100 रुपए पर 30 रुपए की छूट दें या फिर 100 रुपए की खरीदारी पर 30 रुपए उनके वॉलेट में वापस लौटा दें।
इस दौरान उन्होंने दूसरे आइडिया पर काम किया। हालांकि सब इसके खिलाफ थे। इसके बाद उन्होंन शॉपिंग को खेल बना दिया। आरबीआई ने पिछले 15 साल में पेटीएम से पहले इस तरह के बिजनेस के लिए 30 लाइसेंस दिए थे। लेकिन कोई भी कंपनी बड़ा नाम न बन सकी। अब वे पेटीएम को बैंकों में तब्दील करने की तैयारी में हैं। उनका टारगेट है कि देश के 50 करोड़ ऐसे लोगों तक सुविधा पहुंचाने की है जो इससे महरूम है। उनके बैंक को आरबीआई से मंजूरी मिल गई है और वह जल्दी ही इसे शुरू कर देंगे। बैंक की शाखाए कम होंगी लेकिन यह मोबाइल बैंक ज्यादा होगा।
उनके मां बाप आज भी अलीगढ़ में ही रहते हैं। वे खुद ग्रेटर कैलाश में किराए के मकान में पत्नी और तीन साल के बेटे के साथ रहते हैं। विजय स्वीट जॉब्स को वो अपना रोल मॉडल मानते हैं। उनका सबसे यादगार पल जब वे पीएम मोदी से मिले और उन्होंने कहा कि हां हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं।