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क्या मैं वही बनारस हूं?

डा. ज्योति सिंह

कविता

कुछ नया कुछ पुराना
हालातों का मारा,
क्या मैं वही बनारस हूं?
कई दिनों से चुपचाप, कुछ अनमने से
खुद को निहारता हूं, और सोचता हूं
कि क्या मैं वही बनारस हूं?

मेरे आईने में तुझे ढूँढती हूँ
खुदाई तेरा मैं असर ढूँढती हूँ
है वो जर्रे -जर्रे में मैंने सुना सुना था
ऐ मौला तुझे दर- ब-दर ढूँढती हूँ

कुछ नया कुछ पुराना
हालातों का मारा
क्या मैं वही बनारस हूं?
खुदाई तेरा मैं असर ढूँढती हूँ
तुझे दर- ब-दर ढूँढती हूँ

डा. ज्योति सिंह
(टैगोर राष्ट्रीय अध्येता, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, क्षेत्रीय, केंद्र वाराणसी।)
संगीतशास्त्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.
आकाशवाणी वाराणसी में उद्घोषिका रह चुकी हैं एवं साहित्य में विशेष रुचि है।

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