इमरान खान ने कहा था कि वह पाकिस्तान को बदल देंगे लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें बदल दिया। देश की अगुवाई करने के अपने सपने से वो महज चंद कदम दूर है। लेकिन अगर खान की जिंदगी पर नजर डालें तो उनकी वास्तविक जिंदगी में यह सफर काफी लंबा रहा है जिसने उन्हें 2018 के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान 2018 का यह चुनाव दक्षिण एशिया की राजनीति को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा इसलिए इसका भारत पर भी असर पड़ना तय है। हालांकि भारत-पाक रिश्तों में भले ही विवाद के मुद्दे पुराने ही हैं जिनका सुलझना बेहद मुश्किल है लेकिन दोनों देशों में नेतृत्व की विचारधारा आपसी चर्चा के तौर-तरीकों को हर तरह से प्रभावित करता है।
कैसे होंगे भारत -पाक के रिश्ते
इमरान अब जब सत्ता के बहुत करीब हैं तो अब यह माना जाने लगा है कि भारत से इसके अच्छे संबंध होना बहुत मुश्किल, है जितनी उम्मीदें शरीफ या भुट्टो से लगा रखी थीं। वैसे तो चुनाव से पहले किए गए सर्वे में खुलासा हो गया था कि इसबार इमरान ही पहली पसंद होने जा रहे हैं। इमरान खान ने चुनाव प्रचार में भारत के खिलाफ जहर उगला है और सेना का साथ भी उन्हें मिलता रहा था अब जब यह तय माना जाने लगा है कि देश के अगले प्रधानमंत्री इमरान बनने जा रहे हैं तो भारत से अच्छे रिश्तों की उम्मीद बेकार साबित होगी।
इस बीच पूर्व भारतीय उच्चायुक्त टीसीए राघवन ने कहा है कि इमरान खान का भारत के साथ वो रिश्ता नहीं होगा जो कि नवाज शरीफ के साथ था। उन्होंने यह भी कहा कि नवाज शरीफ के पास भारत के साथ संबंधों को लेकर एक विश्वास था एक विजन था। ये कुछ ऐसी चीज है जिसे उन्होंने दो दशकों में शासन के दौरान विकसित किया। लेकिन चुनावी मैदानों में या उससे पहले इमरान जिस तरह से भारत, मोदी और भारतीय सेना के खिलाफ जहर उगला है उसे देख-सुनकर उनपर विश्वास बनने में काफी समय लगेगा।
पाकिस्तान और इमरान को करीब से जानने वालों का कहना है कि इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के साथ संबधों में कोई नाटकीय बदलाव आएगा। यही नहीं जिस तरह से इसबार पाकिस्तान की जनता किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया है ऐसे में वहां गठबंधन की संभावना बहुत तीव्र है और अब ऐसा भी माना जा रहा है कि अगर वो पीएम बनते हैं तो पाकिस्तान के घरेलू मुद्दे इतने जटिल हैं कि उसे सुलझाने में वह खुद उलझ जाएंगे।
इमरान खान ने अपने चुनावी अभियान के दौरान भारत पर उनकी सेना की छवि खराब करने का आरोप लगाया था। पीटीआई प्रमुख ने नवाज शरीफ पर भी आरोप लगाते हुए कहा था कि वो भारत का पक्ष ले रहे हैं, साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि वो अपने हितों के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, राघवन ने इमरान खान के इन बयानों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान की राजनीति में ये बयान बहुत आम हैं। हमें वास्तव में ये देखना होगा कि सत्ता में आने के बाद वो क्या करते हैं।’
क्या होगा विपक्षी दलों का पक्ष, जेहादियों के पैरोकार रहें हैं
अब जब स्थिति साफ हो गई है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि वहां के विपक्षी दल क्या करते हैं। उन्होंने कहा, ‘इमरान खान निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन लेकर सरकार बना सकते हैं। दूसरे विपक्ष दल क्या कुछ करते हैं ये देखना होगा। हमें और इंतजार करना होगा।’
क्रिकेट से राजनीति में आए इमरान कई अवसरों पर जेहादियों से वार्ता शुरू करने और कट्टरपंथियों को मुख्य धारा में लाने की पैरवी कर चुके हैं। इस कारण उनके विरोधी उन्हें तालिबान खान तक के नाम से पुकारते हैं।
इमरान भारत के लिए भी खतरे की घंटी
2013 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी तीसरे नंबर पर रही थी। उन्हें देश की जनता ने पसंद तो किया था लेकिन नंबर एक बनने के लिए उसके बाद इमरान थमे नहीं और वह लगातार प्रचार प्रसार करते रहे और आज जनता ने उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचा दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि उन्होंने जितनी बातें कहीं हैं वह कितनी पूरी करते हैं। उन्होंने पाक सरकार से मांग की थी कि तालिबानियों को पाकिस्तान में ऑफिस खोलने की इजाजत दी जाए तो क्या अब वह खुद ऐसा करेंगे।
इमरान भारत के लिए भी खतरे की घंटी तब बन जाते हैं जब वह सरकार बनाने के लिए अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक और मुंबई हमलों के मास्टर माइंड से भी हाथ मिला सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्थिति और खराब होती है तो इमरान शरीफ को सत्ता से दूर रखने के लिए पीपीपी से हाथ मिला सकते हैं।