खामोश’ हो गई भारत से ताल्लुक रखने वाली कद्दावर आवाज
कराची: एक जमाने में पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची में ‘मुहाजिर’ नेता अल्ताफ हुसैन के एक फोन पर वोट पड़ते थे या नहीं पड़ते थे| करीब तीन दशक तक उनकी पार्टी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट का कराची पर इस हद तक कब्जा हुआ करता था कि नगर निगम के वार्ड मेंबर से लेकर नेशनल असेंबली के चुनावों तक ये पार्टी ही एकमात्र वास्तविक ताकत होती थी| लेकिन इस बार के आम चुनाव में ऐसा नहीं हुआ| कराची की नेशनल असेंबली की सीटों पर आए शुरुआती रूझानों के मुताबिक मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट से कराची का किला ढहने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं|
कराची, एमक्यूएम का 1980 के दशक के अंतिम सालों से गढ़ रहा है| यह पार्टी कराची उर्दू भाषी अवाम की नुमांइदगी करने का दावा करती है| अभी तक शहर की 21 सीटों पर प्राप्त आकड़ो से पार्टी सिर्फ छह सीटों पर ही आगे चल रही है| आकड़ो के मुताबिक, एमक्यूएम और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी छह-छह सीटों पर आगे चल रही है| जबकि इमरान खान नीत पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने चार सीटों पर बढ़त बनाई है| पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज एक सीट पर जबकि पाकिस्तान सरजमीं पार्टी दो सीटों पर आगे चल रही है| हलाकि मतदान के दौरान कराची में हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है| शहर कि सुरक्षा को ध्यान रखते हुए कड़े बंदोबस्त किये गये हैं| वहीं कराची की एक सीट से चुनाव लड़ने वाले पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ने ट्वीट किया ”आधी रात का वक्त है और मुझे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से आधिकारिक नतीजे नहीं मिले हैं| और मैं खुद चुनाव लड़ रहा हूं| जिसके कारण मेरे उम्मीदवार शिकायत कर रहे हैं कि पूरे देश में पोलिंग एजेंटों को मतदान केंद्रों से बाहर कर दिया गया है|” इमरान और शहबाज शरीफ भी कराची की अलग-अलग सीटों से चुनाव मैदान में है| शरीफ ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए परिणामों को खारिज कर दिया है| सिंध से लेकर कराची मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट की पकड़ मानी जाती रही है| पाकिस्तान की इस चौथी सबसे बड़ी पार्टी के नेता अल्ताफ हुसैन हैं| दो दशक से भी ज्यादा वक्त से लंदन में स्व-निर्वासित जिंदगी गुजार रहे अल्ताफ हुसैन की गूंज इस बार पाकिस्तान के चुनावों में भी नहीं सुनाई दी| भारत छोड़कर पाकिस्तान में बसने वाले उर्दू जुबान के लोग की सबसे बुलंद आवाज अल्ताफ हुसैन की मानी जाती रही है| बटवारे से पहले अल्ताफ हुसैन के पिता भारतीय रेलवे में कर्मचारी थे और आगरा में तैनात थे | 1947 में बटवारे के बाद बेहतर भविष्य की चाह में उनका परिवार पाकिस्तान के कराची में जाकर बस गया| वहीं पर 1953 में अल्ताफ हुसैन का जन्म हुआ| किशोरावस्था तक पहुंचते हुए अल्ताफ को पंजाबी दबदबे वाले पाकिस्तानी समाज में उर्दू भाषी मुहाजिरों के प्रति सौतेलेपन का अहसास हुआ| दरअसल मुहाजिरों को अपने ही वतन में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है| उनको तंज के रूप में ‘बिहारी’ कहकर संबोधित करने का अपमानजनक बता दिया गया| 1971 में बांग्लादेश के उदय के बाद पूर्वी पाकिस्तान से भागकर पश्चिमी पाकिस्तान गए लोगों को भी इसी तमगे के साथ जोड़ दिया गया| इसी के विरोध में 1978 में पहले छात्र संगठन और उसके बाद 1984 में राजनीतिक पार्टी के रूप में एमक्यूएम का उदय हुआ और अल्ताफ हुसैन मुहाजिरों के निर्विवाद नेता बनकर उभरे| 1988 के बाद से हर चुनाव में पूरे सिंध में अल्ताफ हुसैन की आवाज को शिद्दत के साथ महसूस किया जाता रहा है. यहां तक कि उनको पीर का दर्जा भी उनके समर्थकों ने दे दिया| इस बीच कराची में राजनीतिक हिंसाओं का दौर शुरू हुआ और 1992 में अल्ताफ हुसैन पाकिस्तान में अपनी जान को खतरा बताते हुए ब्रिटेन चले गए| 2002 में उनको ब्रिटिश नागरिकता मिल गई|