जन्मों की स्मृतियों से आज का इलाज
आत्मा की अमरता का दर्शन हमारी परंपरा की विशिष्टता है। इसलिए हम मृत्यु को अंत नहीं समझते, हम उसे एक नई शुरुआत समझते हैं। कर्म-फल का सिद्धांत भी इसी दर्शन से आ मिलता है। अगले-पिछले जन्म की अवधारणा भी इसी का हिस्सा है।
मूलत: ये पूर्व का दर्शन है। पिछले कुछ दशकों में इस विचार के आधार पर पश्चिम में प्रयोग और शोध किए गए। इसके आधार पर मानव की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का इलाज किया जाता है। इसे ‘पास्ट-लाइफ-थैरेपी’ कहा जाता है। ये सम्मोहन विधा का ही एक हिस्सा है।
इस तरह से पश्चिम में भी आत्मा की अमरता और कर्मफल के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया गया है। पास्ट-लाइफ-थैरेपिस्ट केरोल बोमेन बताते हैं कि ‘इंसान का जन्म कोरी स्लेट की तरह नहीं होता है। उसके मन में कई जन्मों की स्मृतियां जमा रहती है, जिस तरह से सभ्यताओं के अवशेष पर समय के साथ मिट्टी की पर्त जमती रहती है और वे धरती में समाती रहती हैं, उसी तरह पिछले जन्म की स्मृति नए जन्म में दब जाती है।’
इसमें जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे भावनाएं उभरती है। आप रोने लगते हैं जब आप फिर से अपने प्यारे बच्चे की मृत्यु पर फिर से उदास होते हैं, जब आपको जनसंहार की याद आती है तब आपको फिर से हताशा का अहसास होगा।
क्यों है जरूरत?
ये एक हीलिंग थैरेपी होती है। जैसा कि केरोल बताते हैं कि हमारा मन कोरा नहीं होता है। हमारी आत्मा में पुराने कई जन्मों की स्मृतियां जमा हुआ करती है। इसके तहत हमारी आत्मा में बुद्धि और भय भी जमा होते रहते हैं। हमारे मन में अपने पुराने जन्मों की कई स्मृतियां रहती है।
और ये हमारे आज के जन्म को भी प्रभावित करती है। कभी नकारात्मक तो कभी सकारात्मक तौर पर भी। और जब ये सब हमारे रिश्तों, व्यवहार, प्रेरणाओं, स्वास्थ्य यहां तक कि हमारे शरीर को भी नकारात्मक तरीके से प्रभावित करने लगे तो फिर इलाज की जरूरत होती है।
कैसे होता है इलाज
सम्मोहन की विधि से पुरानी स्मृतियों को जीवित किया जाता है और मनोभावों के विरेचन की परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है। जैसे यदि कोई डर है या कोई दुख है तो उसकी अभिव्यक्ति का रास्ता खुलता है और इंसान के मन पर जमी परत उतरती जाती है।
ये थैरेपी वर्तमान जीवन को कुंठा मुक्त, सरल और सहज बनाने के लिए की जाती है। इसके तहत इस सिद्धांत पर विश्वास किया जाता है कि आज से पहले भी जीवन था और उसकी स्मृतियां आज के जीवन को प्रभावित करती है।