यही नहीं, डेटिंग के दौरान होने वाले खर्चे को महिला बनाम पुरुष का मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है।हमारे आर्थिक, सामाजिक, लैंगिक, नस्ली और नागरिकता के आधार पर अनुभव अलग-अलग हैं।आखिरकार, समानता और न्यायसंगतता दो अलग-अलग चीजें हैं। अगर दो लोगों को समान जूते मिल रहे हैं तो वह समानता है। लेकिन न्यायसंगतता का मतलब ये है कि हर व्यक्ति को वह जूता मिले जो उनके पैर के मुताबिक बिलकुल ठीक है।बेहतरीन रिश्तों में लोग अपने बीच न्यायसंगतता को हासिल करने की कोशिश करेंगे।
एक बार मैं एक लड़के के साथ पहली डेट पर गई। वो ज़्यादातर समय अपनी स्पोर्ट्स कार और यात्राओं का बखान करता रहा।इसके बाद जब बिल देने का समय आया तो उसने कहा कि हमें बिल को बांट लेना चाहिए। मैं ये सुनकर सोच में पड़ गई।दिलचस्प बात ये है कि ऐसे समृद्ध परिवारों से आने वाले लड़के अक्सर मेरे दोस्तों के बीच ऐलान करते हैं कि वे महिलावादी हैं और हम लोग खर्चे को बांटना चाहते हैं।पुरुष इस बात को मानें या ना मानें लेकिन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी हासिल होती है। यही नहीं, पुरुष ये भी मानें या नहीं मानें लेकिन इस वजह से पुरुषों को सीधा फायदा होता है।
इसका मतलब ये नहीं है कि पुरुष मेहनत से काम नहीं करते हैं या उन्हें हमेशा ही बिल देना चाहिए। जब मैं ऐेसे पुरुषों के साथ डेट पर गई हूं जिनकी तनख़्वाह मुझसे कम है तो मैं बिल को बांटने के लिए तैयार रहती हूं।इसी बीच अगर कभी मैं ये देखती हूं कि पहली डेट का बिल देने के बाद डेट पर आने वाला लड़का मुझसे किसी तरह की अपेक्षा रख रहा है तो मैं बिल साझा करने का सुझाव देती हूं और आगे किसी तरह की बातचीत बंद कर देती हूं।इस तरह की पुरातनवादी सोच बताती हैं कि ऐसे पुरुष महिलाओं के सम्मान और उनकी सहमति को अहमियत नहीं देते हैं।
शक्ति के असुंतलन को चुनौती
मैंने अब तक महिलाओं और पुरुषों दोनों को डेट किया है। लेकिन हंसी की बात ये है कि जब भी मैं किसी महिला या लैंगिक-विविधता वाले व्यक्ति के साथ डेट पर गई हूं तो हम लोग बिल देने के लिए झगड़ते हैं।मैं अपने साथी जैक के साथ बीते एक साल से हूं। जब उसने मुझे बताया कि वह जानवरों को प्यार करता है, अपने दोस्तों के बारे में बताया, और श्रम अधिकारों को लेकर बात की तो मुझे बहुत अच्छा लगा।हमारी पहली डेट पर उसने बिल अदा किया था और दूसरी डेट पर मैंने खर्चा किया था।
अब हम जब भी बाहर घूमने जाते हैं या एक दूसरे के घरों पर जाते हैं तो अपनी क्षमता के आधार पर खर्चों को बांटते हैं।भविष्य में ये बदल सकता है लेकिन हमारे बीच एक संतुलन कायम हो गया है। हमारा उद्देश्य ये है कि हम दोनों सम्मानित महसूस करें और किसी को ये नहीं लगे कि उसका फायदा उठाया जा रहा है।
पहली डेट वो मौके होता हैं जब आपको ये पता चलता है कि समाज संसाधन के स्तर पर कितनी असमानता है। अगर हम बेहतरीन लोगों के साथ समय बिताना चाहते हैं तब शक्ति के असंतुलन को चुनौती दिया जाना हर रिश्ते के लिए जरूरी है।पहली डेट पर कौन पैसे खर्च करेगा ये नहीं तय करता कि रिश्ते के नियम कैसे होंगे।डेट के बाद जब लोगों के बीच एक तालमेल बन जाता है तो लोग वो समीकरण तलाश सकते हैं जो उन दोनों के हिसाब से ठीक हों।