जानें प्रदोष में क्यों होती है शिव पूजा और उसके लाभ
प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और उनको ध्यान में रख कर व्रत किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं। स्वाभाविक है कि वे इस काल में अत्यंत प्रसन्न होते हैं, इसलिए जो लोग शिव के आर्शिवाद से अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत जरूर रखें। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार के दोष का निवारण किया जा सकता है।
सप्ताह के सातों दिन हैं खास
धर्म कर्म कांड के जानकारों के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। अगर रविवार के दिन प्रदोष पड़ने पर ये व्रत रखने से सदा नीरोगी रहेंगे। सोमवार के दिन व्रत से सारी इच्छायें फलित होती हैं। मंगलवार के प्रदोष व्रत को रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और स्वास्थय अच्छा रहता है। बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है। बृहस्पतिवार को शत्रु का नाश होने का आर्शिवाद मिलता है। शुक्र प्रदोष व्रत से सौभाग्य में वृद्धि होती है। जबकि शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
इस व्रत में सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में निर्जल रहकर व्रत रखना सर्वोत्म होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। भोजन में फलाहार ही ग्रहण करें।