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जेएनयू की डिग्री… जाट भी, एक मार्मिक फेसबुक पोस्ट छोड़कर चले गए कैप्टन पवन

captain-pawan-kumar-operation_650x400_81456060600नई दिल्ली: वह जाट थे, लेकिन आरक्षण की राजनीति उनके दिमाग में कहीं नहीं थी।

उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से डिग्री ली थी, लेकिन ‘आजादी’, भाषण, देशद्रोह जैसे शब्दों पर बहसों से भी वो दूर थे।

वह अभी सिर्फ 23 साल के ही तो थे। उनका काम था आतंकियों को हिन्दुस्तान की जमीन से बाहर करना। वह भारतीय सेना के लिए काम करते थे। उन्होंने अंतिम सांस तक भारत की सेवा की।

अपने अंतिम फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, ‘किसी को आरक्षण चाहिए तो किसी को आजादी भाई। हमें कुछ नहीं चाहिए भाई। बस अपनी रजाई।’

तीखी राजनीतिक बहसों से दूर, कैप्टन पवन कुमार को अपनी देशभक्ति को सम्मान का तमगा बनाकर पहनने की जरूरत नहीं थी। वह एक सैनिक थे, जिन्होंने अपना काम किया।

जम्मू-कश्मीर के पंपोर में हुए आतंकी हमले में 10 पैरा स्पेशल फोर्स के अफसर कैप्टन पवन कुमार शहीद हो गए। यहां एक सरकारी बिल्डिंग में कम से कम 3 आतंकवादी घुस आए थे और वे इस जटिल अभियान में अपने जवानों का सामने से नेतृत्व कर रहे थे।

श्रीनगर स्थित सेना की 15 कॉर्प के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने बताया कि कैप्टन पवन कुमार ईडीआई सरकारी बिल्डिंग में आतंकवादियों के खिलाफ चले ऑपरेशन में अपने जवानों का नेतृत्व करते हुए शहीद हो गए। उन्होंने कहा कि बिल्डिंग में कुछ और आम लोगों के फंसे होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए आतंकियों के खिलाफ भीषण मुठभेड़ में कैप्टन पवन ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

पवन के फेसबुक प्रोफाइल की कई तस्वीरें हमें वो थोड़ी सी जानकारी देती हैं कि वह असल में कैसे इंसान थे। एक आम युवा भारतीय आर्मी अफसर, जो बुलेट मोटरसाइकिल और जीप को पसंद करते थे। वह बंदूकें भी पसंद करते थे।

उनका फेसबुक प्रोफाइल किसी भी आम भारतीय का हो सकता था। असल में यह प्रोफाइल उस शख्स का था जिसकी नियति ही भारतीय सेना में होने की थी। पवन आर्मी-डे के दिन 15 जनवरी 1993 को पैदा हुए थे। उनके पिता राजबीर सिंह का साफ संदेश था, ‘मेरी एक ही संतान थी, जिसे मैंने सेना व अपने देश को दे दिया। कोई भी पिता इतना गौरवान्वित नहीं हो सकता।’

 

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