स्वास्थ्य

ढलती उम्र और सपोर्ट सिस्टम

support_system_20_11_2015ऐसे व्यक्तियों का समूह जो बढ़ती उम्र के लोगों को अपने विचार साझा करने, अपनी परेशानियों को बांटने, बीमारी या अन्य तकलीफ में मदद करने आदि में सहायता कर सके। यह समूह केवल बुजुर्गों का भी हो सकता है और इसमें किसी भी उम्र के लोग भी शामिल हो सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इस समूह के साथ रहकर बुजुर्ग अपनी आगे की उम्र को पॉजिटिव एप्रोच के साथ स्वस्थ रहकर जी सकते हैं।

केयरगिवर्स की भूमिका

सपोर्ट सिस्टम का सबसे अहम कारक। चाहे परिवार का कोई व्यक्ति हो या फिर पास-पड़ोसी या फिर कोई प्रोफेशनल व्यक्ति केयरगिवर्स के कई सारे रूप नजर आते हैं। जाहिर है कि परिवार इस मामले में सबसे ऊपर है क्योंकि वहां निस्वार्थ सेवा की आशा ज्यादा की जा सकती है लेकिन कई बार रिश्तों से आगे भी ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो किसी बुजुर्ग की सेवा अपने प्रियजन की तरह करते हैं। किसी केयरगिवर का काम तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब बुजुर्ग व्यक्ति बीमार, दुर्घटना का शिकार हो या किसी अन्य वजह से पूरी तरह दूसरों पर आश्रित हो।

ऐसा हो सपोर्ट सिस्टम

सपोर्ट ग्रुप्स बुजुर्गों के लिहाज से एक बड़ा सम्बल होते हैं। हालांकि भारत में सामाजिक ताना-बाना इस तरह का है कि यहां मित्र और अड़ोस-पड़ोस ही बढ़िया सपोर्ट सिस्टम की तरह काम कर सकता है लेकिन विदेशों की तर्ज पर हमारे देश में ऐसे सपोर्ट ग्रुप्स की भी जरूरत है जो खासतौर पर अकेले या निराश्रित बुजुर्गों की देखभाल कर सकें। अभी ऐसे ग्रुप्स हैं लेकिन बहुत कम मात्रा में। यह सपोर्ट सिस्टम मानसिक उलझनों, अवसाद, निराशा आदि के अलावा हारी-बीमारी भी बुजुर्गों को जीवन के प्रति आशावान बनाए रख सकता है।

इलाज भी, स्वास्थ्य भी

बुजुर्ग लोगों के संदर्भ में सपोर्ट सिस्टम न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं बल्कि बीमार स्थिति में उन्हें फिर से उठ खड़े होने को भी प्रेरित करते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि सपोर्ट ग्रुप के होने से बुजुर्गों में मानसिक तनाव के साथ ही आत्महत्या के विचार जैसे नकारात्मक भावों के आने का प्रतिशत भी कम हो जाता है। यही नहीं वे बुजुर्ग जिनके आस-पास सपोर्ट ग्रुप होते हैं, उनमें फिट बने रहने के प्रति रुझान और नियमित दिनचर्या को लेकर सकारात्मकता ज्यादा होती है।

 
 

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