उत्तर प्रदेशराज्यलखनऊ

तीन साल के बेटे की गवाही से पिता को उम्रकैद

high-court-court-chandigarh-court-court-hammer_1457176685तीन साल के बच्चे की गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता है। अगर उसका ठीक से मूल्यांकन व गहराई से पड़ताल की गई तो उसे सुबूत के रूप में स्वीकारा जा सकता है। हालांकि, इस पर ध्यान रखने की भी जरूरत है, क्योंकि बच्चे को बरगलाना आसान होता है। 
उसे गवाही से पहले आसानी से सिखाया-पढ़ाया जा सकता है।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह टिप्पणी करते हुए राजधानी में वर्ष 2008 में पत्नी की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे अभियुक्त की अपील खारिज कर दी और उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। 

जस्टिस सुरेंद्र विक्रम सिंह राठौड़ और जस्टिस शशि कांत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने तीन वर्षीय अनस की योग्यता व क्षमता को परखा है और संतुष्ट होने के बाद पिता इब्राहिम उर्फ पप्पू के खिलाफ उसकी गवाही को दर्ज किया। उसने अपने पिता को हत्यारे के रूप में कोर्ट में पहचाना है। 

उसने अपने पिता को मां रिजवाना की हथौड़ा मारकर हत्या करते हुए देखा है, उसने यह तथ्य अपने नाना-नानी और पुलिस को बताए थे। ऐसे में उसकी योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। लिहाजा ट्रायल कोर्ट ने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे सही हैं। 

कोर्ट ने कहा, अभियुक्त ने सोच समझकर पत्नी की हत्या की है। संभवत: तब वह सो रही थी। यह अचानक हुई लड़ाई और मौत का मामला नहीं है। ऐसे में उसे हत्या का दोषी ठहराया जाना सही है। वह उसी सजा के लायक है, जो उसे दी गई है।

प‌िता नहीं दे पाया जवाब

हाईकोर्ट ने अभियुक्त इब्राहिम से कहा कि अनस ने जो बयान दिया है, अगर वह गलत है तो सही तथ्य क्या हैं? रिजवाना को किसने मारा, अभियुक्त इब्राहिम को अगर कोई तथ्य पता है तो उसे साक्ष्य अधिनियम के तहत बताना चाहिए। मगर, वह कोर्ट को कोई संतोषजनक जानकारी नहीं दे सका। 

हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में यह स्पष्ट कर चुका है कि बच्चों की गवाही को गवाही न मानने का कोई कानून नहीं है। अनस की गवाही में स्पष्ट किया गया है कि उसके पिता ने ही उसकी मां की हत्या की है। 

उसने घटना को देखा है और जिरह के दौरान उसने बताया है कि वह गिनती नहीं गिन सकता। लाल पेन को उसने ‘खूनी लाल’ बताया और पुलिस को भी सही ढंग से पहचाना है। सिर्फ पीले पेन को लाल बताने के अलावा उसने कोई ऐसी गलती नहीं की है, जिससे लगे कि वह चीजों को सही ढंग से समझ नहीं रहा है या गलत व झूठे जवाब दे रहा है। उसे पूरी तरह विश्वसनीय माना जा सकता है।

जेल से की गई अपील में अभियुक्त इब्राहिम के न्यायमित्र व प्रदेश के अतिरिक्त सरकारी वकील गौरव कालिया का कहना था कि ट्रायल कोर्ट का फैसला गलत और उपलब्ध सुबूतों के विपरीत है। 

इस मामले में लड़की के पिता और अभियुक्त के साथ मकान में किराए पर रहने वाले अब्दुल अजीज अहमद चश्मदीद गवाह नहीं है। जबकि तीसरा गवाह अभियुक्त का बेटा अनस अभी तीन वर्ष का है, वह चीजों को सभी संदर्भ में समझ नहीं सकता। उसकी गवाही को सुबूत नहीं माना जाना चाहिए। 

यह था मामला

5 मार्च 2008 की सुबह राजधानी के वजीरगंज थाने में मोहम्मद सलीम ने शिकायत दर्ज करवाई कि उसकी बेटी रिजवाना की हत्या उसके पति इब्राहिम ने कर दी है। वह रकाबगंज के सोहनगर मोहल्ले में परिवार के साथ रहता है।

सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची तो देखा रिजवाना का शव घर में पड़ा था। सलीम ने बताया था कि रिजवाना की शादी इब्राहिम से 11 साल पहले हुई थी और उसके चार बच्चे हैं। बुक बाइंडिंग का काम करने वाला इब्राहिम घटना के करीब छह महीने पहले से खाली बैठा था। 

इस दौरान आर्थिक तंगी को लेकर दोनों में झगड़ा होता था। इब्राहिम ने रिजवाना को कई बार जान से मारने की धमकी भी थी। इस मामले में छह अक्तूबर 2010 को सीबीआई (आयोध्या प्रकरण) विशेष अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इब्राहिम को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई और पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कहा, जुर्माना नहीं चुकाने पर एक वर्ष सश्रम कारावास और भोगना होगा। 

 
 

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