…तो अब चीन में बढ़ रही है भारतीय संस्कृति की दीवानगी
इसी प्रकार चीन के अन्य शहरों शंघाई, बीजिंग, नैंचिंग, ऊसी, सूचो, हौंग्जु के अनेक पर्यटक स्थलों पर भ्रमण के दौरान मिले कई चीनी परिवारों के बीच हिंदी फिल्मों का क्रेज देखने को मिला।
ऐसा ही एक किस्सा याद आ रहा है, चीन में दंगल फिल्म शुरू होने से पहले जब आमिर खान शंघाई आने वाले थे तो मेरे विभाग के एक विद्यार्थी ने ही मुझसे पूछा कि क्या मैं आमिर से मिलने में उनकी कोई मदद कर सकता हूं। तब तक आमिर के शंघाई आने का कार्यक्रम का उतना प्रचार भी नहीं हुआ था लेकिन ये उस छात्र की रुचि ही थी कि उसने आमिर के कार्यक्रम पर लगातार नजरें गड़ा रखी थीं। चीन में रह रहे भारतीयों के पास ऐसी अनेक कथाएं हैं जब भारतीय कलाओं और कलाकारों के बीच चीन के लोगों का आकर्षण सिर चढ़कर बोलता रहा है।
हिंदी फिल्मों के प्रति जो क्रेज कभी रूस, ब्रिटेन या अमेरिका, कनाडा में सुना जाता था वह अब चीन में खूब दिख रहा है। मैंने शंघाई आने के बाद बॉलीवुड नृत्य गीतों पर आधारित कार्यक्रमों में हजारों चीनी नृत्य-संगीत प्रेमियों को गाते, नाचते, झूमते देखा है। ये नजारा कुछ ऐसा ही होता है जब आप भारतीय कार्यक्रमों में भीड़ को लोकगीतों पर थिरकते देखते हैं। चीन में भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के दीवाने भी कम नहीं हैं, फिर चाहे, संतूर, सितार, मृदंग, तबला, बांसुरी वादन हो या फिर कत्थक, भरतनाट्यम या फिर भांगडा जैसे नृत्य।
हाल ही में ब्रिक्स सम्मेलन के अवसर पर चीन की एक समाचार चैनल की संवाद्दाता का हिंदी गीत पर नाचना चर्चा में आया था। हालांकि कुछ लोगों को बेशक यह अजूबा लग रहा हो लेकिन तीन महीने पहले ही शंघाई में सम्पन्न चैती संस्था के कार्यक्रम की जानकारी कम ही लोगों को होगी जब स्थानीय लोगों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति भी यही दीवानगी देखने को मिली थी।
उक्त कार्यक्रम में एक चीनी नृत्यांगना जीन शान शान ने एकल वह समूह प्रस्तुतियों में इतनी शानदार प्रस्तुति दी थी कि देखने वालों को वह भारत के ही किसी राज्य का नजारा लग रहा था। इसके विपरीत भारतीयों के बीच चीन की इस विरासत को अभी पहुंचना अभी बाकी है, लेकिन यह एक जरूरी काम है। चीन की अपनी गीत-संगीत-नृत्य की एक मजबूत विरासत है, जिसे जानना हमारे लिए भी उतना ही जरूरी है जितना चीन के लिए हमारी संस्कृति को देखना समझना।
चीन में शिक्षण के दौरान मुझे यहां की आधुनिक और परम्परागत संगीत नृत्य के कई कार्यक्रमों को देखने का अवसर मिला, जिसमें चीन की ललित कलाओं की विरासत को भारतीय विरासत के नजदीक पाया। जाहिर है कला मनुष्य को जोड़ती है। भारत और चीन के बनते बिगड़ते संबंधों में यह सांस्कृतिक विरासत पुल का काम कर सकती है जिससे पड़ोसी मुल्क के साथ नजदीकी और प्रेम के नए सोपान तय होंगे।