…तो सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी
अखिलेश सिंह ‘चन्देल’
किसी भी काम की शुरुआत करने से पहले जरूरी यह है कि उससे संबंधित बातों को दृढ़तापूर्वक कही जाये। दृढ़ होने का मतलब यह नहीं है कि किसी के साथ क्रोधित होकर, धमकी देकर या किसी पर आरोप लगाकर पेश आयें। जरूरी है कि किसी के अधिकारों में हस्तक्षेप किये बगैर अपने प्रति दृढ़ रहें। आप सीधे अर्थों में क्या कहते हैं यह दूसरों को बता दें। अपने अधिकारों और इच्छाओं का सम्मान करते हुए दूसरों का भी सम्मान करें। अच्छा व्यवहार करने का सबसे अच्छा तरीका है कि उसकी जरूरतों, विचारों और इच्छाओं का भी ध्यान रखा जाये। दृढ़ बनने के लिए आवश्यक है कि आप सर्वप्रथम अपने अन्दर प्रतिभा और विश्वास की भावना को विकसित करें क्योंकि यह एक ऐसी प्रभावी व्यवस्था है जो क्रोधित होने पर ‘न’ कहने का अधिकार और सहायता की मांग पर साहस भी प्रदान करती है। जब आप किसी को ‘न’ कहना चाहते हैं तो भी आपको निश्चिंत और दृढ़प्रतिज्ञ बनना पड़ता है।
आपके अन्दर यह क्षमता अवश्य होनी चाहिए कि संक्षेप में बिना कोई बहाना बनाये आप ‘न’ शब्द दृढ़तापूर्वक कह सकें। हमेशा दूसरों की बातों को स्वीकार कर लेना कमजोर, आत्मसम्मान को प्रकट करता है। इस तरह के व्यक्ति आत्म विश्वास की कमी के कारण हमेशा अपने आपको कमजोर नजरिये से देखता है और अपनी बातों को कहीं भी कह पाने में संकोच का अनुभव करता है। कमजोर आत्मसम्मान व्यक्ति को दूसरे तरीके से भी प्रभावित करता है। इससे व्यक्ति झगड़ालू, उत्तेजक तथा कायर बनने की दिशा में अग्रसर होता है। कुछ लोग जो अपने जीवन में प्रगति नहीं कर पाने से कुंठा के शिकार हो जाते हैं, वे अपने सहकर्मियों को गाली-गलौच या नीचा दिखाने की कोशिश में ही लगे रहते हैं तथा कुछ हद तक वे अपनी कोशिशों में कामयाब भी हो जाते हैं। ढुलमुल व्यवहार भी आपको व्यावहारिक रूप से कमजोर बनाते हैं क्योंकि इससे आपके अधीनस्थ आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। यदि किसी स्टाफ मीटिंग में आप किसी को अपनी बातों पर बहस करने का मौका देते हैं या अपनी बातों को आत्मविश्वास की कमी के कारण ठीक से नहीं कह पाते तो यह सभी बातें बॉस की नजरों में आपकी अहमियत को कम करता है।
यदि अपने आपको दृढ़ नहीं बनाते हैं तो आप अपनी कीमत पर दूसरों को लाभ उठाने का मौका देते हैं। अपनी योग्यता पर संदेह व्यक्त करना आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचाना है। कुछ लोगों को बिना किसी कारण के क्षमा मांगने की आदत हो जाती है। ये लोग अपनी शक्तिहीनता का केवल मौखिक रूप से मूल्यांकन कर बिना किसी कारण के बार-बार सॉरी कहते रहते हैं। इस तरह की बातें एक बड़ी गलती करने के प्रति प्रतिबद्ध बनाती है। जब भी जिन्दगी में कोई परेशानी आती है तो उस समय आप दोस्त या परिवार के सदस्यों से सहायता की उम्मीद रखते हैं। इस तरह की परिस्थितियों का सामना करने के लिए सबसे पहले चिन्ताओं को कम कीजिए। लगातार अभ्यास के माध्यम से दृढ़ता की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। यदि किसी कारणवश आप किसी से दृढ़तापूर्वक पेश नहीं आ पाते तो इसको लेकर पछताने या हीनभावना से ग्रसित होने की जरूरत नहीं है। इसके अतिरिक्त हमेशा परीक्षण करते रहें कि आप कहां कुछ चीजों को पाने में चूकते हैं और कहां अच्छा करते हैं। आप अपने आपको हर समय प्रोत्साहित करते रहें। अतीत की गलतियों से सीख लेते हुए जीवन की दूसरी सफलता के लिए हमेशा तैयार रहें। अपनी कमजोरियों को दूसरों के सामने प्रकट करने से हमेशा बचें। जहां भी आपको ठीक लगे उसको बताने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखायें। यदि एक बार भी अपनी जिन्दगी में पूर्ण संतुष्टि के स्तर को प्राप्त करते हैं तो अपने आपको मनपसन्द जगह पर जाकर मनोरंजन करके या फूल के गुच्छों द्वारा पुरस्कृत कर सकते हैं। इस तरह के कदम को उठाकर आप निश्चित तौर पर आत्मसम्मान को बढ़ा सकते हैं। जब दूसरे आपको सम्मान करना शुरू करते हैं तो आप स्वयं में खुद अपनी नजरों में अच्छे लगने लगते हैं।
सबसे जरूरी है कि आप अपने चेहरे की भाव भंगिमा को अपनी बातों को कहने के अनुरूप बनाने का प्रयास कीजिए। इसके लिए जरूरी है कि जब भी किसी विषय पर बातचीत करनी हो तो अपनी आवाज की एक निश्चित सीमा तय करें। यदि आप किसी की बातों को सुन रहे हैं तो उसे भी लगना चाहिए कि हमारी बातों को ध्यानपूर्वक सुना जा रहा है। इस तरह की बातों को यदि आप अमल में लाते हुए कोशिश करते हैं तो अवश्य ही अपनी बातों को दूसरे के समक्ष दृढ़तापूर्वक कहने के साथ-साथ आत्मविश्वास बढ़ाने में कामयाब हो सकेंगे। अपने जीवन के प्रति हमेशा उत्साह बनाये रखें और जहां तक संभव हो, जीवन को उमंग के साथ जीयें। आत्मविश्वास शरीर में रक्त की तरह होता है। बिना खून के जैसे शरीर जिन्दा नहीं रह सकता, इसी तरह बिना आत्मविश्वास के कभी कोई सफल नहीं हो सकता। अपने आत्मविश्वास, दृढ़संकल्प और इच्छाशक्ति के साथ अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ायें, वहां सफलता और जीत आपका इंतजार कर रही है।
आत्मविश्वास के बल पर व्यक्ति असंभव को संभव कर सकता है। आज वर्तमान परिवेश में दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति को अपनी सफलता के लिए हिम्मत के साथ आगे बढ़ना पड़ता है। साथ ही लक्ष्य या असफलताओं के प्रति प्रतिबद्ध बनना पड़ता है। प्राय: लोग असफलताओं के लिए भाग्य को कोसते हैं। वहीं कुछ लोग दूसरों को जिम्मेदार मानते हैं। दूसरों पर दोषारोपण करना समय को व्यय करना ही है। इससे हमें कुछ नहीं मिलता। जीवन को धैर्ययुक्त बनाने वाला ही न बनें बल्कि इसको फलीभूत करने वाला भी बनें। भविष्य की दृढ़ता के लिए महत्वपूर्ण विचार यही हो सकता है कि वर्तमान की जो भी अच्छाइयां हैं, उसको बरकरार रखें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं संत अतुलानंद आवासीय विद्यालय, होलापुर-वाराणसी में कार्यरत हैं।)