एरिथमिया होने पर आपके धड़कनों की चाल कभी सामान्य से ज्यादा बढ़ जाती है तो कभी सामान्य से धीमी हो जाती है। एरिथमिया तब होता है, जब दिल की धड़कन को नियंत्रित करने वाले विद्युत तरंगे ठीक से काम नहीं करते हैं। दिल की धड़कन अनियमित हो जाने पर, आपको सीने, गले अथवा गर्दन में दर्द महसूस हो सकता है।
एरिथमिया चिंताजनक हो सकती है। अधिकतर मामलों में इनका संबंध तनाव और चिंता से होता है। इसके अलावा उत्तेजना बढ़ाने वाले तत्व, जिनमें कैफीन, निकोटीन और अल्कोहल की मात्रा होती है, का सेवन भी इसका कारण हो सकते हैं। गंभीर भावनात्मक अहसास के कारण ही दिल की धड़कन बढ़ने की संभावना अधिक होती है। तनाव, डर, चिंता आदि के कारण यह सबसे अधिक होता है। अगर आपने अपनी क्षमता से अधिक काम कर लिया है, तो इसके परिणामस्वरूप आपके दिल की गति बढ़ जाती है। इसके अलावा हार्मोन में बदलाव, मासिक धर्म के समय, गर्भावस्था के समय यह समस्या हो सकती है।
गर्भावस्था के दौरान भी हृदय अतालता हो सकता है। अगर आपको नियमित रूप से ऐसी शिकायत हो, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। अगर आपको सांसों का उखड़ना, चक्कर आना, सीने में दर्द अथवा बेहोशी की शिकायत हो, तो आपको फौरन चिकित्सीय सहायता लेनी चाहिए।
गर्भावस्था के समय अगर ऐसा हो रहा है तो यह एनीमिया का लक्षण भी हो सकता है। थायरॉइड, निम्म रक्तचाप, एनीमिया, लो ब्लड शुगर, बुखार और निर्जलीकरण के कारण भी यह समस्या हो सकती है। कार्बोहाइड्रेट, वसायुक्त और अधिक शुगर वाले आहार का सेवन करने के कारण दिल की धड़कन बढ़ जाती है। अगर आपने ऐसे आहार का सेवन किया है, जिसमें नाइट्रेट या सोडियम की मात्रा अधिक है, तो यह भी दिल की धड़कन बढ़ा सकता है।
एरिथमिया से बचाव
आपको तनाव और चिंता से दूर रहना चाहिए। तनाव को दूर करने के सामान्य तरीके जैसे योग, ताई-ची और अरोमाथेरेपी आदि आपकी काफी मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही कुछ खास किस्म के आहार और पेय पदार्थों से दूर रहना भी आपके लिए मददगार हो सकता है। आपको अल्कोहल, निकोटिन, कैफीन और ड्रग्स से दूर रहना चाहिए। खांसी और सर्दी की कुछ दवाओं तथा कुछ हर्बल उत्पादों में भी इस तरह के तत्व हो सकते हैं, इसलिए आपको उनके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए।
सामान्यतः एक स्वस्थ मनुष्य का दिल एक मिनट में 50 से 90 बार धड़कता है। जब अकारण ही इसमें उतार-चढ़ाव होने लगे तो यह एरिथमिया हो सकता है। जब दिल की धड़कन सामान्य से ज्यादा तेज धड़कने लगे तो उसे टैकीकार्डिया और धड़कनों की रफ्तार कम हो जाए तो उसे ब्रेडीकार्डिया कहते हैं। अगर किसी को पहले से दिल की बीमारी हो या हार्ट अटैक आया हो, तो उसमें टैकीकार्डिया की संभावना बढ़ जाती है। इस अवस्था में धड़कन का तेज होना खतरनाक हो सकता है। ऐसी स्थिति में ऑटोमेटिक इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफिब्रिलेटर की मदद ली जाती है। जब आप लंबे समय तक तनाव या चिंता में रहते हैं, तो अन्य बीमारियों सहित दिल से जुड़ी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है।