महाभारत में गांधारी का बड़ा पुत्र दुर्योधन और भीम दोनों कुश्ती में उस्ताद थे। भीम ज्यादा शाक्तिशाली था इसलिए दुर्योधन भीम से बालपन से ही दुर्भावना रखता था। वह सोचने लगा कि नगर के उद्यान में सोते समय भीमसेन को गंगा में डाल दें और युधिष्ठिर तथा अर्जुन को कैद करके सारी धरती पर राज्य करें। दुर्योधन और गांधारी का भाई शकुनि, कुंती के पुत्रों को मारने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते थे। इसी योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने भीम को जहर देने की योजना बनाई। उसने एक बार जल विहार के लिए गंगा के तट पर प्रणामकोटि स्थान में बड़े-बड़े तंबू और खेमे लगाकर अलग-अलग कमरे बनवाए। उस स्थान का नाम रखा उदयनक्रीडन। चतुर रसोइयों ने खाने पीने की बहुत-सी वस्तुएं तैयार कीं। दुर्योधन के कहने पर युधिष्ठिर ने वहां की यात्रा करना स्वीकार कर लिया। वहां सभी कौरव और पांडव इकट्ठे हुए। वहां सभी राजकुमार एक-दूसरे को खिलाने-पिलाने लगे। दुर्योधन की योजना अनुसार भीमसेन के भोजन में विष मिला दिया गया। कहते हैं कि यह कालकूट विष था जिसका असर धीरे-धीरे होता है। भीमसेन को भोजन अतिप्रिय था, इसलिए उसके लिए अलग से दुर्योधन भाई की तरह आग्रह करके भोजन परोस देता है।
भीमसेन वह सब भोजन खा लेता है। दुर्योधन समझ जाता है कि अब मेरा काम हो गया। उसके बाद सभी जलक्रीड़ा करते हैं। जलक्रीड़ा करते समय भीमसेन जल्दी थक जाता है और वह जल्द ही खेमे में आकर सो जाता है। दरअसल उसके रग-रग में विष फैलने से वह निश्चेष्ठ हो जाता है। निश्चेष्ठ भीम को दुर्योधन लता की रस्सियों से मुर्दे की तरह बांधकर गंगा के ऊंचे तट से जल में ढकेल देता है। अन्य पांडवों को इस बात की भनक भी नहीं लगती है। भीम बेहोश अवस्था में ही गंगा के भीतर स्थित नागलोक जा पहुंचता है। वहां विषैले सांप भीमसेन को खूब डसते हैं। सर्पों के द्वारा डसने से दुर्योधन द्वारा दिए गए विष का प्रभाव कम हो जाता है। भीमसेन का चमड़ा इतना कठोर था कि सर्प उसका कुछ बिगाड़ नहीं सके। सर्पों के डसने और विष का प्रभाव खत्म होने से भीमसेन जाग्रत हो जाता है। तब वह सर्पों को पकड़ पकड़ कर मारने लगता है। यह देख बाकी के सर्प भाग जाते हैं। भागकर वे नागराज वासुकि के पास जाते हैं और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाते हैं। ऐसे में वासुकि नाग स्वयं भीमसेन के पास जाते हैं। उनके साथ गए आर्यक नाम के एक नाग भीमसेन को देखकर पहचान लेते हैं। आर्यक नाग भीमसेन के नाना का नाना था। तब वासुकि पूछते हैं, ‘हम इसको क्या भेंट दें। इसको बहुत सारे धन और रत्न दे दों।’… आर्यक कहते हैं कि नागेंद्र यह धन और रत्न लेकर क्या करेगा। यदि आप इस पर प्रसन्न हैं तो इस उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दीजिए, जिनसे सहस्रों हाथियों का बल प्राप्त होता है।’ वासुकि की आज्ञा से भीमसेन कुण्ड का सारा रस एक ही घूंट में पी लेता है। इस प्रकार आठ कुण्डों का रस पीकर नागों के निर्देशानुसार वे एक दिव्य शय्या पर जाकर सो जाता है।
इधर, नींद टूटने पर कौरव और पाण्डव खूब खेल-कूदकर हस्तिनापुर चले जाते हैं। आपस में वे बात करते हैं कि हो सकता है कि भीमसेन हमसे पहले ही हस्तिनापुर पहुंच गया हो। लेकिन जब वहां पहुंचकर पता चलता है कि भीम तो यहां आया ही नहीं तो माता कुंती सहित चारों पांडव घबरा जाते हैं। कुंती को दुर्योधन पर शक हो जाता है और वह चीखकर कहने लगती है उस दुष्ट ने मेरे पुत्र को मार डाला। ऐसे में विदुर उन्हें समझाते हैं कि वेद व्यासजी के कथानुसार तुम्हारे पुत्र दीर्घायु हैं तुम चिंता मत करो और यहां इस तरह विलाप करने से सभी को पता चलेगा। उधर, नागलोक में बलवान भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागता है। तब नाग कहते हैं कि आपने जो रस पीया है वह बहुत ही बलवर्द्धक है। अब आपमें हजार हाथियों का बल आ गया है। युद्ध में आपको कोई हरा नहीं सकता है। अब आप दिव्य जल से स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करें और हस्तिनापुर के लिए पधारें, वहां आपके परिजन व्याकुल हो रहे होंगे। फिर नागलोक के नाग उन्हें जल से ऊपर निकालकर पुन: उसी उद्यान में पहुंचा देते हैं। भीमसेन वहां से हस्तिनापुर पहुंचकर सारा वृत्तांत बताता है और दुर्योधन की दुष्टता का वर्णन भी करता है। तब युधिष्ठिर कहते हैं कि यह बात कभी किसी के समक्ष प्रकट मत करना कि तुम्हारे साथ क्या हुआ और कैसे तुममें हजार हाथियों का बल आया। अब से हम सब भाई आपस में एक-दूसरे की बड़ी सावधानी से रक्षा करेंगे।