धरती की आंतरिक गर्मी से पिघल रही आइसलैंड की बर्फ
एजेन्सी/ लंदन: भूवैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल का कहना है कि आइसलैंड की सतह के नीचे असामान्य रूप से गर्म मेंटल का क्षेत्र है, जिससे कई सौ किलोमीटर के क्षेत्र में बर्फ पिघल कर बिखर रही है। शोधदल के प्रमुख जर्मनी के भूविज्ञान शोध केंद्र की इरीना रोगोझीना और एलेक्सी पेट्रूनिन का दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बर्फ की चादर के पिघलने बारे में कहना है कि इसका कारण धरती के इतिहास में छुपा है।
करोड़ों साल पहले का इतिहास…
रोगोझीना ने बताया कि करोड़ों साल पहले धरती के नीचे की प्लेटों के खिसकने के कारण ही आइसलैंड में भूतापीय विसंगति हुई है। इसके कारण वहां की बर्फ की परत के नीचे उबलता लावा जमा है, जिसकी गर्मी से वहां की बर्फ भारी मात्रा में पिघलती जा रही है। हमें जलवायु परिवर्तन पर भविष्य के अध्ययनों में इसे भी शामिल करना चाहिए। उत्तरी अटलांटिक सागर के इस क्षेत्र के नीचे एक सक्रिय प्लेट है। 8 करोड़ से 3.5 करोड़ साल पहले टैक्टोनिक प्रक्रिया के कारण ग्रीनलैंड खिसकर उस क्षेत्र में चला गया जहां मेंटल (धरती के नीचे का गर्म लावा) काफी गर्म और पतला था। इसलिए ग्रीनलैंड की जमीन के नीचे बेहद मजबूत तापीय विसंगति है।
‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया शोध
यह शोध हाल ही में ‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें यह भी खुलासा किया गया है कि गर्म मेंटर का यह क्षेत्र ग्रीनलैंड के एक चौथाई हिस्से के नीचे है। इसमें कहा गया है कि उत्तरी-मध्य ग्रीनलैंड पिघलती बर्फ के ऊपर है। बर्फ नीचे से एक घने हाइड्रोलॉजिकल नेटवर्क के माध्यम से पिघलकर समुद्र में समा रही है। यह प्रक्रिया ग्रीनलैंड की बर्फ के तीन किलोमीटर नीचे हो रही है।