जीवनशैली

धर्मनिरपेक्षता में ही निहित है देश का विकास

dharmikभारत वर्ष में विभिन्न धर्मों में सक्रिय सांप्रदायिक एवं कट्टरपंथी शक्तियां देश को अपने निजी स्वार्थ की खातिर सांप्रदायिक धु्रवीकरण के रास्ते पर ले जाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं। निश्चित रूप से इसका प्रभाव कहीं-कहीं देखने को भी मिल रहा है। परंतु धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों पर खड़ा हुआ हमारा देश अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा तथा धर्मनिरपेक्ष संविधान के बल पर अभी भी पूरे विश्व के लिए सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है। सांप्रदायिकता के प्रचार एवं प्रसार जैसे विषय को लेकर सबसे महत्वपूर्ण एवं चिंतनीय बात यह है कि समाज को धर्म एवं संप्रदाय के नाम पर बांटने वालों की साजिश के बहकावे में आकर हम यह भूल जाते हैं कि हमारे धर्म व संप्रदाय का शुभचिंतक दिखाई देने वाला आज का यह हमदर्द हमें पहले कभी क्यों नजर नहीं आया? इस धर्म के तथाकथित शुभचिंतक ने कभी हमारी भूख, प्यास, रोजगार, स्वास्थ्य तथा दूसरी रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों व जीवन में महसूस होने वाली तमाम दूसरी परेशानियों की सुध क्यों नहीं ली? बगैर इन वास्तविकताओं को सोचे-समझे हुए हम इन मजहब-फरोशों के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं और आनन-फानन में अपने शांतिपूर्ण गांव, कस्बे व शहर को आग और धुंए की लपटों तथा बेगुनाह लोगों की वातावरण में फैलने वाली चींख-पुकार में बदल डालते हैं और सांप्रदायिकता के यह काले बादल फिर का परस्त ताकतों के लिए

वरदान साबित होते हैं और उन्हें समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करने के बदले सत्ता का सिंहासन  मिल ही जाता है।

यहां एक बात और भी गौर करने लायक है कि धर्म के नाम पर समाज को विभाजित करने का प्रयास भी उन्हीं नाकारा राजनीतिज्ञों द्वारा किया जाता है जोकि अपनी कारगुजारियों के नाम पर तथा अपने द्वारा कराए गए विकास कार्यों के बल पर जनता से वोट मांगने का साहस नहीं रखते। ऐसे राजनीतिज्ञों को या ऐसे राजनैतिक दलों को समाज के किसी एक वर्ग को अपने पक्ष में करने का सबसे आसान उपाय यही नजर आता है कि समाज में सांप्रदायिकता का विष घोल दें और इसके पश्चात होने वाले मंथन का चुनावों में लाभ उठाएं। बड़े आश्चर्य की बात है कि देश के साधारण लोग राजनीतिज्ञों के इन हथकंडों को समझे बिना इसके बहकावे में आ जाते हैं जबकि सांप्रदायिक दुर्भावना के सांप्रदायिक हिंसा में बदलने के बाद सबसे अधिक नुकसान सभी धर्मों व संप्रदायों के स्थानीय लोगों का ही होता है। यह नुकसान केवल परस्पर मतभेद पैदा होने तथा आजीवन वैमनस्य की दरार पड़ जाने तक तो पहुंचता ही है साथ-साथ तत्काल रूप से हिंसाग्रस्त प्रभावित क्षेत्र को भी आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाता है। हिंसाग्रस्त क्षेत्रों की दुकानें व बाजार बंद हो जाते हैं, ग्राहकों का घरों से निकलना दुष्वार हो जाता है। बाहरी क्षेत्रों से प्रभावित क्षेत्र में आने-जाने वाले लोगों के कार्यक्रम रद्द हो जाते हैं। रेल, बस जैसे यातायात प्रभावित होते हैं। गरीब मजदूर को मजदूरी नहीं मिल पाती। और हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में हिंसा के शिकार हुए लोग परेशान हाल होकर कष्टदायक स्थिति से जूझते दिखाई देते हैं। इसका कारण केवल यह है कि अपने निजी राजनैतिक स्वार्थवश किसी दूसरे शहर अथवा राज्य का कोई पेशेवर राजनीतिज्ञ किसी भी संवेदनशील क्षेत्र विशेष की

तलाश कर वहां माचिस लगाने का काम कर जाता है।

और खुद सुरक्षित जगह पर बैठकर किसी भी शांतिपूर्ण शहर में उठने वाले सांप्रदायिकता की आग के शोलों को खुश हो कर देखता रहता है।
उदाहरण के तौर पर अयोध्या नगरी हमेशा से ही शांति, सद्भाव तथा परस्पर भाईचारे की नगरी के रूप में जानी जाती रही है। इस धर्म नगरी में कई प्रमुख मंदिर ऐसे हैं जिनमें विराजमान देवी-देवताओं व भगवान की मूर्तियों की पोशाकें मुस्लिम समुदाय के कारीगरों द्वारा बड़ी ही श्रद्धा, कुशलता एवं स्वच्छता के साथ तैयार की जाती हैं। अधिकांश मंदिरों में भगवान पर चढ़ने वाली फूल मालाएं मुसलमानों द्वारा बनाई जाती हैं। इस धर्म नगरी में हिंदू व मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग मिलजुल कर व्यापार करते हैं तथा एक-दूसरे के साथ उनके बहुत मधुर संबंध हैं। परंतु जिस समय दिल्ली-लखनऊ अथवा नागपुर में बैठकर अयोध्या से संबंधित किसी आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाती है अथवा अचानक किसी आंदोलन की घोषणा की जाती है तो अयोध्या का साधारण नागरिक विशेषकर व्यवसायी भयभीत हो उठता है। उसे न सिंर्फ अपनी जान व माल परखतरा मंडराता दिखाई देने लगता है बल्कि उसे इस बात का भय भी सताने लगता है कि अमुक घोषणा से कहीं उसके व उसके परिवार के जीविकोपार्जन का साधन बनी कोई दुकान हिंसा की भेंट न चढ़ जाए अथवा अनिश्चितकाल के लिए बंद न हो जाए। भक्तजनों व ग्राहकों की उपस्थिति के कारण नजर आने वाले भीड़ भरे बाजार कहीं पुलिस, अर्धसैनिक बलों की भीड़ के रूप में न बदल जाएं। हंसती-खेलती और रामनाम के धार्मिक वातावरण में डूबी अयोध्या कहीं चींख-पुकार व

खून-खराबे की नगरी के रूप में न परिवर्तित हो जाए। अयोध्यावासियों को इस बात का भय गत् तीन दशकों से सताता आ रहा है।

उधर सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा अयोध्या के वातावरण को भगवान राम के नाम पर बिगाड़ने के प्रयास भी लगातार किए जा रहे हैं। परंतु इन सब के बावजूद अभी भी इस धर्मनगरी में वास्तविक धर्म की ध्वजा लहरा रही है और पूरी शांति बरकरार है।
अयोध्या में शांति बरकरार रहने के पीछे भी सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इस धर्मनगरी में धर्मनिरपेक्ष विचारधारा आज भी सांप्रदायिक तांकतों को मुंह तोड़ जवाब दे रही है। अयोध्या के अधिकांश साधू-संत व पुजारी आज भी यह भलीभांति समझते हैं कि भगवान राम, रामजन्म भूमि तथा हिंदू धर्म के स्वयंभू रूप से शुभचिंतक व ठेकेदार नजर आने वाले राजनीतिज्ञ दरअसल अपने निजी राजनैतिक लाभ के लिए ही धार्मिक उन्माद भड़काने का काम करते रहते हैं। पिछले दिनों अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद द्वारा जिस ८४ कोसी परिक्रमा का नाटक किया गया था उस कार्यक्रम के मुंह के बल गिरने का एक मात्र कारण यही था कि अयोध्या के साधू-संतों ने इस बेमौंके व अकारण होने वाली बेमौसमी ८४ कोसी परिक्रमा के पीछे छुपी भावनाओं व उसके मकसद को समझ लिया था। और उनके द्वारा इसका प्रबल विरोध किया गया तथा इस योजना को सहयोग देने से इंकार कर दिया गया। बजाए इसके ८४ कोसी परिक्रमा के असफल होने के बाद अब फैजाबाद, अयोध्या तथा अंबेदकर नगर जैसे पड़ोस के क्षेत्रों में कई साधू-संतों, बुद्धिजीवियों तथा हिंदू-मुस्लिम समुदाय के विद्वानों, साहित्यकारों तथा अमन व शांति के पक्षधर लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर समाज को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में विवादित रामजन्म भूमि के वरिष्ठ प्रभारी आचार्य सतेंद्र दास, महंत गया दास तथा महंत गोपाल दास जैसी सद भावनए शामिल हैं।
इन शांतिप्रिय लोगों द्वारा अमन पखवाड़ा २०१३ इसी मकसद से चलाया जा रहा है कि सभी धर्मों के लोग अपने-अपने तथाकथित शुभचिंतकों से सचेत रहें, उनके बहकावे में न आएं तथा क्षेत्रीय अमन व शांति को कायम रखने की खातिर राजनीतिज्ञों के हाथों की कठपुतली न बनें। किसी भी व्यक्तिगत् विवाद को सांप्रदायिक विवाद बनाने के कट्टरपंथी राजनीतिज्ञों के दुष्प्रयासों से बचें। इस

अभियान का मकसद आम लोगों को यह समझाना है

कि सांप्रदायिकता प्रत्येक परिवार, समाज यहां तक कि उनके अपने क्षेत्र से लेकर राष्ट्र तक के विकास में बाधक है। सांप्रदायिकता धर्म व संप्रदाय को प्रदूषित कर रही है। और मौजूदा दुर्भावनापूर्ण हालात के कारण ही धर्म जैसा गंभीर एवं मार्गदर्शन करने वाला विषय आम लोगों कोखतरनाक व भयभीत करने वाला दिखाई देने लगा है। जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात की जा रही है उसका अर्थ ही सांप्रदायिकतावाद है। जबकि धर्मनिरपेक्षता परस्पर सम्मान व एक-दूसरे के धर्म के प्रति आदर के भाव को दर्शाती है। सांप्रदायिकता एक-दूसरे धर्म के बीच कमियां तलाशती है तथा एक-दूसरे की आलोचना पर उतारू रहती है। लिहाजा हमें राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रयास करने चाहिए कि हम दूरदराज बैठकर सत्ता के सिंहासन का खेल खेलने वाले उन नेताओं से बचें जो अपनी कुर्सी कीखातिर हमारे गांव,कस्बे व शहर को हमारे तथाकथित शुभचिंतक बनकर उसे अग्नि की भेंट चढ़ाना चाहते हैं तथा हमारी शांति, सद्भाव व परस्पर सहयोग के पारंपरिक वातावरण को समाप्त कर राष्ट्र के विकास में बाधा पहुंचाना चाहते हैं। ऐसी तांकतें दरअसल हमारे समाज व देश के लिए सबसे बड़ा नासूर हैं तथा देश को सबसे अधिक नुंकसान ऐसी ही शक्तियों से पहुंचता है।

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