निराला ने दी थी नवीन काव्य को दिशा
नई दिल्ली। छायावाद के काल में जिस कवि के व्यक्तित्व ने हिंदी काव्य जगत को व्यापक रूप से प्रभावित किया वे थे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला। पारंपरिक रूप से महाकाव्यों के रचयिता को ही महाकवि कहा जाता रहा है लेकिन पंरपराओं को तोड़ने वाले निराला इसके भी अपवाद माने जाते हैं। उनकी ‘राम की शक्तिपूजा’ कविता को महाकाव्य दायिनी शक्ति से लैस माना गया और इसी आधार पर समकालीन आलोचकों ने निराला को महाकवि माना।
निराला ने न तो छंदों की परिपाटी को माना और न ही वे किसी विषय से बंधे ही रहे। इसीलिए निराला को छायावाद और प्रगतिवाद के संधिस्थल का कवि कहा गया है। उनकी कविताएं ‘वह तोड़ती पत्थर’ और ‘कुकुरमुत्ता’ को उनके प्रगतिशील होने प्रमाण और शोषितों के प्रति उनके लगाव को प्रदर्शित करने वाला माना जाता है।
निराला का जन्म महिषादल स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में माघ शुक्ल पक्ष की एकादशीए संवत 1953 को हुआ था। वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गांव के रहने वाले थे।
निराला जी का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए यह सुर्जकुमार कहलाए। 11 जनवरी 1921 को पं. महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई थी। रामनरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदी के लिए सन 1926 के अंत में जन्म संबंधी विवरण मांगा तो निराला जी ने माघ शुक्ल 11 संवत 1953 (1896) अपनी जन्म तिथि लिखकर भेजी। यह विवरण निराला जी ने स्वयं लिखकर दिया था। बंगाल में बसने का परिणाम यह हुआ कि बांग्ला एक तरह से इनकी मातृभाषा हो गई।
निराला के पिता पं. रामसहाय बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में एक सरकारी नौकरी करते थे। निराला का बचपन बंगाल के इस क्षेत्र में बीता जिसका उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। तीन वर्ष की अवस्था में उनकी मां की मृत्यु हो गई और उनके पिता ने उनकी देखरेख का भार अपने ऊपर ले लिया। निराला की शिक्षा यहीं बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाईस्कूल पास करने के पश्चात उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। हाईस्कूल करने के पश्चात वह लखनऊ और उसके बाद गढकोला (उन्नाव) आ गए। प्रारंभ से ही रामचरितमानस उन्हें बहुत प्रिय था। वह हिंदी बंगला अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में निपुण थे और श्री रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद और रवींद्रनाथ टैगोर से विशेष रूप से प्रभावित थे। निराला स्वच्छन्द प्रकृति के थे और स्कूल में पढ़ने से अधिक उनकी रुचि घूमने खेलने तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में थी। संगीत में उनकी विशेष रुचि थी। अध्ययन में उनका विशेष मन नहीं लगता था। इस कारण उनके पिता कभी-कभी उनसे कठोर व्यवहार करते थे जबकि उनके हृदय में अपने एकमात्र पुत्र के लिए विशेष स्नेह था। पंद्रह वर्ष की अल्पायु में निराला का विवाह मनोहरा देवी से हो गया। रायबरेली जिले में डलमऊ के पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी सुंदर और शिक्षित थीं। उनको संगीत का अभ्यास भी था। पत्नी के जोर देने पर ही उन्होंने हिंदी सीखी। इसके बाद अतिशीघ्र ही उन्होंने बंगला के बजाय हिंदी में कविता लिखना शुरू कर दिया। बचपन के नैराश्य और एकाकी जीवन के पश्चात उन्होंने कुछ वर्ष अपनी पत्नी के साथ सुख से बितायेए किन्तु यह सुख ज्यादा दिनों तक नहीं टिका और उनकी पत्नी की मृत्यु उनकी 2० वर्ष की अवस्था में ही हो गई। बाद में उनकी पुत्री जो कि विधवा थी की भी मृत्यु हो गई। अपनी इसी पुत्री याद में उन्होंने ‘सरोज स्मृति’ कवित लिखी जिसे हिंदी की सर्वश्रेष्ठ एलेजी (शोकगीत) मना गया है। निराला आर्थिक विषमताओं से भी घिरे रहे। ऐसे समय में उन्होंने विभिन्न प्रकाशकों के साथ प्रूफ रीडर के रूप में काम किया।
निराला जी ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया। 1923 के अगस्त से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में काम किया। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहां से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे। इन्होंने 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया। वे जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियां उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरूप से कविता के कारण ही है।