नींद पूरी न होने पर मानसिक तनाव और माइग्रेन होने का है खतरा…
भरपूर नींद लेने के कई फायदे हैं। हर रोज 7 से 8 घंटे की नींद लेने से मानसिक तनाव, मोटापा, माइग्रेन जैसी बीमारियां नही होती हैं। भरपूर नींद लेने के बाद आप फ्रेश महसूस करते हैं। एक सुखद और भरपूर नींद किसे नहीं सुहाती। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अगर आदमी ने कुछ खोया है तो वह है नींद। महानगरों में अब तो 24 घंटे का दिन हो गया है। काम, काम और काम, बस नहीं है तो चैन, नींद और आराम। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप पूरी नींद नहीं लेते तो कई भयानक बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं। मोटापे की समस्या, आलस्य, ब्लड प्रेशर बढ़ रहा हो, इन सबके पीछे कहीं न कहीं कम नींद कारण है।
सच तो यह है कि आज लोग औसतन एक से डेढ़ घंटा कम सो रहे हैं। अमेरिका में किए गए शोध के मुताबिक नींद की वजह से न जाने कितनी बार काम बिगड़ जाते हैं। एक ड्राइवर अगर लंबे समय से लगातार बगैर सोए गाड़ी चला रहा है तो दुर्घटना की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। ऐसा न हो तो भी कम नींद आदमी की कार्यक्षमता पर खासा विपरीत असर डालती है।
रोगों का कारण है अनिद्रा
शिकागो विश्वविद्यालय के एक मशहूर प्रयोग में वैज्ञानिक ऐलन रेस्टिशैफिन ने चूहों को सोने नहीं दिया। इस प्रयोग में पहले चूहे दुर्बल हुए, फिर उनके शरीर पर फोड़े निकल आए। ज्यादा खाने के बावजूद उनका वजन घटने लगा और उनके जिस्म का तापमान गिर गया। दो या तीन सप्ताह के भीतर ही उनकी मौत हो गई। जिन चूहों को नॉन रैम नींद दी गई थी, उनमें सेक्सुअल गतिविधि तो अत्यधिक बढ़ी और वे उक्त अवधि से दो गुना अधिक जीवित भी रहे, लेकिन बाद में मर गए। कारण साफ तो नहीं है, फिर भी संकेत बताते हैं कि नींद के अभाव में उनका इम्यून (रोग निरोधक क्षमता) सिस्टम फेल कर गया था।
दो तरह की होती है नींद
हाल-हाल तक धारणा थी कि शरीर और दिमाग को पूरा आराम देने के लिए सोना जरूरी है, लेकिन अब मालूम हुआ कि सोते वक्त दिमाग बहुत अधिक सक्रिय रहता है, इसके चलते आराम और नींद के दौरान जो तुलनात्मक ऊर्जा प्रयुक्त होती है, उसमें अंतर बहुत कम है।
दरअसल नींद दो प्रकार की होती है। एक रैम और दूसरी नॉन रैम। नॉन रैम के दौरान शरीर और दिमाग अक्रियाशील हो जाते हैं, जबकि रैम नींद में लोग सपने देखते हैं और उनका दिमाग सक्रिय रहता है। प्रतीत होता है कि रैम नींद के दौरान मस्तिष्क का विकास होता है और इसका संबंध सीखने और याददाश्त से होता है। शायद इसी कारण वयस्क और बूढ़ों की तुलना में बच्चे ज्यादा समय रैम नींद में गुजारते हैं। रैम का अर्थ संक्षेप में रैपिड आई मूवमेंट है।
नींद के बगैर चैन भी नहीं
सच तो यह है कि नींद के बगैर किसी का गुजारा नहीं। प्रकृति के चक्र की तरह शरीर का भी एक चक्र होता है और हमारा शरीर निश्चित समय में पूरा आराम चाहता है। जिसमें हमारी आंखें मुंदने लगती हैं, पलकें बोझिल होने लगती हैं और शरीर निढाल हो जाता है।
नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों को अक्सर कई तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। उनकी याददाश्त कमजोर होने लगती है। कई संस्थान कर्मचारियों को अब लगातार नाइट शिफ्ट में काम नहीं कराते। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी ज्यादातर चैनलों ने पांच दिन का सप्ताह कर दिया है। जिन लोगों को सप्ताह में छह दिन काम करना होता है, वे भी कोशिश करते हैं कि रविवार की छुट्टी पर भरपूर नींद ले सकें ।
कितने घंटे सोएं
नींद का कोई निश्चित पैमाना नहीं है। हर आदमी की शारीरिक बनावट और चक्र के मुताबिक उसकी जरूरतें भी अलग-अलग होती हैं। सामान्य तौर पर महिलाएं पुरुषों से ज्यादा सोती हैं। अगर आप लेटती हैं और आपको सोने में पांच मिनट या इसके आसपास समय लगता है तो समझिए कि आप कम नींद की शिकार हैं, लेकिन यदि आप 20-25 मिनट लेती हैं तो आपकी नींद पूरी है। बिस्तर पर जाते ही नींद आने का मतलब यह नहीं है कि आप सामान्य हैं। आमतौर पर वयस्क के लिए छह घंटे की नींद पर्याप्त होती है। ज्यादा मानसिक काम करने वालों को सात-आठ घंटे की नींद चाहिए और कम थकाऊ काम करने वालों को पांच घंटे सोना काफी होता है। किशोरों और बच्चों के लिए आठ घंटे की नींद जरूरी होती है।
ज्यादा सोना भी घातक
ज्यादा नींद भी घातक होती है। सैनडिगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डेनियल क्रिपके ने अपने अध्ययन और प्रयोगों में पाया है कि जिन लोगों का काम पांच या छह घंटे की नींद से चल जाता है, उन्हें आठ या नौ घंटे नहीं सोना चाहिए, क्योंकि इसके अपने नुकसान हैं। हालांकि डॉ. होर्न के अनुसार नींद में गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। अधिकतर लोगों के लिए बिना रूकावट वाली सात घंटे की नींद पर्याप्त है और अगर वे इसके बाद भी दिन में नींद की खुमारी महसूस करते हैं तो उन्हें झपकी लेने से नहीं रोका जाना चाहिए।
नए सर्वेक्षण बताते हैं कि जापान और अमेरिका की कुछ आधुनिक कंपनियां अब अपने कर्मचारियों को काम के बीच में झपकी लेने से नहीं रोकतीं। बल्कि वहां नैपरूम बनाए गए हैं, क्योंकि यह माना जाने लगा है कि कुछ-कुछ पलों के लिए झपकी लेने से कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
नींद क्यों नहीं आती
कई-कई शिफ्टों में काम करने, दिनचर्या अव्यवस्थित होने, परीक्षा आदि के समय में भी व्यक्ति कम सो पाता है। यदि बच्चा दूध पीता है तो मां की नींद कभी पूरी नहीं होती। इसलिए बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि जब बच्चा सोए, मां को भी सो जाना चाहिए। सच है कि कम नींद पूरे जीवन का ढर्रा बदल देती है।
नींद न आना बीमारी है। इनमें एक है, इनसोमानिया। इससे बचने के लिए लोग नींद की गोलियां खाते हैं, लेकिन ज्यादा मात्रा में खाने से कुप्रभाव होते हैं। बहुत से डॉक्टर इनसोमानिया के उपचार के लिए संतुलित आहार और नियमित व्यायाम को वरीयता देते हैं।
नींद संबंधी एक अन्य बीमारी स्लीप एपनोइया है। विश्व की लगभग दस फीसदी जनसंख्या इससे ग्रस्त है। इसकी चपेट में मोटे और अधेड़ ज्यादा आते हैं। इससे गले के मुलायम टिश्यू फैल जाते हैं और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। व्यक्ति खर्राटे लेने लगता है, जिससे उसकी नींद उचटती है। कई बार रात-रात भर यही प्रक्रिया चलती है और सुबह होने पर नींद पूरी न होने के कारण वह पूरे दिन थकान महसूस करता है।
हाल के दिनों में नारकोलेप्सी यानी दिन में ज्यादा नींद आने की बीमारी पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। अमेरिका में इसके उपचार के लिए मोडाफिनीज ड्रग का प्रयोग किया जाता है। यह बाजार में प्रोविजिल नाम से मिलती है। इसके हानि-लाभ अभी पूरी तरह मालूम नहीं हैं। खासतौर पर फौजियों, ऑपरेशन थियेटरों में डॉक्टरों और चुनाव के समय राजनेताओं के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
नींद की गोली कितनी कारगर
क्या गोली के जरिये नींद को खत्म करना अक्लमंदी है? नींद कितनी आनी चाहिए इस पर बहस नहीं हो सकती, मगर नींद को दूर भगाने की बात भी पूरी तरह सही नहीं मानी जा सकती। हां-इतना जरूर कहा जा सकता है कि एक अच्छी नींद के लिए अच्छा माहौल, मधुर संगीत, हवादार कमरा जरूरी है। बच्चों के लिए मां की लोरी का कितना महत्व है, इससे भला कौन वाकिफ नहीं। इसीलिए तो कहा है कि किस-किस को याद कीजिए, किस-किसको रोइए आराम बड़ी चीज है, मुंह ढककर सोइए।