उत्तराखंडराज्य

नेताओं के फरेब में यहां ग्रामीणों ने गुजार दिए 40 साल

पिथौरागढ़ के धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट तथा बागेश्वर जनपद की कपकोट तहसील के ग्रामीण आपदा झेलते-झेलते अब इसे नियति मानने लगे हैंं।

पिथौरागढ़: वो पत्थर उबालती रही तमाम रात, और बच्चे फरेब खाकर सो गए। आपदा पीड़ित के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। नेताओं के फरेब के चलते 40 वर्षो बाद भी इनके हालात नही बदले। पुनर्वास की आस मे उनकी आंखे पथरा गई है। इधर सियासतदान एक बार फिर वादों का पिटारा लेकर आने लगे है।

आपदा की दृष्टि से पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिला संवेदनशील है। पिथौरागढ़ के धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट तथा बागेश्वर जनपद की कपकोट तहसील आपदा झेलते-झेलते अब इसे नियति मान कर चलने लगी है।पांच दशक बीत गए परंतु पुनर्वास होता नजर नही आ रहा है। चार दशक पूर्व धारचूला तहसील मे भारी आपदा आई थी। गर्ब्याल गांव धंसने लगा था। इसी क्रम मे दर सहित कुछ अन्य गांव भी प्रभावित हुए। शासन ने कुछ परिवारो को उधमसिंह नगर के सितारगंज मे विस्थापित किया। इसके बाद आपदाएं तो बढ़ती गई परंतु पुनर्वास थम गया।

वर्ष 1992 के बाद पिथौरागढ़ हो या बागेश्वर, चमोली जिलों में आपदा लगातार आ रही हैं। अब आपदा पीड़ित परिवारों की संख्या भी हजारों में पहुंच चुकी है। जिला आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार अकेले पिथौरागढ़ जिले में वर्ष 2015 तक पुनर्वास के लिए चयनित गांवो की संख्या 101 थी।वर्ष 2016 की आपदा के बाद इनकी संख्या अधिक हो चुकी है। जिले में मुनस्यारी, धारचूला मे प्रभावित गांवो की संख्या काफी अधिक है। डीडीहाट तहसील में भी यह संख्या अब दो दर्जन से अधिक हो चुकी है। बेरीनाग, गंगोलीहाट और पिथौरागढ़ में भी ऐसे गांव है। कपकोट मे भी प्रभावित गांवों की संख्या काफी अधिक पहुंच चुकी है।

पुनर्वास के लिए चिन्हित गांवों में वर्ष 2013 की आपदा में तीन और वर्ष 2016 की आपदा मे दो औ गांव जुड़ चुके है। अब आलम यह है कि गांव ही नही अपितु सुरक्षित माने जाने वाले कस्बे भी आपदा की जद मे है। जिसमे मदकोट, बलुवाकोट, जौलजीवी, नाचनी, झूलाघाट शामिल है। पैतालीस वर्ष पूर्व की आपदा के प्रभावितो का अब तक पुनर्वास नही हुआ।

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