नेताजी के ‘अवतार’ के पास 4,000 करोड़ की संपत्ति, 250 लक्जरी कारें
एजेंसी/ 23 जनवरी 1975 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 78वीं जयंती थी। कानपुर शहर में कई महीनों से पर्चियां बंट रही थीं जिनमें कहा गया था कि इस दिन नेताजी वापस लौटकर जनता के सामने आएंगे। शहर के फूलबाग में खचाखच भीड़ जमा थी। कई घंटों की दुविधा के बाद एक सफेद दाढ़ी वाला इंसान मंच पर लोगों के सामने आया। उसी भीड़ के बीच से अचानक कुछ लोगों ने ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।
वहां जमा भीड़ थोड़ी देर तक स्तब्ध सी खड़ी रही। फिर जैसे ही मंच पर नेताजी बनकर पहुंचे उस इंसान ने बोलना शुरू किया, लोग उसपर जूते और पत्थर फेंकने लगे। वह यकीनन नेताजी नहीं था। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने उसे पकड़कर खूब पीटा। लोग बड़ी उम्मीद से नेताजी की झलक देखने जमा हुए थे और किसी और को वहां खुद को नेताजी बताते हुए देखकर वे गुस्से में थे। अगर उस दिन पुलिस ने वहां पहुंचकर उस आदमी की जान नहीं बचाई होती, तो शायद भीड़ ने उसे पीट-पीटकर मार डाला होता।
खुद को नेताजी का अवतार बताने वाला और अपने आप को ‘आध्यात्मिक गुरु’ कहने वाल वह इंसान अपना नाम जय गुरुदेव बताता था। मथुरा के जवाहर बाग पर कब्जा जमाकर बैठा रामवृक्ष यादव और उसकी फौज इसी गुरुदेव के ‘अनुयायी’ बताए जा रहे हैं। गुरुदेव के भक्त अपने को ‘जय गुरुदेव’ पंथ को मानने वाले बताते थे।
1980 के दशक में गुरुदेव ने सामाजिक सुधार और आध्यात्मिक उत्थान का संदेश देते हुए अपनी ‘दूरदर्शी पार्टी’ का गठन किया। 1989 के लोकसभा चुनाव में उसने करीब 12 राज्यों में 298 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी खड़े किए। उसके हिस्से में एक भी जीत नहीं आई। अपने अस्तित्व के इन 2 दशकों में हालांकि इस दूरदर्शी पार्टी का कोई चुनावी आधार नहीं बन सका, लेकिन गुरुदेव ने पैसे खूब बनाए। 18 मई 2012 को जब उनकी मौत हुई, तो उनकी संपत्ति 4,000 करोड़ की बताई गई।
गुरुदेव की संपत्ति में जमीन के अलावा 100 करोड़ नकद और 150 करोड़ कीमत की 250 लक्जरी कारें शामिल थीं। गुरुदेव का कहना था कि भक्तों के दिए दान से उनके पास संपत्ति जमा हुई है। हालांकि इस संपत्ति के बाबत कुछ और बातें भी कही जाती हैं।
साल 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम ने मथुरा की अलग-अलग अदालतों में गुरुदेव के आश्रम पर सैकड़ों एकड़ औद्योगिक जमीन हड़पने का आरोप लगाते हुए मामले दर्ज कराए। इसी साल पुरातत्व विभाग (ASI) ने गुरुदेव के चेलों पर ‘प्राचीन कलाकृतियों की खोज करते हुए या फिर आश्रम बनाते के दौरान’ ऐतिहासिक महत्व के पुरातन टीलों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। मथुरा के तत्कालीन जिलाधिकारी संजीव मित्तल ने कहा कि उन्हें गुरुदेव के आश्रम द्वारा किसानों की जमीन पर जबरन कब्जा करने संबंधी 23 शिकायतें मिली थीं।
गुरुदेव के उदाहरण से देखें, तो लगेगा कि गुरुवार को अदालत के आदेश के बाद मथुरा पुलिस द्वारा जवाहर बाग में की गई कार्रवाई करने में काफी देर हो गई। इस बाग पर उसी गुरुदेव के समर्थकों ने 2 साल से कब्जा जमाया हुआ था।