आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) की ओर से बढ़ते वायु प्रदूषण और उससे मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एशिया के वैज्ञानिकों की तीन दिवसीय कार्यशाला की अनौपचारिक शुरुआत बृहस्पतिवार को हो गई है। कार्यशाला में मौजूद शोधार्थियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुआ, इसमें वैज्ञानिकों ने शोध कार्यों में नई तकनीक के उपयोग पर जोर दिया गया। डॉ. नाजा ने बताया कि कार्यशाला का विधिवत शुभारंभ आज हुआ। आज आईआईएमटी पुणे के वैज्ञानिक डॉ. सचिन गुणे दिल्ली में तेजी से बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर अपने मॉडल के माध्यम से जानकारी देंगे।
जोखिया स्थित एक रिजॉर्ट में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में फ्रांस से पहुंचे वैज्ञानिक डॉ. सिल्विया बूसी ने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि वह जिस विषय में शोध करते हैं, उसमें नई तकनीक का उपयोग करें। क्योंकि उन्नत तकनीक से न केवल सही डाटा प्राप्त होता है, बल्कि उसके परिणाम भी सटीक आते हैं। उन्होंने सेटेलाइट डाटा के उपयोग पर भी जोर दिया। डॉ. सिल्विया ने मूल्यांकन और मॉडलिंग के बारे में भी जानकारी दी।
वायु प्रदूषण के कारण होने वाले दुष्परिणामों के बारे में बताया
सिंगापुर से पहुंचे हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. डेविड कोह ने शोध छात्रों को वायु प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणामों के बारे में बताया। डॉ. कोह ने कहा कि जरूरी है कि समय रहते शोध कार्य किए जाएं, जिससे उसके निष्कर्षों का लाभ वायु प्रदूषण को रोकने के लिए किया जा सके।
एरीज के वायुमंडलीय वैज्ञानिक और कार्यशाला के समन्वयक डॉ. मनीष नाजा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से एशियाई क्षेत्र में वायु प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। कहा कि वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए ठोस उपाय करने जरूरी हैं। इसे देखते हुए ही यहा तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जा रही है, इसमें एशिया के अलग-अलग विषयों के 60 वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं।
कार्यशाला में भारत, जापान, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड और कंबोडिया समेत अन्य देशों के वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम में इसरो के प्रो. श्याम लाल और डॉ. सुरेश बाबू समेत कई वैज्ञानिक मौजूद रहे।