पतित पावन सीतराम के गॉधी
रामकुमार सिंह
2 अक्टूबर गॉधी जी की 150 वी जयंती पर विशेष
स्तंभ : किसी पुस्तक का प्रसंग है गॉधी जी से एक बार किसी विदेशी पत्रकार ने पूछा कि भारत में रामचरितमानस ग्रंथ बहुत लोकप्रिय हैं क्या आपने पढ़ा हैं तो गॉधी जी ने उत्तर दिया कि हमने तो रामचरितमानस की आधी चौपाई ‘सिया राम मैं सब जानी’ पढ़ी हैं और आधी ‘करँहु प्रणाम जोर जुग पानी’ का अभी अभ्यास कर रहा हूँ। कितने सच्चे थे गॉधी जी,अगर भारत के उस समय के किसी छोटे बच्चे से भी पूछा जाता,कि तुमने रामचरितमानस पढ़ी हैं तो वह झट से प्रभु राम सीता की लीलाओ का गुणगान करने लगता।लेकिन गॉधी जी ने ऐसे सर्व सुलभ किंतु विलक्षण ग्रंथ को मात्र पठन-पाठन की दृष्टि से नही देखा, उन्होने रामचरितमानस के गूढ सिद्धांतो को पढ़ समझ कर जरूर अपने जीवन में प्रयोग भी किया होगा तभी वो ऐसा उत्तर दे सके।
गॉधी जी सिया राम मैं सब जग जानी यानि कि संसार के सभी मनुष्यो में प्रभु राम के अंश का एहसास तो रखते थे लेकिन सभी को राम समझ कर प्रणाम कर पाने में अपने आप को समर्थ नही मान रहे थे।तभी वे ऐसा कह सके। किसी व्यक्ति के विचारो से उसके पूरे जीवन का बडी सहजता से आकलन किया जा सकता हैं।
गॉधी जी का जब अंतिम समय आया तो उनके मुँह से ‘हे राम’ शब्द का निकलना परिचायक हैं कि वे सच में साधु थे जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या कि उसे भी उन्होने माफ करने कि बात कही और इसे अपनी अंतिम इच्छा बताया।सामान्यता कोई व्यक्ति हमारा छोटा सा अहित कर दे तो हम सबका उस व्यक्ति के प्रति क्या व्यवहार होता हैं यह हम सभी जानते हैं किंतु गॉधी जी के अंतिम समय का यह आचरण हमे उनकी गहरी आध्यात्मिक पहुँच का भी संकेत देता हैं।उनकी राष्ट्र सेवा उन्हे महान बना गई, उनका विशाल व्यक्तित्व और राष्ट्रनेतृत्व कि उनकी क्षमता उन्हे राष्ट्र नायक के रूप में गढ़ सकी।
किसी आधुनिक राज्य का निर्माण करने के लिए उसकी भागौलिक स्थिति,उसके निवासियो की जनसंख्या व संप्रभुता के साथ सबसे आवश्यक तत्व उसका सशक्त नेतृत्व होता हैं तभी कोई राष्ट्र पूर्ण रूप से संप्रभुता को प्राप्त कर सकता हैं।कोई भी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत देश मात्र अपनी भागौलिक स्थिति,निवासियो की जनसंख्या व संप्रभु सरकार के बावजूद तब तक आधुनिक राज्य नही बन सकता जब तक उस देश को सशक्त नेतृत्व देने वाला कोई ताकतवर लीडर उसकी अगुवाई कर उसे सफल नेतृत्व न प्रदान कर सके,किसी भी राष्ट्र के संघर्ष को समायोजित करना,अलग अलग विचारो के लोगो को एक मंच पर लाना और फिर उन्हे साझे भविष्य की ओर प्रेरित करने का कार्य कोई सशक्त और दूरदर्शी नेतृत्व ही कर सकता हैं।
गॉधी जी ने विभिन्न प्रकार के अंतरविरोधो के बावजूद भारत के सभी अलग अलग विचारो के लोगो को स्वतंत्रता आंदोलन के द्वारा अपने नेतृत्व में एक ऐसा मंच प्रदान किया जो भिन्न विचारधारो के लोगो का बेहतर भविष्य की चेतना को सवारने के लिए एक साझा मंच बना और सभी एकमत होकर गॉधी जी के नेतृत्व को स्वीकार कर आगे बढे़ और परिणामस्वरूप भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।गॉधी जी के अहिंसा आंदोलन ने ब्रिटिश साम्रराज्य को भारत छोडकर जाने पर विवश कर दिया। गॉधी जी के सत्य अंहिसा की शक्ति जो उन्हे कही न कही रामचरितमानस के गूढ सिद्धांतो को अपने जीवन में उतारने से मिली होगी जो उन्हे राष्ट्रपिता की पदवी से सुशोभित कर गयी।
”दे दी हमे आजादी बिना खड्ग बिना ढाल,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।” यह बिना खड्ग बिना ढाल की ताकत गॉधी जी के सत्यनिष्ठ होने की ताकत थी जो उन्हे देश ही नही वरन् विश्व के महान लीडरो की श्रेणी में अग्रणी बनाती है। गॉधी जी ने व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर अपने आदर्शो को सर्वोच्च स्थान दिया हैं और सत्य के प्रति निष्ठावान रहते हुये अपना पूरा जीवन परहित और राष्ट्रहित मे समर्पित किया हैं तभी तो वे महान हैं।