पाक पर न बने दबाव, इसलिए अमरनाथ हमले की जिम्मेदारी नहीं ले रहा लश्कर
भले ही केंद्रीय एजेंसियां अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ मान रही हों, लेकिन अब तक इस दहशतगर्द संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बन रहे वैश्विक दबाव के चलते आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। खासतौर पर लश्कर चीफ हाफिज सईद पर कार्रवाई के लिए अमेरिका समेत वैश्विक समुदाय का पाकिस्तान पर खासा दबाव है।
एक इंटेलिजेंस ऑफिसर ने मंगलवार को हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘लश्कर-ए-तैयबा की ओर से इस हमले की जिम्मेदारी न लिए जाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि यह हमला सुरक्षा बलों के बजाय निहत्थे आम लोगों पर हुआ है। निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाए जाने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी निंदा हो सकती है। इससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ सकता है, जिसे कई बार सईद और लश्कर के आतंकी नेटवर्क पर कार्रवाई करने के लिए कहा जा चुका है।’ बता दें कि वैश्विक दबाव में पाकिस्तान को हाफिज सईद और जमात-उद-दावा के अन्य शीर्ष नेताओं को 30 जनवरी को नजरबंद करना पड़ा था। इसके बाद अप्रैल में सरकार ने सईद की नजरबंदी को 90 दिन यानी 30 जुलाई तक के लिए बढ़ा दिया था।
क्यों हाथ लश्कर का?
लश्कर-ए-तैयबा और आतंकी संगठनों के लिए अमरनाथ यात्रा की पवित्रता का महत्व नहीं है। इसके अलावा कश्मीर घाटी के कट्टरवादी और अलगाववादी इस यात्रा को कश्मीर घाटी की संस्कृति के खिलाफ मानते रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने हमले में लश्कर-ए-तैयबा को जिम्मेदार माना है, जिसका आधार घाटी में हाल में कम हुआ है। तीर्थयात्रियों पर हमला करने वालों में चार आतंकवादी शामिल थे, जिन्हें इस्माइल नाम का आतंकवादी लीड कर रहा था। इस्माइल 2016 में पाकिस्तान से आया था और पाम्पोर के पास काकापोरा इलाके में अपना ठिकाना बदलता रहता है। बैंक लूट के कई मामलों में शामिल रहे इस्माइल की तस्वीर सुरक्षा एजेंसियों के हाथ लग चुकी है। उसे लश्कर का बैंक लूट का इनचार्ज समझा जाता है। हाल में वह दो बार सेना के हाथ आते-आते रह गया। एक सरपंच की हत्या में भी उसका नाम सामने आया था।
कश्मीर घाटी में हिज्बुल मुजाहिदीन के बढ़ते प्रभाव के बीच लश्कर अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा है। पिछले साल इसके सात लोगों ने फिदायीन हमले की कोशिश की थी। इस साल जून तक छह लोग फिदायीन अटैक की कोशिश कर चुके हैं। अमरनाथ यात्रा पर हमले के मामले में लश्कर-ए-तैयबा के कथित प्रवक्ता का जो बयान सामने आया है, उसके मुताबिक संगठन ने हमले की निंदा की है और कहा है कि इस्लाम किसी धर्म के खिलाफ हिंसा की इजाजत नहीं देता है, किसी कश्मीरी ने कभी किसी तीर्थयात्री की हत्या नहीं की। इस बयान को झूठ का पुलिंदा और लोकल लोगों की नाराजगी से बचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
स्थानीयों का भड़क सकता है गुस्सा
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, ज्यादा संभावना यह है कि कोई संगठन इस हमले की जिम्मेदारी न ले, क्योंकि इससे लोकल लोगों में आतंकवादियों के खिलाफ गुस्सा भड़क सकता है। अमरनाथ यात्री स्थानीय लोगों की आय के लिए बड़ा सोर्स रहे हैं। आतंकवादी अमूमन यात्रा के आखिरी दौर में हमले की साजिश रचते हैं, क्योंकि तब स्थानीय लोगों को नुकसान की संभावना नहीं रहती है। इस बार शुरुआती दौर में ही हमला होने से स्थानीय लोगों का कारोबार प्रभावित होगा।