दस्तक टाइम्स/एजेंसी- ऐसी जमीन जहां पापकॉर्न की तरह उछलने का अहसास होता है, पत्थर को मारो तो तरह-तरह की मधुर आवाजें निकलती हैं, पानी के अंदर मछलियां अंधी होती हैं और एक या दो नहीं बल्कि 7 धाराएं एक नदी में आकर मिलती हैं। ये जगह किसी आश्चर्य से कम नहीं….अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो बिल्कुल सही है। साइंनटिस्ट से लेकर एक्सपर्ट्स तक के लिए ये रहस्य बना हुआ है। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे छिपा सीक्रेट।
मैनपाट की स्पंजी जमीन
मैनपाट को ठंड और तिब्बती शरणार्थियों की बस्ती के कारण छत्तीसगढ़ का तिब्बत कहा जाता है। यहां जलजला नाम की जगह पर चार एकड़ जमीन लंबे समय से लोगों की दिलचस्पी का केंद्र है। इस स्पंजी जमीन पर उछलने से आसपास की जमीन पर कंपन का अनुभव होता है। ठीक उसी तरह, जैसा किसी गद्दे पर उछलने से महसूस हो सकता है। 1997 में जबलपुर में भूकंप आने के बाद यह बना था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जमीन के अंदर का दबाव तथा पोर स्पेस (खाली स्थान) में सॉलिड के बजाय पानी भरा हुआ है। इसलिए भी यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है।
Other Places: टिनटिनी पत्थर, कुटुमसर गुफा, इंद्रावती नदी, फरसाबहार नागलोक, अंबिकापुर जल कुंड
टिनटिनी पत्थर
अम्बिकापुर से करीब 10 किलोमीटर दूर दरिमा हवाई पट्टी के पास एक बहुत पुराना पत्थर है। इस पर पत्थर को मारो तो ठीक वैसी ही म्यूजिकल आवाजें आती हैं, जैसे घंटियों में होती हैं। इस पत्थर से टकराने वाली चीज की हार्डनेस और मैटलिक कंटेंट के आधार पर आवाजें भी अलग-अलग निकलती हैं। हालांकि सारी आवाजें सरल भाषा में टनटनाहट जैसी होती हैं। सुरीली मैटलिक ध्वनि के कारण इसका नाम टिनटिनी पत्थर पड़ा है। इसे लेकर आसपास कई तरह के किस्से- कहानियां हैं। कुछ लोग इसे दूसरे ग्रह या उल्का का पत्थर भी मानते हैं।
साउंड की वजह- इस पत्थर में मैटलिक कंटेंट के रूप में आयरन और निकल ज्यादा हो सकता है।
भूविज्ञानियों के मुताबिक इसीलिए इससे म्यूजिकल साउंड आता है। यहां के पत्थर में मैटलिक कंटेंट बहुत हाई हो सकता है। मैटलिक कंपोजिशन कुछ इस तरह का हो सकता है कि ये छिद्रयुक्त हो सकता है, जिससे आवाज पैदा होती है। साइंनटिस्ट और एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह उल्कापिंड हो सकता है। इस पत्थर के कैमिकल और दूसरे एनलिसिस जरूरी हैं, जो अब तक नहीं हुए हैं।
फरसाबहार में नागलोक
छत्तीसगढ़ के जशपुर में फरसाबहार इलाक़ा नागलोक के नाम से मशहूर है। तपकरा, पत्थलगांव, बगीचा, कासांबेल में कॉमन, ब्लैक और बेंडेड करैत, कोबरा तथा ग्रीन पिट वाइपर समेत 40 प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इनमें दुनिया की सबसे जहरीली 6 में से 4 प्रजातियां यहां मिलती हैं। जानकारों का कहना है कि यहां की भुरभुरी मिट्टी और मौसम सांपों के प्रजनन के लिए अच्छा है। इसलिए इनकी तादाद यहां ज्यादा है। बारिश में इनके रहने की जगहों में पानी भर जाता है तो सूखी जगहों और शिकार की तलाश में इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। यहां स्नेक पार्क बनाने की भी प्लानिंग है, जिसमें एंटी वेनम के लिए सांपों का जहर भी निकाला जाएगा। यहां
आलू-अंडे उबल जाते हैं तातापानी में
अम्बिकापुर से रामानुजगंज जाने वाली सड़क पर करीब 80 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे के पास गर्म पानी के आठ- दस कुंड हैं। इनमें जमीन के भीतर से गर्म पानी आता है। कहीं-कहीं पानी इतना गर्म है कि अंडे और चावल तक उबल जाते हैं। इसके अलावा लगातार भाप भी निकलती रहती है। दूर-दूर से लोग इस गर्म पानी के कुंड को देखने के लिए आते हैं।
पानी गर्म रहने की वजह ?
यहां पानी का तापमान 96-100 डिग्री सेंटीग्रेट तक होता है।
एक्सपर्ट्स बताते हैं यहां भूपर्पटी से 8 किमी नीचे एक हॉट स्पॉट है। इस वजह से पानी भी गर्म हो गया है।
7 धाराओं में बंटती है नदी
जगलपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर बारसूर के पास इंद्रावती नदी सात टुकड़ों में बंटकर बहती है। कुछ किमी जाकर सातों धाराएं इस जगह पर एक हो जाती हैं। सभी सात धाराओं के पानी का रंग वन और पहाड़ी इलाकों में अलग अलग बहने के कारण थोड़ा अलग- अलग हो जाता है। जब यह एक जगह मिलती हैं तो इनके अलग- अलग रंग काफी दूर तक नजर आते हैं। घने जंगलों के बीच स्थित यह जगह बेहद खूबसूरत है। बारिश में सात धाराओं का नजारा साफ नजर आता है। सभी धाराएं मिलकर आखिरी में पानी का रंग नीला कर देती हैं। यह इसकी खूबसूरती को चार चांद लगा देता है।