पितरों की मुक्ति के लिए श्रद्धा से करे श्राद्ध
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इन दिनों पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध पक्ष चल रहा है। ऐसी मान्यता होती है कि इन दिनों श्रद्धा से किया गया पितरों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। हर व्यक्ति यही चाहता है कि उनके पितर यानी उनके पूर्वज मृत्यु के बाद उत्तम लोक में जाएं और सुखी रहें। इसका करण यह भी है कि पितरों के खुश और सुखी रहने से परिवार में सुख-समृद्घि और उन्नति बनी रहती है। इसलिए हर वर्ष भाद्रपद र्पूिणमा से लेकर आश्विन अमवस्या तक पितरों का श्राद्ध तर्पण और पिण्डदान किया जाता है। लेकिन श्राद्ध में सबसे ज्यादा जरूरी है श्रद्धा और कुश एवं तिल। इनके बिना किया गया श्राद्ध पितरों को नहीं पहुंच पाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि काला तिल भगवान विष्णु का प्रिय है और यह देव अन्न है। इसलिए पितरों को भी तिल प्रिय है। इसलिए काले तिल से ही श्राद्धकर्म करने का विधान है। मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाए, तो दुष्ट आत्माएं हवि को ग्रहण कर लेती हैं। पितृपक्ष में पितर कुश की नोक पर निवास करते हैं। इसी कारण तर्पण करते समय कुश को अंगुलियों में धारण किया जाता है। इससे तर्पण करते समय पितरों को दिया जाने वाला जल एवं पिण्ड उनका आसानी से पहुंच जाता है और वह प्रसन्नता पूर्वक इसे प्रहण करके संतुष्ट हो जाते हैं।