प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की बैंकिंग सेक्टर पर मार, राजनीतिक माइलेज के लिए इस्तेमाल का आरोप
ना सिर्फ विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोग जो जनता की रकम ले कर विदेश भागे हैं, छोटे कर्जदारों का नाम भी राष्ट्रीयकृत बैंकों में खराब कर्ज वाली लिस्ट में बढ़ता जा रहा है. बड़े जोरशोर के साथ मोदी सरकार ने छोटे और मध्यम कारोबार शुरू करने के लिए गारंटी फ्री लोन देने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) शुरू की थी. अब इसी योजना से बैंकिंग सेक्टर भारी दबाव महसूस कर रहा है.
बैंकों का खराब लोन बढ़ कर 7.34 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है. दस लाख बैंकर्स की नुमाइंदगी करने वाले यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (UFBU) का आरोप है कि योजना के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बैंक अधिकारियों पर भारी राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है.
बता दें कि मुद्रा योजना अप्रैल 2015 में शुरू की गई थी. इसके तहत 10 लाख रुपए तक का कर्ज बिना कलैटरल सिक्योरिटी के दिए जाने का प्रावधान है. मुद्रा योजना एक रीफाइनेंसिंग योजना है जिसमें सरकार से सीधे लोन की जरूरत नहीं होती. इसमें कर्ज पब्लिक सेक्टर के बैंक, NBFC (नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों), MFI (माइक्रो फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन्स) से लिया जाता है. एनडीए के तीन साल से ज्यादा के शासन में करीब 5 लाख करोड़ रुपए के मुद्रा लोन बांटे गए. इनका ज्यादातर हिस्सा राष्ट्रीयकृत बैंकों से ही गया.
कर्ज वापस ना करने वाले कॉरपोरेट्स और बढ़ते जा रहे NPA (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) से बैंकर्स पहले से ही मुश्किल हालात में हैं. वो मुद्रा लोन धड़ाधड़ बांटने के लिए राजनीतिक दबाव को जिम्मेदार बता रहे हैं. अब कुल खराब कर्ज का 7 फीसदी हिस्सा मुद्रा लोन का ही है. वित्त वर्ष 2017-18 के लिए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल 40389854 मुद्रा लोन को हरी झंडी दी गई. इसके लिए कुल रकम 198711 करोड़ का लक्ष्य रखा गया. इसमें से 192142 करोड़ रुपए बांटा गया.
वित्त वर्ष 2016-17 में 39701047 लोन स्वीकृत किए गए. इनका टारगेट 180528 करोड़ रखा गया. इनमें से 175312 करोड़ लोन बांटे गए. मुद्रा योजना के शुरुआती वर्ष 2015-16 में 34880924 लोन स्वीकृत किए गए. इसके लिए 137449 करोड़ का लक्ष्य रखा गया. इसमें 132954 करोड़ के लोन बांटे गए. वित्त मंत्रालय ने 2018-19 के लिए 3 लाख करोड़ के मुद्रा लोन का लक्ष्य निर्धारित किया है.
एक तरफ मुद्रा योजना के डिफाल्टर्स बैंकों के NPA यानि खराब कर्ज का अंबार बढ़ा रहे हैं वहीं बैंकों का ऑडिट दिखाता है कि कई अवसरों पर ऐसे लोन के लिए प्राथमिक सिक्योरिटी मापदंडों का भी इस्तेमाल नहीं किया गया.
बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजर पंकज कपूर ने कहा, ‘कई बार हमें टारगेट पूरा करने के लिए एक ही दिन में पांच मुद्रा लोन बांटने के लिए कहा जाता है. लोन को जिस काम के लिए दिया जाता है उससे हटकर दूसरे कामों के लिए इस्तेमाल किए जाना आम बात है. मसलन लोन कारोबार के लिए लिया जाता है लेकिन उसका इस्तेमाल शादी-ब्याह, मकान बनाने और अन्य घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए किया गया. अब कर्ज वापस करने के लिए उनके पास रकम नहीं होती तो इसके लिए बैंकर को जिम्मेदार ठहराया जाता है और सजा दी जाती है.
बैंक यूनियन्स का आरोप है कि सरकार मुद्रा योजना का इस्तेमाल राजनीतिक माइलेज लेने के लिए कर रही है. यूनियन नेताओं के मुताबिक ब्रांच मैनेजरों से शिकायत मिली हैं सांसद, विधायक और स्थानीय राजनेता बैंक अधिकारियों के लिए धमकी, अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं. तुरंत लोन देने के लिए दबाव डाला जाता है. राजनीतिक रसूख वाले आवेदकों को लोन देने में देरी पर बैंक अधिकारियों को जिला प्रशासन अधिकारियों की ओर से धमकाया जाना और बड़ी चिंता की बात है.
आल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडेरेशन के महासचिव डी टी फ्रैंको का कहना है, ‘मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद बैंकिंग सेक्टर पर भारी दबाव है. वो जहां भी जाते हैं लोन मेले लॉन्च करना चाहते हैं. एक ऐसा कार्यक्रम हुआ जहां बैंकर्स को बुलाया गया जिससे कि लोग ऋण के बारे में समझ सकें. लोन मेले के आयोजन में जब बैंकर्स गए तो देखा कि वो पूरी तरह बीजेपी के कार्यक्रम में तब्दील था. मंच पर मौजूद नेता और बाकी सारे नेता भी बीजेपी के ही थे.
फ्रैंको ने आरोप लगाया कि अनेक बीजेपी नेताओं की ओर से अपने लैटर पैड पर आवेदकों की सूची भेजी गई कि इन्हें इन्हें लोन दिया जाए.
विशेषज्ञों का कहना है कि मुद्रा योजना अपने लक्ष्य को हासिल करने में विफल रही है. मुंबई स्थित वित्त विशेषज्ञ अश्विन पारेख ने बताया, ‘बढ़ता NPA बैंकिंग सेक्टर के लिए खतरे की घंटी है. इसमें मुद्रा लोन की हिस्सेदारी बेशक 7 फीसदी है लेकिन वो भी बड़ी चिंता का विषय है. ये सच है कि इस योजना को स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक भाई-भतीजावाद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. जिस तबके को इसकी जरूरत है उसे इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.’
भविष्य के लिए चेतावनी के संकेत अभी से मौजूद हैं. कोटक मंहिद्रा बैंक के एक्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन और एमडी उदय कोटक कहते हैं, ऐसा माना जाता है कि बैंकिंग सिस्टम की अधिकतर चुनौतियों बड़े कारोबारों की वजह से हैं. मैं समझता हूं कि लघु और मध्यम उद्यमों के तहत आने वाले कारोबार भी कमजोर कड़ी हैं जिनके हाथ अभी पूरी तरह बेनकाब नहीं हैं.’