मुंबई। यदि आप अकेली हैं और आपके भीतर मातृत्व की भावनाएं हिलोरें ले रही हैं, तो एडॉप्शन के अलावा भी मां बनने का एक उपाय है। इसके जरिए आप अंकुर के पनपने का नौ महीनों का सुखद अहसास ले सकती हैं।
उम्र के 30वें या 40वें पायदान में कदम रख चुकी अकेली महिलाएं, जिन्होंने शादी के बगैर मां बनने वाले सामाजिक कलंक को नकारते हुए इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का चयन कर रही हैं, ताकि वे बायोलॉजिकल बच्चे का आनंद और अनुभूति ले सकें।
यह नया ट्रेंड न केवल डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों या बैंकर्स बल्कि नेताओं व किसानों द्वारा भी अपनाया जा रहा है। रुबी हॉल क्लीनिक के आईवीएफ व एंडोस्कोपी सेंटर की चीफ डॉ. सुनिता तंदुलवादकर आईवीएफ के लिए ऐसी सिंगल महिलाओं का इलाज कर रही हैं।
सुनिता ने बताया, ‘हमने यह देखा कि 30 या 40 के उम्र की सिंगल महिलाएं मातृत्व के लिए आईवीएफ का ऑप्शन चुन रही हैं। तीन या चार साल पहले इस प्रक्रिया की इतनी अधिक मांग नहीं थी। इसके पीछे मुख्य कारण सामाजिक दवाब था।
मगर, अब काफी महिलाओं ने शादी के बंधन में बंधे बिना मां बनने का निर्णय लिया है क्योंकि वे तन्हा नहीं रहना चाहती।‘ आईवीएफ के लिए इतने डिमांड आने शुरू हो गए हैं कि क्लीनिक का नवीकरण किया जा रहा है ताकि इन महिलाओं को आराम से सुविधा दी जा सके।
सुनिता ने आगे कहा, ‘इनमें से कई ऐसे हैं जिनका कहना है कि उन्हें सही पार्टनर नहीं मिले, कुछेक ने करियर की वजह से शादी नहीं की। मगर, ये सब मां बनने की ख्वाहिशमंद हैं और चाहती हैं कि उनके लिए कोई हो। अभी कई महिलाओं का इलाज किया जा रहा है और कुछेक को इसके लिए समय दिया गया है।’
अपने एक मरीज के बारे में उन्होंने बताया, ‘दुबई में डॉक्टर के तौर पर कार्यरत पुणे की 43 वर्षीया प्रोफेशनल ने इस उम्र में सही पार्टनर मिलने की उम्मीद छोड़ते हुए आईवीएफ प्रक्रिया को अपनाने का निर्णय लिया। मगर, दुर्भाग्य से दुबई में सिंगल महिला को गर्भवती होने की अनुमति नहीं होने के कारण उन्होंने ब्रिटेन में नौकरी का चयन किया और और जल्द ही अपने बच्चे के साथ वहां चली जाएंगी।’
कुछ परिवार अपनी 40 की उम्र को पार कर चुकी बेटियों को आईवीएफ प्रणाली की अनुमति दे रहे हैं और साथ ही समर्थन भी कर रहे हैं, ताकि वे अपने नाना-नानी बनने के सपने को पूरा कर सकें। डॉक्टर ने बताया, ‘बैंक में कार्यरत महिला ने कारण बताया कि उनके माता-पिता अपने बाद बेटी को अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहते इसलिए उन्होंने 39 की उम्र में आईवीएफ अपनाने का निर्णय लिया।’
स्त्री रोग विभाग के निदेशक व आईएसएआर के चुने गए प्रेसिडेंट डॉ दुरु शाह ने कहा, ‘यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है, लेकिन भारत में यह सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता है, जिसके कारण कई आईवीएफ के बजाय सरोगेसी का ऑप्शन अपनाते हैं।’
लेकिन FOGSI के सेक्रेटरी जनरल डाक्टर ऋषिकेष पाई ने कहा, ‘अनेकों ऐसी महिलाएं हैं, जो हमसे बहस तक कर लेती हैं और कहती हैं की मां बनना उनका अधिकार है और बच्चे के लिए शादी करना जरूरी नहीं। मगर, इनमें अनेकों ऐसे हैं जो इस बात का इंतजार कर रही हैं कि सरकार की ओर से इस बारे में निर्देश आएंगेे और नियम बनेंगे।