मोदी सरकार द्वारा पेश आर्थिक सर्वेक्षण इस बार महिलाओं के सशक्तीकरण पर विशेष बल दिया गया है। इसमें कहा गया है कि आबादी में 49 फीसदी हिस्सा रखने वाली महिलाओं की निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी बहुत कम है जिसे बढ़ाने की जरूरत है।
सर्वेक्षण के अनुसार घरेलू जिम्मेदारियों, समाज में महिलाओं की भूमिका को लेकर मौजूदा सांस्कृतिक नजरिए और पारिवारिक सहयोग में कमी के कारण आधी आबादी राजनीति में उस तरह से सक्रिय नहीं है जैसा उसे होना चाहिए। यहां तक कि रवांडा जैसे देश में भी 2017 में संसद में महिला जन प्रतिनिधियों की संख्या 60 फीसदी तक पहुंच गई है। जबकि भारत में यह हिस्सेदारी 15 फीसदी से भी कम है। इस मामले में अपना देश मिस्र, मलेशिया, जापान, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों की कतार में खड़ा है।
इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन और यूएन वुमन रिपोर्ट के अनुसार इस समय लोकसभा में 64 (542 सांसदों का 11.8 फीसदी) और राज्यसभा में 27 (245 सांसदों का 11 फीसदी) महिला प्रतिनिधि हैं। अक्तूबर,
2017 के आंकड़ों के अनुसार 4118 विधायकों में से सिर्फ 9 फीसदी महिलाएं हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि एक प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना निहायत जरूरी है। हालांकि स्थानीय निकाय में महिलाओं की भागीदारी में काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसे संसद के स्तर तक पहुंचाना सरकार का लक्ष्य होना चाहिए।
महिला कामगारों की संख्या घटी
सर्वेक्षण में कुल कार्यबल में महिलाओं की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा गया है इसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी सारी संभावनाओं का दोहन नहीं कर पा रही है। सरकार महिला कामगारों की संख्या बढ़ाने पर विशेष जोर दे रही है। महिलाओं के लिए विशेष स्कीमें लागू की गई हैं। मातृत्व अवकाश में बढ़ोतरी भी इसी दिशा में उठाया गया एक उल्लेखनीय कदम है।
सर्वेक्षण के अनुसार श्रम बाजार में कामकाजी महिलाओं की हालत बहुत खराब है क्योंकि उनमें से ज्यादातर हुनरमंद नहीं है। इसलिए उन्हें कम उत्पादकता वाले और कम मजदूरी वाले क्षेत्रों में ही रोजगार मिल पाता है। दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चिली जैसे देशों में महिलाओं को भारतीय महिलाओं से ज्यादा मजदूरी मिल रही है।
खेती का महिलाकरण
सर्वेक्षण में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों से पुरुषों के पलायन के कारण कृषि क्षेत्र का महिलाकरण हो रहा है। खेतिहर की भूमिका निभाने के अलावा वह उद्यम के क्षेत्र में भी कूद रही हैं। इसके अलावा मजदूरी करने वालों में भी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। इसके मद्देनजर कृषि नीति में बदलाव करने की जरूरत है ताकि उसमें महिलाओं का भी समावेश किया जा सके। इसके लिए जमीन, जल, ऋण, टेक्नोलाजी एवं ट्रेनिंग जैसे संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना पड़ेगा। अगर सरकार इस दिशा में कदम नहीं उठाती है तो कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी हासिल करना मुश्किल हो सकता है।
महिला किसानों के लिए सरकार कई स्कीमों पर जोर दे रही है। सभी स्कीमों एवं कार्यक्रमों के कुल आवंटन का 30 फीसदी महिला लाभार्थी के लिए आरक्षित किया जा रहा है। इसके अलावा महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए माइक्रो क्रेडिट सुविधा को महिलाओं तक पहुंचाया जा रहा है।
बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 4.5 खरब डॉलर की जरूरत
बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अगले 25 वर्षों में भारत को 4.5 खरब डॉलर की आवश्यकता होगी। मौजूदा रुझान से पता चलता है कि भारत जरूरत के 4.5 खरब डॉलर में से करीब 3.9 खरब डॉलर का निवेश कर सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत के बुनियादी ढांचा निवेश के अंतर के लिए संचयी आंकड़ा 2040 तक 526 अरब डॉलर के आसपास होगा।